लखनऊः फसल चक्र के बारे में किसानों को ज्यादा जानकारी तो नहीं है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने सरकार के निर्देश पर ऐसी जानकारियां देनी शुरू कर दी हैं। किसानों को अब यह समझना चाहिए कि उनके खेतों से ज्यादा से ज्यादा कमाई किस तरह से की जाए।
बख्शी का तालाब स्थिति कृषि विज्ञान केंद्र में किसानों को लागत के एवज में लाभ का तुलनात्मक अध्ययन सिखाया जा रहा था। उस दौरान विशेषज्ञों के सामने तमाम चैंकाने वाले तथ्य सामने आए यानी किसानों को फसल चक्र के बारे में पर्याप्त जानकारी ही नहीं है। यदि उन्होंने दस साल पहले अपने पिता को अरहर बोते हुए देखा है, तो आज भी वह अरहर ही बो रहे हैं। इनको उत्पादन और लाभ में बड़ा अंतर तो नहीं मिला, लेकिन यह किसी प्रकार का जोखिम उठाए बिना ऐसी ही फसल बोने में संतुष्ट हैं। किसानों से जब फसल चक्र के बारे में ज्ञान हासिल करने के लिए कहा गया, तो उसमें भी वह अक्षम दिखे।
आज भी यहां ऐसी समस्या है कि फसलों में पोषण प्रबंधन, मृदा बांझपन, मृत मृदा आदि की जानकारी कहां से लें। हालांकि, कार्यशालाओं में ऐसी जानकारियां पाकर कुछ किसान खुश हैं कि वह लाभ वाली फसल को ही बोएंगे या फिर खेती के तरीके में बदलाव करेंगे। लखनऊ और आस-पास के कई जिलों में खेती योग्य भूमि है लेकिन इनमें सालों से कोई फसल नहीं बोई जा रही है। किसान वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि किसान अपने खेत की मिटृटी की जांच करा लें, तो उनको उसकी गुणवत्ता की जानकारी मिल जाएगी।
यदि खेत की मिट्टी में कोई गुणवत्ता नही है, तो उसमें सुधार संभव है। फसल चक्र कृषि सुधार का अंग है यानी यदि किसी खेत की मिट्टी में बंजर होने की संभावना बढ़ रही है तो उसमें ऐसी फसल बोई जानी चाहिए, जो बंजर होने से रोके और मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ाए लेकिन यदि मिट्टी में बोई जाने वाली फसलें ज्यादा उत्पादन नहीं दे रही हैं तो अदल-बदल कर बुवाई करने की प्रक्रिया अपनानी चाहिए। ऐसा करने से भी मिट्टी की उत्पादकता को प्रभावित किए बिना ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। पूरी कोशिश करनी चाहिए कि मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट किए बिना उत्पादन बढाना चाहिए। यही फसल चक्र का सही मायने में मतलब है।
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एक चेन की तरह है फसल चक्र –
एनबीआरआई के रिटायर्ड वैज्ञानिक शरद चंद बताते हैं कि ऐसे बीज नहीं बनाए जा सके हैं, जिनसे उत्पादन दोगुना हो सके। वह कहते हैं कि एक चेन में कुछ कड़ियां होती हैं। सभी यदि मजबूत हैं, तो चेन का महत्व है अन्यथा वह कबाड़ में फेंक दी जाती है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि किसानों के लिए चेन की कड़ी में कम सिंचाई में तैयार की जाने वाली फसल या फिर सस्ती सिंचाई के संसाधन, टिकाऊ बाजार यानी जब फसल तैयार हो तो उसे आसानी से सही दामों मंे बेचा जा सकेे। इसके अलावा जब कोई फसल बोई जाने वाली हो, उससे पहले खेत की मिट्टी की जांच जरूर करवाएं। कई बार ऐसा होता है कि जिस मिट्टी में उक्त फसल बोई गई, वह उसमें उत्पादित नही होने वाली है, साथ ही उसकी आवश्कता वाली जलवायु क्षेत्र में नही है।
यह बातें जिन्होंने गहनता के साथ सीख ली, उन्होंने फसल चक्र का ज्ञान हासिल कर लिया। अब समस्या यह है कि खेती की चेन को सुधारने के लिए किसान चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा है। बिजनौर क्षेत्र के माती में तमाम खेत जोते जा चुके हैं, लेकिन फसल चक्र से किसान अनजान हैं इसलिए बारिश के दिनों तक खेत खाली ही रहने वाले हैं।
– शरद त्रिपाठी की रिपोर्ट
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