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न्याय की आस में गुजर गए 26 साल, पीड़ित परिवार इंसाफ की तलाश में न्याय के दरवाजे पर दे रहा दस्तक

नई दिल्लीः नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति व उपहार सिनेमा अग्निकांड (delhi cinema fire) के अन्य पीड़ितों के परिवारों को घटना के 26 साल बाद भी इंसाफ की तलाश है। कृष्णमूर्ति का घर घटना के शिकार हुए उनके दो बच्चों के फोटो फ्रेम के साथ शांत है। वह अपने बच्चों उन्नति और उज्जवल के लिए न्याय की तलाश में लगे हैं। वे अंतिम सांस तक लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। न तो वे और न ही उनके बच्चे जानते थे कि उस दुर्भाग्यशाली शाम को एक फिल्म उनके जीवन को उलट कर रख देगी। कुछ ही घंटों में चार लोगों का एक खुशहाल परिवार दो सदस्यों में सिमट गया।

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छब्बीस साल पहले नई दिल्ली में ग्रीन पार्क के उपहार सिनेमा में तब आग लग गई थी (delhi cinema fire), जब फिल्म बॉर्डर दिखाई जा रही थी। जून 1983 में, पुलिस उपायुक्त, लाइसेंसिंग ने संरचनात्मक और अग्नि सुरक्षा के प्रति लापरवाही के कारण चार दिनों के लिए सिनेमा का लाइसेंस निलंबित कर दिया था। द ग्रीन पार्क थिएटर एंड एसोसिएटेड (पी) लिमिटेड (जो उपहार सिनेमा चलाता था), ने दिल्ली उच्च न्यायालय से स्थगनादेश प्राप्त किया। स्थगन आदेश के कारण, सिनेमा को केवल अस्थायी परमिट जारी किए गए थे और थिएटर मालिकों सुशील और गोपाल अंसल ने लाइसेंसिंग प्राधिकरण से दो-दो महीने की अवधि के लिए 14 साल के लिए 13 जून तक अस्थायी परमिट प्राप्त किए।

1997 में, जिस दिन उपहार में आग लगी थी, अपराह्न् 4.55 बजे घने धुएं के गुबार ने हॉल के बालकनी वाले हिस्से को घेर लिया। आग बुझाने के लिए कोई रास्ता न होने और लोगों की मदद के लिए आने जाने के कारण बालकनी में बैठे लोगों ने खुद को फंसा हुआ पाया। शाम 7 बजे तक 28 परिवारों के 59 लोगों की मौत हो चुकी थी। इनमें उन्नति (17) और उज्जवल (13) शामिल थे।

त्रासदी के 17 दिन बाद पीड़ितों के परिवारों के लिए कृष्णमूर्ति ने 30 जून, 1997 को एवीयूटी (एसोसिएशन ऑफ द विक्टिम्स ऑफ उपहार ट्रेजेडी) का गठन किया। नौ परिवारों संघ के रूप में शुरू होकर अब यह 28-परिवारों का पंजीकृत संघ है। 24 जुलाई, 1997 को दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा द्वारा जांच करने के साथ शुरू हुई आग की घटना की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को स्थानांतरित कर दी गई थी।

15 नवंबर को सीबीआई ने सुशील अंसल, गोपाल अंसल और एचएस पंवार सहित 16 आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। 31 जुलाई, 2000 के एक आदेश में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुख्य मामले के लिए एवीयूटी द्वारा दायर याचिका में ट्रायल कोर्ट को 16 अक्टूबर तक आरोप तय करने का निर्देश दिया। अदालत ने 27 फरवरी, 2001 को सभी 16 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए। अप्रैल में सुशील अंसल ने आरोप तय करने के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका दायर की।

4 अप्रैल, 2002 को, उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट को 15 दिसंबर तक मामले को खत्म करने के लिए कहा। अदालत ने कहा, ट्रायल कोर्ट भी 15 दिसंबर 2002 तक मुकदमे को पूरा करने के लिए तेजी से कदम उठाएगी। 27 जनवरी, 2003 को अंसल की थिएटर पर फिर से कब्जा करने की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि सबूतों की के लिए घटना स्थल को संरक्षित किया जाना है।

4 सितंबर, 2004 से 20 अगस्त, 2007 तक अदालत ने अभियुक्तों के बयान दर्ज किए। बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही दर्ज की। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) ममता सहगल ने थिएटर का निरीक्षण किया। अभियुक्तों ने तर्क देना शुरू किया और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे दलीलें पेश करने के लिए सीबीआई की ओर से पेश हुए। एवीयूटी ने 18 मई, 2007 को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और समय सीमा के भीतर मुकदमे को पूरा करने की मांग की। 22 अक्टूबर, 2007 को अदालत ने फैसले की तारीख 20 नवंबर तय की।

फैसले की तारीख को अदालत ने मुख्य मामले में सुशील और गोपाल अंसल समेत सभी 12 आरोपियों को दोषी करार देते हुए दो साल कैद की सजा सुनाई, तब तक चार आरोपितों की मौत हो चुकी थी। हाई कोर्ट ने डेढ़ महीने बाद अंसल बंधुओं और दो अन्य आरोपियों को जमानत दे दी थी। हालांकि, उसी वर्ष 11 सितंबर को, सुप्रीम कोर्ट द्वारा उनकी जमानत रद्द करने के बाद अंसल को तिहाड़ जेल भेज दिया गया था।
19 दिसंबर, 2008 को उच्च न्यायालय ने अंसल बंधुओं को दोषी ठहराने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन उनकी सजा को दो साल से घटाकर एक साल कर दिया।

2009 में, सुप्रीम कोर्ट ने सजा बढ़ाने और आरोपों में बदलाव के लिए एवीयूटी द्वारा दायर एक याचिका पर नोटिस जारी किया। सीबीआई ने भी वृद्धि की मांग के लिए एक अपील दायर की। बाद में अप्रैल, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसल, सीबीआई और एवीयूटी की अपीलों पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। 5 मार्च 2014 को न्यायाधीशों ने अपना फैसला दिया। एक न्यायाधीश ने एक साल की सजा सुनाई, दूसरे ने अंसल बंधुओं को पहले से ही सजा सुनाई गई अवधि के लिए सजा सुनाई। इस पर मामला तीन जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया।

एक साल और चार महीने बाद, अगस्त 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने अंसलों बंधुओं को 60 करोड़ रुपये का जुर्माना भरने के बाद रिहा करने की अनुमति दी। एक नया ट्रॉमा सेंटर स्थापित करने के लिए दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से राशि का भुगतान किया जाना था, जिसे अब एम्स जय प्रकाश नारायण एपेक्स ट्रॉमा सेंटर कहा जाता है। इसके अलावा एचएस पंवार को दो साल की सजा इस शर्त पर दी गई थी कि अगर वह ट्रॉमा सेंटर के लिए 10 लाख रुपये का भुगतान करते हैं, तो सजा की अवधि कम हो जाएगी।

2017 में एवीयूटी और सीबीआई द्वारा दायर समीक्षा याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने गोपाल अंसल को शेष एक साल की जेल की सजा काटने के लिए कहा, जबकि उनके बड़े भाई सुशील को उम्र से संबंधित जटिलताओं को ध्यान में रखते हुए कैद से राहत दी। हालांकि, 19 अगस्त, 2015 के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार ट्रॉमा सेंटर के लिए 30-30 करोड़ रुपये जुर्माना का आदेश बरकरार रखा गया था।

20 फरवरी, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने एवीयूटी द्वारा दायर एक उपचारात्मक याचिका को खारिज कर दिया। 8 नवंबर, 2021 को दिल्ली की एक अदालत ने सबूतों से छेड़छाड़ मामले में अंसल बंधुओं को सात साल की जेल की सजा सुनाई और प्रत्येक पर दो करोड़ पच्चीस लाख रुपये का जुर्माना लगाया। बाकी पर तीन-तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। पिछले साल 18 जुलाई को प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश, पटियाला हाउस अदालत ने अंसल व दिनेश चंद्र शर्मा (अहलमद, जिन पर आरोप लगाया गया था) के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित सजा के आदेश को बरकरार रखा था।

19 जुलाई, 2022 को पटियाला हाउस अदालतों ने सजा पर आदेश पारित किया और सात साल की सजा को घटाकर पहले की अवधि यानी आठ महीने और 12 दिन कर दिया। न्यायाधीश ने कहा, पीड़ितों के संघ से कहा, हम आपके साथ सहानुभूति रखते हैं। कई लोगों की जान चली गई, जिसकी भरपाई कभी नहीं की जा सकती। लेकिन आपको यह समझना चाहिए कि दंड नीति प्रतिशोध के बारे में नहीं है। हमें उनकी (अंसल्स) उम्र पर विचार करना होगा। आपने कष्ट उठाया है, लेकिन उन्हें भी भुगतना पड़ा। एवीयूटी ने साक्ष्य से छेड़छाड़ मामले में सजा बढ़ाने की मांग को लेकर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। याचिका में कहा गया है कि जिला न्यायाधीश यह विचार करने में विफल रहे हैं कि दस्तावेजों से छेड़छाड़ का अपराध बेहद गंभीर प्रकृति का है, क्योंकि यह पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली को प्रभावित करता है।

दलील में कहा गया है कि सत्र अदालत यह विचार करने में विफल रही कि यह एक ऐसा मामला है जो आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़े पैमाने पर जनता के विश्वास को चकनाचूर कर देता है। इसके लिए अधिकतम सजा की आवश्यकता होती है, ताकि यह उन लोगों के लिए एक निवारक के रूप में काम करे जो दस्तावेजों से छेड़छाड़ करने का सपना भी देखते हैं। याचिका में कहा गया है कि अंसल बंधुओं ने मुख्य मामले में उन्हें दी गई स्वतंत्रता का दुरुपयोग किया और अदालत के कर्मचारियों के साथ आपराधिक साजिश रचने के बाद सबूतों के साथ छेड़छाड़ की।

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