नई दिल्लीः दिल्ली की राऊज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की ओर से प्रिया रमानी के खिलाफ दायर मानहानि के केस को खारिज करते हुए प्रिया रमानी को बरी कर दिया है। एडिशनल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने प्रिया रमानी को बरी करते हुए कहा कि किसी महिला को दशकों के बाद भी अपनी शिकायत रखने का हक है। कोर्ट ने पिछले 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
कोर्ट ने प्रिया रमानी की इस दलील को नोट किया कि दो दशक पहले की घटना को प्रकाशित किया गया। घटना के बाद कोई शिकायत नहीं की गई। प्रकाशित आलेख के कंटेंट पर प्रिया रमानी ने कोई विवाद नहीं किया। कोर्ट ने प्रिया रमानी की ओर से वोग मैगजीन में छपे आलेख के बारे में दिए गए बचाव की दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कार्यस्थल पर यौन प्रताड़ना के मामले हुए हैं। घटना के समय विशाखा गाइडलाइंस नहीं आई थी। आरोपित के आरोपों में सामाजिक अपमान की भावना निहित है। समाज को यौन प्रताड़ना का पीड़ित पर होने वाले असर को ध्यान में रखना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अच्छी सामाजिक प्रतिष्ठा वाला व्यक्ति भी यौन प्रताड़ना कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि यौन प्रताड़ना किसी की गरिमा और स्वाभिमान को चोट पहुंचाते हैं। छवि का अधिकार गरिमा के अधिकार की रक्षा नहीं कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि किसी महिला को दशकों के बाद भी अपनी शिकायत रखने का हक है। कोर्ट ने पौराणिक उल्लेख करते हुए कहा कि सीता की रक्षा में जटायु आए थे। कोर्ट ने फैसले में महाभारत का भी जिक्र किया है। कोर्ट ने कहा कि भारत में महिलाओं को बराबरी मिलनी चाहिए। संसद ने महिलाओं की रक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रिया रमानी की ओर से वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने कहा था कि एमजे अकबर के खिलाफ यौन प्रताड़ना के आरोप सही हैं। उसके बारे में किए गए ट्वीट मानहानि वाले नहीं थे और वे जनहित में किए गए थे। उन्होंने कहा था कि यौन प्रताड़ना के आरोपित को उच्च पदों पर नहीं होना चाहिए जो कि एक जनहित था। रेबेका जॉन ने कहा था कि एमजे अकबर को गजाला वहाब और पल्लवी गोगोई के आरोपों से परेशानी क्यों नहीं हुई। उनके आरोप ज्यादा गंभीर थे।
सुनवाई के दौरान एमजे अकबर की ओर से वकील गीता लूथरा ने कहा था कि प्रिया रमानी ने जो आरोप लगाए वो उसे साबित करने में नाकाम रही है। लूथरा ने कहा था कि एक रिपोर्टर को कानून की बुनियादी जानकारी होनी चाहिए। प्रेस और मीडिया का कर्तव्य है कि वो लोगों को शिक्षित करे। उन्होंने कहा था कि सोशल मीडिया पर बिना कुछ वेरिफाई किए कुछ कहना आसान होता है। लूथरा ने कहा था कि 2013 के कानून के मुताबिक शिकायत तीन महीने में करनी होती है, लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ नहीं किया गया। एक व्यक्ति किसी की छवि को सार्वजनिक रूप से खराब कर सकता है। उन्होंने कहा था कि रमानी ने एमजे अकबर को शिकारी कहा और इसका कोई सबूत नहीं है।
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एमजे अकबर ने 15 अक्टूबर, 2018 को प्रिया रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। उन्होंने प्रिया रमानी द्वारा अपने खिलाफ यौन प्रताड़ना का आरोप लगाने के बाद ये आपराधिक मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया। 18 अक्टूबर, 2018 को कोर्ट ने एमजे अकबर की आपराधिक मानहानि की याचिका पर संज्ञान लिया था। 25 फरवरी, 2019 को कोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री और पत्रकार अकबर द्वारा दायर आपराधिक मानहानि के मामले में पत्रकार प्रिया रमानी को जमानत दी थी। कोर्ट ने प्रिया रमानी को 10 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी थी। कोर्ट ने 10 अप्रैल, 2019 को प्रिया रमानी के खिलाफ आरोप तय किए थे।