डर्मेटोमायोसाइटिस काफी घातक, जिसने छीन ली उभरती अभिनेत्री

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Dermatomyositis Disease। Lucknow: उन्नीस साल की उम्र में दंगल फिल्म स्टार (युवा बबीता फोगट की किरदार निभाने वाली ) सुहानी भटनागर ने स्क्रीन और कई लोगों के दिलो में राज किया है। लेकिन एक दुर्लभ बीमारी ने उन्हें हमसे छीन लिया। उनके पिता  मीडिया के माध्यम से बताया है कि वो डर्मेटोमायोसाइटिस से पीड़ित थीं और उसके निदान में काफी देरी हुई।  फेफड़ों की खराबी के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

इस बीमारी के बारे में हमारे संवाददाता ने राजधानी के जाने माने रूमैटोलॉजिस्ट डॉ. दुर्गेश श्रीवास्तव से बात की। डर्मेटोमायोसाइटिस एक दुर्लभ तरह की ऑटो इम्यून बीमारी है। इसका वास्तविक कारण अभी तक अज्ञात है लेकिन अधिकांश ऑटो इम्यून रोगों की तरह, ये भी विभिन्न प्रकार के वायरल इन्फ़ेक्शंस के बाद प्रारंभ हो सकती है। इसमें भी विभिन्न प्रकार के ऑटो एंटीबॉडीज़ (ऐसे एंटीबॉडी, जो संक्रामक रोगों से लड़ने के बजाय, शरीर के अंगों पर ही हमला करते हैं ) बनने लगते हैं, जो शरीर के विभिन्न अंगों जैसे मांसपेशियों, त्वचा, फेफड़े, गुर्दे और हृदय इत्यादि पर दुष्प्रभाव डालकर इस रोग को आगे बढ़ाते हैं।

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शुरुआत में बुख़ार और कमज़ोरी के साथ त्वचा पर लाल चकत्ते पड़ सकते हैं। मांसपेशियों में कमजोरी और दर्द जैसी समस्याएं होने लगती है। अगर जल्द इसे नियंत्रित ना किया जाए तो फेफड़े और हृदय की मांसपेशियों को कमज़ोरी से साँस लेने और रक्त संचार में बाधा पहुँच सकती है, जो प्राण घातक हो सकता है। यह बीमारी किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है।

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हालाँकि अधिकतर रोगी 30 से 60 आयु वर्ग के होते हैं। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ये रोग होने की संभावना अधिक होती है। इस बीमारी में इम्यूनिटी कमज़ोर नहीं, बल्कि अनियंत्रित हो जाती है। इस रोग को आरंभिक अवस्था में पहचान कर इसे रोकना आसान होता है। विभिन्न ऑटो इम्यून रोगों का इलाज करने वाले विशेषज्ञ रूमेटोलोजिस्ट चिकित्सक, विभिन्न प्रकार के ऑटो एंटीबॉडी की जाँच एवं आवश्यकतानुसार मांसपेशियों की बायोप्सी कर के इस रोग की पुष्टि करते हैं।

इस रोग का इलाज स्टेरॉयड एवं विभिन्न प्रकार के इम्यूनो सप्रेसंट (जैसे कि MMF, Azoran, Rituximab, Methotrexate इत्यादि) देकर किया जाता है और इन दवाओं द्वारा इम्यून सिस्टम को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिसके दुष्प्रभाव से विभिन्न संक्रामक रोगों से लड़ने की क्षमता प्रभावित होती है, और इन्फेक्शन की संभावना बढ़ी रहती है। इसलिये इस रोग का इलाज जटिल हो जाता है और काफ़ी सावधानी पूर्वक करना पड़ता है। सामान्यतः ये इलाज 2 से 3 वर्ष या अधिक चल सकता है।

(रिपोर्ट-पवन सिंह चौहान, लखनऊ)

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