लखनऊः नया महापौर मिलने पर भी नगर निगम लखनऊ की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। महीनों पहले कूड़ा प्रबंधन के लिए मेसर्स इकोग्रीन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को प्राइमरी कूड़ा कलेक्शन के लिए दिए गए वाहन इन दिनों फिर चर्चा में हैं। निगम इस कंपनी से ठोस अपशिष्ट उठवाता रहा है। बताया जा रहा है कि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन में लगाए गए वाहनों में ज्यादातर सही हालत में हैं। इसके बाद भी कुछ खास लोगों का दबाव है कि वाहन नए लिए जाएं। मजेदार बात यह है कि शहर को स्वच्छता सर्वेक्षण में पहले पायदान पर देखने की चाह रखने वाले अफसरों का ध्यान कूड़ा प्रबंधन की बजाय वाहन खरीदने पर ज्यादा है।
शहर का कूड़ा उठवाने के लिए नगर निगम की ओर से 604 वाहन कंपनी को उपलब्ध कराए गए थे। संस्था मेसर्स इकोग्रीन एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को नगर निगम ने टर्मिनेशन नोटिस 07 जुलाई 2023 निर्गत कराया था। इसके बाद महापौर सुषमा खर्कवाल और नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने कूड़ा संग्रह स्थल का निरीक्षण भी किया था। इसी दौरान नगर निगम को पता चला कि निगम के वाहनों में 384 क्रियाशील हैं। इनको अच्छी तरह से काम पर लगाने में कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा 220 वाहन देखरेख के अभाव में कमजोर हैं। सवाल यह है कि जो वाहन निगम ने उपलब्ध कराए थे, उनकी रखवाली में लापरवाही क्यों की गई ? निगम को यही बताया जाता रहा है कि कूड़ा प्रबंधन में वाहनों की कमी है। हालांकि, इनमें अब तक तमाम खराब वाहनों की मरम्मत भी कराई जा चुकी है।
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नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने खराब वाहनों को गलाने के लिए कहा जरूर था, लेकिन इसमें अपने वाहनों का जिक्र नहीं था इसीलिए केंद्रीय कार्यशाला में ही 113 वाहनों को फिट किया गया है। नगर निगम के बड़े अफसरों को यह बात रास नहीं आ रही है कि खराब वाहनों को मरम्मत करने के बजाय नए वाहन क्यों नहीं खरीदे जा रहे हैं जबकि जो वाहन कमजोर और कूड़ा प्रबंधन लायक नहीं हैं, उनको भी अपने ही कार्यशाला में सही कराने की कोशिश चल रही है। इससे निगम को बड़े बजट की दरकार नहीं रहेगी और पुराने वाहन काम आ जाएंगे। सूत्र बताते हैं कि कई वाहनों में मामूली फाल्ट थी और इनको चलाया जा सकता था। निगम के मंझे खिलाड़ी मानते हैं कि यह सब किसी और मंसूबे के कारण किया जा रहा था। मेसर्स इकोग्रीन ने कूड़ा प्रबंधन में 124 वाहन लगा रखे थे। पार्षदों ने भी आपत्ति जताई थी कि पड़ावघर से प्रोसेसिंग प्लांट तक ही इन वाहनों का उपयोग किया जाता है। यह वाहन इतनी जल्दी खराब नहीं हो सकते हैं। आखिर अंदरखाने में जो भी चल रहा था, नगर आयुक्त और महापौर के निर्णय से निगम का काफी धन खर्च होने से बच गया।
अचानक कम होने लगे बड़े वाहन
निगम के पास जेसीबी और हाईवा भी बड़ी संख्या में थे। तमाम कोशिशों के बाद भी आम आदमी की मदद में बड़े वाहनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जोन के स्थानीय अफसर यही बताते रहते हैं कि जोन में हाईवा और जेसीबी काफी कम हैं। जो हैं भी, उनमें तकनीकी खामी है। बारिश के दिनों में भी कई बड़े वाहनों को खराब बताया जा रहा है जबकि शिल्ट उठाने और डंपिंग में इनकी ही जरूरत पड़ती है।