WTC में हार, बीसीसीआई पर सवाल

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भारतीय क्रिकेट के भविष्य को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। लंदन के ओवल मैदान पर आईसीसी विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप (WTC) के फाइनल में मिली करारी हार ने यह मुद्दा गर्मा दिया है कि जो सीनियर खिलाड़ी परफॉर्म नहीं कर पा रहे हैं, उन्हें कब तक ढोया जाएगा ? टीम इंडिया में शामिल होने के लिए कई प्रतिभाशाली युवा दस्तक दे रहे हैं, मगर कुछ तथाकथित वरिष्ठ खिलाड़ी इनका रास्ता रोके हुए हैं। केवल पुराने रिकॉर्ड के आधार पर ये वरिष्ठ कब तक खेलते रहेंगे इसलिए अब समय आ गया है, जब बीसीसीआई को कुछ कठोर फैसले करने चाहिए। पहले आइए विश्लेषण करते हैं उन कारणों का, जिनकी वजह से हमारी टीम को ऑस्ट्रेलिया से करारी शिकस्त मिली। जबसे क्रिकेट के तीन प्रारूप हो गए हैं, बहुत कम खिलाड़ी ऐसे हैं जो तीनों फॉर्मेट में अच्छा प्रदर्शन कर पा रहे हैं। इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल ने टी-20 को अधिक हवा दे दी है। यह फॉर्मेट खिलाड़ियों, दर्शकों, विज्ञापनदाताओं और बीसीसीआई सभी को खूब लुभावना लगता है। आईपीएल का फाइनल 29 मई को खत्म हुआ और 07 जून को विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप का फाइनल आरंभ हो गया। इन दोनों के बीच समय इतना कम था कि टीम के सदस्य सामंजस्य नहीं बिठा सके। 20 ओवर के तूफानी मैच के बाद पांच दिन तक चलने वाला टेस्ट मैच।

बीसीसीआई कह सकती है कि अंतर्राष्ट्रीय मैचों के निर्धारण (शेड्यूलिंग) में उसका कोई हाथ नहीं है, मगर विश्व क्रिकेट में उसका इतना प्रभाव है कि वह आईसीसी से इसके लिए अनुरोध तो कर ही सकती है। इससे यह भी लगता है कि बीसीसीआई ने ओवल में होने वाले फाइनल मैच को बहुत हल्के में लिया। उसकी पूरी रणनीति ही उल्टी पड़ गई। आईपीएल के अधिकतर हीरो इस अहम मुकाबले में फिसड्डी साबित हुए। हमारी टीम चैथी बार आईसीसी का फाइनल हारी है। भारत ने पिछले दस साल से आईसीसी का कोई टूर्नामेंट नहीं जीता है। टीम इंडिया ने आखिरी आईसीसी खिताब 2013 में महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में इंग्लैंड को हराकर चैम्पियंस ट्राफी के रूप में जीता था। टीम के कप्तान को बहुत सोच-विचार कर निर्णय लेने पड़ते हैं। एक गलत निर्णय का पूरे मैच पर असर पड़ता है। ओवल में कप्तान रोहित शर्मा ने टॉस तो जीता लेकिन गेंदबाजी करने का आत्मघाती फैसला कर लिया। लगता है, उन्हें अपने बल्लेबाजों पर विश्वास नहीं था वर्ना पहले बैटिंग का फैसला करते। टेस्ट मैच का एक शाश्वत नियम है कि पहले बल्लेबाजी करके बड़ा स्कोर खड़ा किया जाए ताकि विपक्षी टीम दबाव में रहे, लेकिन रोहित ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने पहले बल्लेबाजी करने का अवसर कंगारू टीम को दे दिया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने पहली पारी में 469 रनों का स्कोर बना डाला, यानी अब दबाव भारत पर आ गया। वह तो गनीमत रही कि टीम इंडिया ने फालोऑन बचा लिया, वर्ना और भद पिटती। एक बात और, टेस्ट मैच में चैथी पारी खेलना टेढ़ी खीर मानी जाती है लेकिन कप्तान रोहित के निर्णय ने ऐसे हालात पैदा किए कि चैथी पारी भारत को ही खेलनी पड़ी। इसका नतीजा 209 रनों की हार के रूप में सामने आया। विपक्षी टीम ने 444 रनों का पहाड़ जैसा लक्ष्य दे दिया, जिसके आगे हमारे बल्लेबाजों ने घुटने टेक दिए। हमारी गेंदबाजी भी औसत दर्जे की रही और कंगारू बल्लेबाजों ने दोनों पारियों में खूबर रन कूटे।

अश्विन को बाहर रखना पड़ा भारी

विश्व के नंबर वन स्पिन गेंदबाज आर अश्विन को रोहित शर्मा ने अंतिम एकादश में शामिल नहीं किया। चार तेज गेंदबाज खिलाने का निर्णय गलत साबित हुआ। एकमात्र स्पिनर रवींद्र जडेजा थे। अश्विन को जब नहीं खिलाना था, तो उन्हें लंदन की सैर ही क्यों कराई गई। इस मामले में कोच राहुल द्रविड़ भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। टीम चयन में कप्तान को उचित सलाह देना कोच का दायित्व है। इस हार के बाद विदेशी कोच लाने की बात भी उठी है। हेड कोच द्रविड़ का रवैया बहुत रक्षात्मक है। कई विशेषज्ञ अश्विन को बाहर बैठाने की आलोचना कर रहे हैं जबकि कप्तान का कहना है कि बहुत सोच-विचार कर यह निर्णय किया गया। सवाल है कि आप अपने नंबर वन गेंदबाज को बाहर कैसे रख सकते हैं ? आखिर, ऑस्ट्रेलिया के मुख्य स्पिनर नाथन लियोन ने चैथी पारी में भारत के चार विकेट झटके या नहीं। दो साल पहले जब भारतीय टीम इंग्लैंड गई थी, तब भी अश्विन को कोई टेस्ट मैच नहीं खिलाया गया। वह बाहर ही बैठे रह गए। यह दर्शाता है कि टीम चयन में खोट है। अश्विन ने टेस्ट मैचों में रन भी बनाए हैं। उनके पांच शतक हैं, इसके बावजूद उनको नजरंदाज कर दिया गया। बीसीसीआई समेत पूरे देश को इस हार से बड़ा झटका लगा है। अब भारतीय टीम को जुलाई में वेस्टइंडीज के दौरे पर जाना है। वहां दो टेस्ट मैच होंगे। कप्तानी रोहित शर्मा को ही दी गई है, लेकिन उन्हें कप्तानी और बल्लेबाजी दोनों में दम दिखाना होगा, नहीं तो यह दौरा उनके लिए आखिरी भी साबित हो सकता है। अगर प्रदर्शन में सुधार नहीं दिखा तो रोहित शर्मा कप्तानी से हटाए जा सकते हैं। कप्तान यदि रन नहीं बनाए तो पूरी टीम पर असर पड़ता है। रोहित का बल्ला पिछले कुछ समय से बिल्कुल खामोश है। आगामी वनडे विश्व कप पर ही उनको ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसे में टेस्ट मैच के लिए किसी नए नाम पर विचार हो सकता है।

अजिंक्य रहाणे की वापसी हुई है। वेस्टइंडीज में रहाणे का उपकप्तान की जिम्मेदारी सौंपी गई है, यदि अच्छा प्रदर्शन जारी रहा तो उन्हें कप्तानी की जिम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है। एकाध मौकों पर रहाणे ने कप्तानी भी की है और ऑस्ट्रेलिया में भारत को जिताया भी है। सीमित ओवर के क्रिकेट में रोहित की कप्तानी की अग्निपरीक्षा इसी साल भारत में होने वाला वनडे विश्व कप है। रोहित आक्रामक कप्तान नहीं हैं, जैसा कि विराट कोहली थे। आधुनिक क्रिकेट में रक्षात्मक रवैया सफल नहीं रहता। इसी नाते ओवल टेस्ट के बाद रोहित शर्मा पर सवाल उठ रहे हैं। रोहित की कप्तानी पर खतरा साफ मंडरा रहा है। वैसे भी उनका टेस्ट करियर उतार चढ़ाव वाला रहा है। अपनी टीम में बड़े नाम वाले कई खिलाड़ी है। चेतेश्वर पुजारा ने अपने को टेस्ट क्रिकेट के विशेषज्ञ के रूप में स्थापित किया है। आईपीएल से वह दूर हैं और इंग्लैंड में काफी दिनों से रहकर काउंटी क्रिकेट खेल रहे थे, मगर यह अनुभव भी काम नहीं आया। पुजारा दोनों ही पारियों में नाकाम रहे। इसके बाद पूर्व कप्तान विराट कोहली का नंबर आता है। संकट में फंसी टीम को निकालने की जिम्मेदारी उन्होंने नहीं निभाई, फिर इतना लंबा अनुभव किस काम का ? खराब शाॅट खेलकर आउट हो जाना उनकी फितरत है। ओवल में जब उनसे बड़ी पारी खेलने की उम्मीद थी, तो उन्होंने निराश किया। कोहली जैसे खिलाड़ी से टीम को ढेरों उम्मीद रहती है। जब मौके पर रन नहीं बनेंगे, तब आपका अनुभव और प्रतिष्ठा किस काम की रह जाएगी। शुभमन गिल ने आईपीएल में खूब रन बनाए लेकिन इस मैच में उनके बल्ले से 13 और 18 रन निकले। जब टाॅप आर्डर के बल्लेबाज रन नहीं बनाएंगे तो मध्य और निचले क्रम पर दबाव आ जाता है और ओवल में इसका नजारा साफ दिखा।

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उम्रदराज व घायल हो रहे हैं कई खिलाड़ी

अगली विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप सीरीज का अंत 2025 में लाडर््स के मैदान पर होगा। तब तक रोहित शर्मा और अश्विन 38 तथा पुजारा और रहाणे 37 साल के हो जाएंगे। विराट कोहली और जडेजा 36 जबकि मोहम्मद शमी की उम्र 34 साल हो जाएगी। ऐसे में बीसीसीआई को भविष्य की टीम तैयार करनी चाहिए। यही वक्त की मांग है। आखिर उम्रदराज हो रहे खिलाड़ियों का विकल्प तो खोजना ही होगा। चोटिल होने के कारण जसप्रीत बुमराह और ऋषभ पंत लंबे समय से खेल नहीं रहे हैं जबकि ये दोनों टेस्ट मैचों में कप्तान के लिए भी दावेदार थे। बुमराह अभी 29 साल के हैं। अक्टूबर-नवंबर में होने वाले वनडे विश्व कप में उनकी वापसी की उम्मीद की जा रही है। बुमराह पर अधिक बोझ डालना उचित नहीं होगा। तीनों प्रारूपों में उन्हें खिलाने से चोट की समस्या उभर सकती है। इस बीच, विराट कोहली को दोबारा कप्तान बनाने की अटकलें भी सुनाई दे रही हैं, पर क्या वह इसके लिए तैयार होंगे ? दरअसल, भारत के हालिया प्रदर्शन को देखते हुए कप्तान का मसला काफी अहम हो गया है। केएल राहुल ने दक्षिण अफ्रीका और बांग्लादेश में टेस्ट मैचों में कप्तानी की, लेकिन वह भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए। आईपीएल में वह लखनऊ टीम के कप्तान हैं लेकिन टूर्नामेंट के बीच ही घायल होकर टीम से बाहर हो गए। वह चोट की समस्या से जूझ रहे हैं। घायल खिलाड़ियों में श्रेयस का नाम भी है, जो पूरे आईपीएल के दौरान एक भी मैच नहीं खेल पाए। उनकी जगह कोलकाता की टीम को नया कप्तान चुनना पड़ा। श्रेयस बहुत दिनों से टीम में जगह बनाने के लिए प्रयासरत थे। जब मौका मिला तो उन्होंने कुछ शानदार पारियां भी खेलीं। अगली टेस्ट चैम्पियनशिप का चक्र भारत के वेस्टइंडीज दौरे से शुरू होगा। आईपीएल में धूम मचाने वाले युवा बल्लेबाजों यशस्वी जायसवाल, ऋतुराज गायकवाड़ के साथ ही मुकेश कुमार, जयदेव उनादकट व वनदीप सैनी को वेस्टइंडीज दौरे के दौरान अपना दम दिखाकर टीम में जगह पक्की करनी होगी।

आदर्श प्रकाश सिंह

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