नई दिल्लीः केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा संविधान पर चर्चा के दौरान बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर पर दिए गए बयान को लेकर Congress पूरी तरह बीजेपी पर हमलावर है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने संसद परिसर में प्रदर्शन कर अमित शाह से माफी मांगने और उनके इस्तीफे की मांग उठाई है। कांग्रेस से इतर अन्य विपक्षी दल भी इसको लेकर हमलावर हैं। हालांकि, पीएम मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह ने इसे कांग्रेस की कुत्सित राजनीति बताया है।
हालांकि, कांग्रेस इसे मुद्दा बनाकर राजनीतिक बढ़त लेने में सबसे आगे दिख रही है। संविधान सभा से डॉ. अंबेडकर को बाहर कर, उन्हें लोकसभा चुनाव हरवाने, इमरजेंसी व संविधान में समय-समय पर किए गए संशोधनों के जरिए उसकी मूल आत्मा पर कुठाराघात करने वाली कांग्रेस की राजनीति में भले ही वह फिट नहीं बैठते लेकिन अब कांग्रेस ‘नापसंद अंबेडकर’ के बहाने अपने को पुनर्जीवित करने में लगी हुई है।
पहले आपको ताजा विवाद के बारे में बताते हैं। मंगलवार को राज्यसभा में संविधान पर चर्चा के दौरान गृहमंत्री अमित शाह अपना वक्तव्य दे रहे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा ‘अभी एक फैशन हो गया है। अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर… इतना नाम अगर भगवान का लेते तो 7 जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। अच्छी बात है। हमें तो आनंद है कि आप अंबेडकर का नाम लेते हैं। अंबेडकर का नाम अभी 100 बार ज्यादा लो लेकिन अंबेडकर जी के प्रति आपका भाव क्या है, ये मैं बताना चाहता हूं। अंबेडकर जी को देश की पहली कैबिनेट से इस्तीफा क्यों देना पड़ा ? अंबेडकर जी ने कई बार कहा कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों से हुए व्यवहार से मैं असंतुष्ट हूं।
सरकार की विदेश नीति से मैं असहमत हूं। आर्टिकल 370 से मैं अहसमत हूं इसलिए वो कैबिनेट छोड़ना चाहते थे। उन्हें आश्वासन दिया गया लेकिन वो पूरा नहीं किया गया। लगातार दरकिनार किए जाने पर उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।’ इसी वक्तव्य को लेकर कांग्रेस पूरी तरह बीजेपी पर हमलावर है। अमित शाह के जरिए मोदी सरकार पर जमकर निशाना साध रही है और डॉ. अंबेडकर के अपमान का आरोप लगा रही है। आरोपों पर अमित शाह ने भी पलटवार करते हुए कह दिया है कि वह कभी सपने में भी बाबा साहेब का अपमान नहीं कर सकते हैं, कांग्रेस केवल तुच्छ राजनीति कर रही है।
बहरहाल, इन सभी हंगामों से इतर अतीत पर नजर डालें तो शुरूआत से ही कांग्रेस ने दलितों, वंचितों व शोषितों के सबसे बड़े नेता डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर को हाशिए पर धकेलने के लिए हरसंभव प्रयास किए और अपनी स्वार्थपूर्ण राजनीति को सिद्ध करने के लिए उनके द्वारा बनाए गए संविधान में भी समय-समय पर संशोधन किए। इसी साल संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने बीजेपी के सत्ता में आते ही संविधान बदलने के नारे को जोर-शोर से उठा कर लोगों को भ्रमित किया था, लेकिन हकीकत तो यही है कि उसने समय-समय पर संविधान में ऐसे संशोधन किए, जिसने उसकी मूल आत्मा को भी कुचलने का काम किया।
Congress ने हरवाया चुनाव, संविधान सभा में नहीं दी जगह
आजादी के समय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की छवि समाज सुधारक की थी और वह समाज के निचले तबके के उत्थान के लिए अनवरत संघर्षरत रहते थे लेकिन उनकी यह छवि कांग्रेस को खटकती रहती थी। इसी की वजह से संविधान सभा में भेजे गए शुरूआती 296 सदस्यों में डॉ. अंबेडकर का नाम ही नही था। इसको लेकर काफी लोग आश्चर्यचकित थे। हालांकि, काफी उठापटक के बाद उनको संविधान सभा में जगह दी गई। 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने समाज के प्रभावशाली तबके के लोगों को शामिल कर 15 सदस्यों वाला केंद्रीय मंत्रिमंडल बनाया था। इस मंडल में काफी पशोपेश के बाद डॉ. अंबेडकर को जगह मिली थी और वह कानून मंत्री बने थे। हालांकि, कानून मंत्री बनने के बावजूद कांग्रेस से उनके मतभेद जारी रहे और निचली जातियों के उत्थान के लिए कोई प्रयास न किए जाने को लेकर वह आवाज उठाते रहते थे।
स्थिति यह आ गई कि हिंदू कोड बिल पर मतभेद के चलते डॉ. अंबेडकर ने अंतरिम सरकार से 27 सितंबर, 1951 को इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद बाबा साहेब निचली जातियों को एकजुट करने में लग गए और एक साल बाद यानी 1952 में हुए आम चुनाव में हिस्सा लेने का ऐलान किया। डॉ. अंबेडकर बांबे नॉर्थ सेंट्रल से शिड्यूल कास्ट फेडरेशन पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस ने उन्हें हराने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। कांग्रेस ने षडयंत्र रचते हुए बाबा साहेब के पीए रहे काजरोलकर को उनके खिलाफ मैदान में उतार दिया और खुद पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू ने भी उनके खिलाफ चुनावी सभाएं की थीं। नतीजा यह रहा कि डॉ. अंबेडकर करीब 15 हजार वोटों से हार गए।
चुनाव हारने के बाद बाबा साहेब ने चुनाव में धांधली किए जाने की शिकायत चुनाव आयोग से भी की थी और आरोप लगाया था कि 74 हजार से अधिक मतपत्रों को खारिज कर दिया गया और उनकी गिनती ही नहीं की गई। इसके बाद बाबा साहेब ने 1954 में बंडारा उपचुनाव में भी अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन कांग्रेस ने यहां भी उनके खिलाफ पूरा जोर लगा दिया और वह फिर हार गए। हालांकि, बाबा साहेब संसद तो पहुंचे लेकिन लोकसभा चुनाव जीतकर नहीं, बल्कि राज्यसभा के जरिए। डॉ. अंबेडकर को अपने अंतिम दिनों तक यह बात कचोटती रही कि उन्हें उनकी ही धरती पर हरा दिया गया था।
अनुच्छेद 370 का डॉ. अंबेडकर ने किया था पुरजोर विरोध
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को लेकर भी भीमराव अंबेडकर ने पुरजोर विरोध किया था और इसका मसौदा तैयार करने से साफ इंकार कर दिया था। इस विवादास्पद अनुच्छेद को लेकर जब चर्चा चल रही थी तो तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर ने शेख अब्दुल्ला को एक पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने कहा था कि आप चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार सड़क बनाए, समान अधिकार दे और आपकी सीमाओं की रक्षा करे लेकिन आप यह चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में भारत को सीमित शक्तियां मिले। यह पूरी तरह भारत के साथ विश्वासघात होगा और कानून मंत्री के नाते मैं इसे कतई स्वीकार नहीं कर सकता।
इसके बाद तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के निर्देश पर गोपालस्वामी अयंगर ने इसका मसौदा तैयार किया और फिर 17 अक्टूबर 1949 को इसे राष्ट्रपति के आदेश के बाद संविधान में जोड़ दिया गया था। हालांकि, कांग्रेस ने जिस तरह इस अनुच्छेद को लागू किया था, उसी संवैधानिक तरीके से भाजपा सरकार द्वारा इसे हटा दिया गया है और यह इतिहास बन चुका है।
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इसी तरह कांग्रेस ने सभी को समान अधिकार और समान न्याय देने के लिए बनाए गए संविधान को कई बार अपने कुत्सित प्रयासों से कुचला और इमरजेंसी सहित समय-समय पर तमाम संशोधनों के जरिए इसकी मूल भावना को कुचलने का ही काम किया। तमाम नीतिगत मुद्दों पर विरोध का ही नतीजा रहा कि कांग्रेस ने कभी भी बाबा साहेब अंबेडकर को वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वह समुचित हकदार थे लेकिन वर्तमान समय में कांग्रेस उसी ‘नापसंद अंबेडकर’ के बहाने कांग्रेस अपने को फिर से राजनीति में पुनर्स्थापित करने में जुटी हुई है।
रघुनाथ कसौधन
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