खूंटीः खूंटी जिला दो साल पहले तक मुर्गी और अंडा उत्पादन में झारखंड में अपना अगल स्थान रखता था। लेकिन कोरोना ने आर्थिक रूप से पॉल्ट्री का व्यवसाय (poultry business) करने वालों की कमर ही तौड़ दी है, जिस शेड में सैकड़ों मुर्गियां रहती थीं, वहा अब पुआल और बेकार की वस्तुएं रखी हुई हैं। कोरोना संकट को लेकर हुए लॉकडाउन के कारण मुर्गी पालक किसानों को माटी के मोल पर अपने उत्पाद बेचने पड़े। इसके कारण उन्हें भारी नुकसान हुआ और अब स्थिति यह हो गयी है कि कार्यशील पूंजी के अभाव में पूरा व्यवसाय ही ठप हो गया। जानकारी के अनुसार खूंटी जिले में नौ पोल्ट्री (poultry business) कोआपरेटिव सोसाइटी हैं, जिनके सहयोग से हजारों लोग इस व्यवसाय से जुड़े थे। बताया गया कि कोरोना संकट के दौरान एक-एक सहयोग समिति को 25 से 30 लाख रुपये का नुकसान हुआ। कार्यशील पूंजी नहीं होने के कारण लोग अपना मुर्गी पालन का व्यवसाय शुरू नहीं कर पा रहे हैं।
पूंजी मिल जाए, तो आर्थिक स्थिति सुधारने का मिलेगा मौका
तोरपा प्रखंड के जागू गांव में व्यावसायिक मुर्गी पालन करने वाली मंजू बरवार कहती हैं कि स्वयंसेवी संस्था प्रदान के तकनीकी सहयोग और बैंकों की मदद से जागू, कसमार, बारकुली सहित दर्जनों गांवों के लोग पॉल्ट्री व्यवसाय से जुड़े थे, लेकिन कोरोना के कारण उन्हें काफी नुकसान हुआ और यह व्यवसाय पूरी तरह ठप है। उन्होंने कहा कि अब भी यदि उन्हें कार्यशील पूंजी मिल जाए, तो एक बार फिर ग्रामीणों को आर्थिक स्थिति सुधारने का मौका मिलेगा। गांव के ही बंधन धनवार, बुधन धनवार, आइची धनवार और जुली धनवार ने कहा कि अधिकतर मुर्गीयां मर गई और जो बिकी भी, वो औने-पौने दामों पर। इसके कारण उन्हें काफी घाटा हुआ। इधर, प्रदान के एक अधिकारी ने कहा कि मुर्गी पालक किसानों को कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराने की अपील किसानों ने जनजाीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और जिले के उपायुक्त शशि रंजन से की है। अब देखना है कि प्रशासन से उन्हें कब पूंजी मिल पाती है।
20 वर्षों के बाद कई महिलाएं बनी हैं आत्मनिर्भर
उल्लेखनीय है कि हो कि खूंटी जिले के गरीब परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को जोड़कर वर्ष 2002 में तोरपा प्रखंड में ब्रायलर मुर्गी पालन ( poultry business ) का कार्य स्वयंसेवी संस्था प्रदान द्वारा प्रारंभ किया गया था। 20 वर्षों के बाद ऐसी कई महिलाएं हैं, जो इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनी हैं और मुर्गीपालन जैसी आजीविका की गतिविधि से जुड़कर खुद का और अपने परिवार का भरण पोषण कर रहीं थीं। आदिवासी कल्याण विभाग के मार्गदर्शन में इन कार्यों की शुरुआत झारखण्ड में हुई थी, जिसमें स्वयंसेवी संस्था द्वारा आजीविका के कई प्रोटोटाइप विकसित किये गये, इनमें ब्रायलर मुर्गी पालन भी एक था। मुर्गीपालन की तकनीकी जानकारी, प्रबंधन, बाज़ार व्यवस्था और शेड की देखभाल जैसी कई बारीकियों को सहज प्रशिक्षण एवं मीटिंग के माध्यम से महिला सदस्यों को सिखाया गया था।
स्वाबलंबी सहकारी समिति के रूप में पंजीकृत होने के बाद महिलाओं की यह सोसायटी पिछले 20 वर्षों से तोरपा, खूंटी, मुरहू सहित कई प्रखंडों में कार्यरत थी। तोरपा प्रखंड के बारकुली, झटनी टोली, जागू, जारी, कसमार, कुदरी, ओकड़ा, डोड़मा, गुड़िया, कोरला, चंद्रपुर, बोतलो, सहित प्रखंड के कई अन्य गांवों में स्वयं सहायता समूह की उत्पादक महिलाएसं मुर्गी पालन के व्यवसाय से जुड़ी थीं, पर कोरोना ने उन्हें आर्थिक रूप से बबर्दा कर दिया।
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