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दिल्ली MCD चुनाव : भाजपा के लिए अपना गढ़ बचाने की चुनौती

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नई दिल्लीः दिल्ली नगर निगम (MCD) को भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है। ऐसा मजबूत गढ़ जिसे अपनी लोकप्रियता के चरम पर होने के बावजूद न तो शीला दीक्षित तोड़ पाई और न ही अब तक अरविंद केजरीवाल तोड़ पाए हैं। लेकिन इस बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा के इस गढ़ के तिलिस्म को तोड़ने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है।

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शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार तीन बार विधानसभा चुनाव जीत कर दिल्ली में सरकार बनाने वाली कांग्रेस के कमजोर हो जाने और कांग्रेस के वोट बैंक के आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो जाने के बाद यह माना जा रहा है कि पहली बार दिल्ली नगर निगम चुनाव में भाजपा को आप से कड़ी टक्कर मिलने जा रही है।

हालांकि भाजपा राष्ट्रीय महासचिव एवं दिल्ली MCD चुनाव के लिए गठित चुनाव समिति के सदस्य दुष्यंत गौतम ने आप को भाजपा के लिए कोई चुनौती मानने से ही इनकार करते हुए यह दावा किया कि आप झूठों की पार्टी है और दिल्ली की जनता उनकी सच्चाई जान चुकी है। गौतम ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर दिल्ली की जनता को मरने के लिए छोड़ देने का आरोप लगाते हुए कहा कि भाजपा अपने काम के बल पर एक बार फिर से दिल्ली नगर निगम के चुनाव में जीत हासिल करने जा रही है।

दरअसल, 2007 से ही नगर निगम में भाजपा की मजबूत पकड़ बनी हुई है। वर्ष 2007 में केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और दिल्ली में शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थी, लेकिन इसके बावजूद नगर निगम के चुनाव में दिल्ली की जनता ने भाजपा को वोट किया। नगर निगम में भाजपा की पकड़ को कमजोर करने के लिए 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने दिल्ली नगर निगम को तीन हिस्सों - उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में बांट दिया लेकिन इसके बावजूद 2012 में हुए नगर निगम के चुनावों में इन तीनों नगर निगमों में कांग्रेस को हराते हुए भाजपा फिर से सत्ता में आ गई।

इन तीनों नगर निगमों के 2017 में हुए पिछले चुनाव के दौरान केंद्र और दिल्ली, दोनों की सत्ता में बदलाव आ चुका था। केंद्र में भाजपा की सरकार सत्ता में आ गई थी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे। वहीं दिल्ली में प्रचंड और ऐतिहासिक बहुमत के साथ अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे। 2017 में अरविंद केजरीवाल अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे लेकिन इसके बावजूद तीनों नगर निगम चुनाव में लगातर तीसरी बार सत्ता हासिल कर भाजपा ने यह साबित कर दिया कि नगर निगम चुनाव में उसे हरा पाना बहुत मुश्किल है।

इस बार दिल्ली के तीनों नगर निगमों का चुनाव अप्रैल 2022 में होना प्रस्तावित था लेकिन इसके ठीक पहले केंद्र सरकार द्वारा इसके एकीकरण की प्रक्रिया आरंभ करने की वजह से टालना पड़ा। अब दिल्ली के तीनों नगर निगमों का एकीकरण कर इन्हें फिर से एक नगर निगम बना दिया गया है और इसके परिसीमन के बाद अब वाडरे की कुल संख्या को 272 से घटकर 250 कर दिया गया है। दिल्ली राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित चुनाव कार्यक्रम के अनुसार, दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए चार दिसंबर को मतदान होगा जबकि मतगणना 7 दिसंबर को होगी।

दरअसल, दिल्ली विधान सभा में आम आदमी पार्टी के प्रचंड बहुमत से ज्यादा भाजपा की सबसे बड़ी चिंता आप का आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान है। केजरीवाल और सिसोदिया की जोड़ी सधे हुए अंदाज में अपने चिरपरिचित स्टाइल को अपनाते हुए भाजपा को कूड़े के ढ़ेर सहित अन्य कई ऐसे मुद्दों पर लगातार घेर रही है जिससे दिल्ली की जनता परेशान रहती है। वहीं अन्य राज्यों में कांग्रेस को हराने की कोशिश करने वाली भाजपा दिल्ली में कांग्रेस के कमजोर होने की वजह से भी ज्यादा परेशान है। कांग्रेस अगर मजबूती से चुनाव लड़ती है तो दिल्ली में मुकाबला त्रिकोणीय हो जाएगा जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा, जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस के कमजोर होने का चुनावी फायदा आम आदमी पार्टी को मिलना तय माना जा रहा है।

हालांकि, आप के आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के बावजूद भाजपा दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर कई मोचरें पर बहुत मजबूत भी नजर आती है। भाजपा राष्ट्रीय महासचिव एवं दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए गठित चुनाव समिति के सदस्य दुष्यंत गौतम के मुताबिक, 15 वर्षों से लगातार भाजपा नगर निगम की सत्ता में रही है और पार्टी के पास अपनी उपलब्धियों की लंबी फेहरिस्त है जिन्हें लेकर वो जनता के बीच जाएगी और इसके साथ ही पार्टी आप सरकार के नकारात्मक रवैये, झूठे दावे और भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर भी जनता के बीच जाएगी। यह बताएगी कि किस तरह से केजरीवाल सरकार ने दिल्ली को गैस चैंबर बना दिया, यमुना को साफ करने की बजाय छठ के महापर्व के दौरान यमुना में जहर डालने का काम किया।

नगर निगम चुनाव को लेकर भाजपा की कमजोरी, ताकत और मुद्दों से अलग हटकर देखा जाए तो भाजपा की सबसे बड़ी ताकत विरोधियों को चौंकाने की उसकी क्षमता है। 2017 के नगर निगम चुनाव में भी भाजपा ने जनता की नाराजगी को देखते हुए एंटी इनकंबेंसी को बेअसर करने के लिए सभी सिटिंग पार्षदों का टिकट काटकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया था जिसका लाभ भी पार्टी को मिला।

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