नई दिल्लीः देखा जाए तो मौजूदा दौर हम सभी की जिंदगी का शायद सबसे अटपटा और उथल-पुथल वाला है और सबसे ज्यादा उलझन वाला भी है। आज लोगों की सबसे बड़ी चिंता है कि आगे जिंदगी कैसे चलेगी? कोरोनावायरस महामारी के दौरान जहां एक ओर लोग अपनी जिंदगी पटरी पर लाने की योजना बना रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर उन्हें यह चिंता सता रही है कि अगर स्थिति पूरी तरह से ठीक नहीं हुई, तो आने वाले दिनों में वे अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज कैसे भेजेंगे? यह चिंता वाकई वाजिब भी है। कोरोना वायरस का भारत की शिक्षा पर बड़ा असर पड़ा है। दरअसल, यूनेस्को ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार, कोरोना महामारी से भारत में लगभग 32 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है। देश में 85 प्रतिशत माता-पिता को अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता होने लगी है। उन्हें लगता है कि कोरोना के चक्कर में उनके बच्चों का भविष्य दांव पर है, जिंदगी की दौड़ में कहीं पिछड़ न जाएं और कहीं उनका पढ़ाई का साल खराब न हो जाए।
कुछ निजी स्कूल मीटिंग एप्लिकेशन जैसे जूम, माइक्रोसॉफ्ट टीम आदि के जरिए पढ़ा रहे हैं। लेकिन एक सर्वे के अनुसार, हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के सेटअप के लिए जरूरी सामान ही मौजूद नहीं हैं, सिर्फ इंटरनेट की सुविधा या लैपटॉप, टैबलेट की समस्या नहीं है, बल्कि समस्या ये भी है कि इस समय अधिकतर लोग घर से बैठे ऑफिस का काम कर रहे हैं। ऐसे में उनके पास एक ही लैपटॉप या कम्प्यूटर है, जिससे या तो उनके बच्चे की पढ़ाई का नुकसान होगा या उनके काम का।
जाहिर है, सरकारों को भी इस चिंता के बारे में पता है, इसलिए भारत के केंद्रीय बोर्ड सीबीएसई और आईसीएसई ने बची हुई परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। यह ऐलान भी आ गया है कि कॉलेजों और पेशेवर कोर्सेज में भी फाइनल परीक्षाएं नहीं होंगी। लेकिन उन बच्चों और उनके माता-पिता की समस्या अभी तक टली नहीं है, जो करियर की अहम पायदान पर खड़े हैं, जिन्हें उसी स्कूल या कॉलेज अगली क्लास तक का नहीं, बल्कि जिंदगी के अगले मुकाम तक का सफर तय करना है। जो इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, मैनेजमेंट या किसी प्रतियोगिता की तैयारी में जुटे हैं और जो देश-दुनिया के नामी-गिरामी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश करने को जद्दोजहद में लगे हैं।
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भारत में स्कूल जाने वाले करीब 26 करोड़ छात्र हैं। जाहिर है, ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए शहरों में स्कूलों के नया सत्र शुरू हो गए हैं, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर और गांव-देहातों में रहने वाले छात्र इस मामले में कहीं पीछे छूट रहे हैं। कोई नहीं जानता कि देश कोरोना से खतरे से निकलकर कब सामान्य जिंदगी में आएगा, ऐसे में अब सरकार के सामने ये चुनौती है कि वो स्कूल के इन छात्रों को कैसे साथ लेकर चलेगी।