पतनोन्मुखी भारतीय राजनीति बन रही घातक

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आज नैतिक मूल्यों का ह्रास करते हुए विपक्षी दलों के प्रतिनिधि नेताओं ने अपने पराजय को पराजय न मानकर अपनी जीत का जो दुंदुभि-घोष किया है उसमें मुझे कुत्सित चिंतन के वे विषाणु दृष्टिगत हो रहे हैं जिनकी संक्रमणशीलता भारत के भविष्य के लिए एक महान संत्रास सिद्ध होगी।

अकेली बीजेपी पूरे गठबंधन पर भारी

सबसे बड़ी चिंतनीय स्थिति यह है कि इन विषाणुओं के प्रश्रयी वे महान कहलाने वालें ‘दिग्गज नेता’ हैं जिनसे हमारे देश की अस्मिता अपना संरक्षण चाहती है। कभी-कभी तो मुझे आश्चर्य होता है इस बात को लेकर कि देशहित और जनहित की बातें करने वाले हमारे ‘ये कर्णधार’ अपनी क्षुद्र सोच के स्वार्थ की जंजीर में आखिर बँध गए तो क्यों बँध गए ? क्या हमारे देश को इनसे यही अपेक्षा थी कि उसकी मजबूती और विकास पर नहीं ध्यान देते हुए ये अपने परिवार, अपनी जाति, अपने वर्ग और अपने क्षेत्र के लिए सोचें और भोली-भाली जनता की दशा को दरकिनार करते हुए उसे झूठे प्रलोभन देते हुए वंचना की रेगिस्तानी मरीचिका दिखा कर अपना ‘वोट-बैंक’ भुनाएं और हायतौबा मचाएं कि वर्तमान सरकार के मुखिया को नैतिकता को महत्व देते हुए इस्तीफा दे देनी चाहिए? मैं न्याय के आधार पर इनसे पूछना चाहता हूँ कि क्यों वर्तमान सरकार के मुखिया को इस्तीफा देना चाहिए जबकि वे अपने दल के दो सौ चालिस सीटों को प्राप्त कर आज भी सर्वोपरि हैं ? आज इनके ‘महागठबंधन’ के सभी दल मिलकर भी अकेले भारतीय जनता पार्टी के संख्या-बल के बराबर नहीं है।

चुनावी जीत और हार ये कोई मायने नहीं रखते – जब राष्ट्र-हित औन जन-हित को महत्व दिया जाता है क्योंकि इस चुनाव के मद्दे नजर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जिसे हारना चाहिए वह जीत गया है और जिसे जितना चाहिए वह हार गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश के विकास के सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात एक करते हुए हमारे प्रधनमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनके संगी-साथियों ने जितना काम किया है उतना किसी भी प्रधानमंत्री और किसी भी सरकार ने नहीं। किंतु विपक्षी दलों ने अपनी कुटिल चाल के तहत, देश के विकास के लिए किए गए उनके कार्यों के प्रति अपनी आँखें बंद कर ऐसी उल्लू की लकड़ी फेरी कि देश की अधिकांश जनता – प्रमुखतः मोदी जी और योगी जी को जी-जान से चाहने वाले लोग भी, उनके विरोधी हो गए।

फिर हावी होगा परिवारवाद

 बहुसंख्यक हिंदू-बाहुल्य क्षेत्रों में भी उनके प्रभाव को नकार दिया गया और अपने नकली भाषणों के नकली वादों के जाल में भोली-भाली जनता को फँसाकर ऐसे उम्मीदवारों को समर्थन प्राप्त कर जिताया गया जिनका उन क्षेत्रों की जनता से पहले कोई जुड़ाव ही नहीं रहा। ये ‘माटी के माधव’ जीत तो गए हैं पर अब उन क्षेत्रों की जनता को पता चल जाएगा कि इनको जिताने का निर्णय उसके लिए कितना महंगा पड़ा। ये किसी परिवार विशेष के लिए समर्पित उम्मीदवार, लोकसभा में पहुँचकर उस परिवार विशेष के मुखिया या दल विशेष के मुखिया के हित के लिए ही समर्पित रहेंगे, जन-हित और समाज-हित से उनका कोई लेना-देना नहीं रहेगा।

आज चुनाव के बीतने के बाद, जो देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के लिए परिवारवाद को पुनः हावी करने की चाल चली जा रही है उसमें घृतराष्ट्री मोहांधता नहीं तो क्या है ? क्या इस चाल को चलने वाले अनुभवी नेता नहीं जानते कि उनकी यह चाल भले उनके मंसूबे को इस सोच से राहत देगी कि उन्होंने उस परिवार के प्रति अपनी वफादारी निभाई किंतु देश की वफादारी के प्रति उनकी बेरुखी उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।

एक सौ चालीस करोड़ की आबादी वाला हमारा देश उनसे स्वयं की मजबूती का आग्रह करता है और उसकी मजबूती, ‘फीलपांवी विकास’ यानी विषम विकास पर नहीं निर्भर करती। वह एक परिवार, एक जाति, एक वर्ग और एक क्षेत्र के विकास पर निर्भर नहीं करती। उसके अस्तित्व को सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रीयता को महत्व देना होगा, देश की सम्पूर्ण जनता और देश की संस्कृति को महत्व देना होगा।

आज जो चुनाव के नतीजे आए हैं उनमें गुंडे, बदमाशों और आतंकवादियों को जीतने का मौका मिला है जिन जीत के मूल में पतनोन्मुखी राजनीति के विषाणुओं की संक्रमण-शीलता ही है। इनको जिताने का समर्थन देने वाले नेताओं ने यह नहीं देखा कि देश-हित के लिए कितने घातक हैं। इनका भय से भरा रूप, देश की जनता को संत्रास के सिवाय क्या देगा ? हमारी युवा-पीढ़ी इनसे लूट-पाट, शोषण और आतंकवाद से क्या शिक्षा लेगी ? क्या यही न कि वह भी लूट-पाट करे, देश-हित को ताक पर रखकर जनता को डरा-धमका कर, कुकृत्यों में लिप्त रहे – फिर क्या वह एक न एक दिन ‘अपने गुंडे जी’, ‘अपने माफिया जी’ और ‘अपने श्रीमान आतंकवादी जी’ की तरह एम.एल.ए. या एम.पी. हो ही जाएगी।

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अब आप ही अपनी अनुभवी दूरगामी दृष्टि को दौड़ाकर अपनी विराट चेतनायें मेरी चिंता को समन्वित करते हुए बताए कि इस तरह की सोच वाले जन-प्रतिनिधियों को किसी हत्यारे गुंडे, भूमाफिया और आतंकी को ‘गरीबों का मसीहा’ और ‘अमर शहीद’ का दर्जा देकर अपना वोट-बैंक सुरक्षित रखना, उनके मरने पर आँसू बहाना (भले ही वे घड़ियाली आँसू हों।) देश-भक्ति का कौन सा नमूना को पेश करते हैं ? अबकी बार के चुनाव में यही तो ‘विजय-ब्राण्ड’ चला है। जिससें ‘नकली’, ‘असली’ पर भारी होने का ‘हो हल्ला’ मचा रहा है। राम की ‘भक्ति की चमक’ छीनकर, दुर्नीतियों का रावण जीत का दुंर्दुभि-घोष कर रहा है।

– धर्मनाथ प्रसाद (भू.पू. प्रवक्ता, सनातन धर्म इण्टर कालेज, उरई)
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)

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