सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा- ज्ञानवापी साक्षात विश्वनाथ स्वरूप, कुछ लोग इसे मस्जिद कहते हैं

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गोरखपुरः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को कहा कि जिस ज्ञानवापी को आज कुछ लोग मस्जिद कहते हैं, वह स्वयं विश्वनाथ जी हैं। मुख्यमंत्री योगी दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में ‘समरस समाज के निर्माण में नाथपंथ का योगदान’ विषयक संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे। दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन गोरखपुर विश्वविद्यालय और हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है।

भारतीय परंपरा ने सभी जोड़ने का प्रयास किया

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने संतों-महंतों की परंपरा को समाज और देश को जोड़ने वाली परंपरा बताते हुए आदि शंकराचार्य का विस्तार से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि भारतीय ऋषि-मुनियों की परंपरा हमेशा से जोड़ने वाली रही है। इस संत-महंत परंपरा ने प्राचीन काल से ही समतामूलक और समरस समाज को महत्व दिया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि छुआछूत दूर करने पर ध्यान दिया गया होता तो देश कभी गुलाम नहीं होता। संत परंपरा ने समाज में कभी छुआछूत और जातिवाद को महत्व नहीं दिया। नाथपंथ की भी यही परंपरा है। नाथपंथ ने हर जाति, धर्म, क्षेत्र को सम्मान दिया। सबको जोड़ने का प्रयास किया।

गुरुत्व सामाजिक समरसता मजबूत करने के लिए भी प्रसिद्ध

नाथपंथ ने एक ओर शरीर की शुद्धि के माध्यम से आध्यात्मिक उत्थान पर जोर दिया, तो दूसरी ओर समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के वचन, दोहे और दोहे समाज को जोड़ने और सामाजिक समरसता की बात करते हैं। उनका गुरुत्व सामाजिक समरसता को मजबूत करने के लिए भी प्रसिद्ध है। मलिक मुहम्मद जायसी ने भी कहा है, ‘गुरु पंथ के बिना कोई नहीं मिल सकता, अगर भूल से मिल जाए तो योगी तभी सिद्ध होता है, जब गोरख से मिल जाए।’ संत कबीरदास जी भी उनकी महिमा का वर्णन करते हैं, जबकि गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, ‘गोरख ने योग को जगाया, निगम नियोग द्वारा लोगों को भक्ति से दूर किया।’

योगी ने कहा कि संत साहित्य की परंपरा, इसकी श्रृंखला गुरु गोरखनाथ के साहित्य से आगे बढ़ती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथपंथ की परंपरा की अमिट छाप देश के कोने-कोने में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। अयोध्या में तमिलनाडु के एक प्रमुख संत से हुई मुलाकात का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उक्त संत से उन्हें तमिलनाडु के सुदूर क्षेत्रों से नाथपंथ की पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। गोरखनाथ जी से संबंधित नाथपंथ के अनेक पूजा स्थल और परंपराएं यहां आज भी विद्यमान हैं। कर्नाटक की परंपरा में जिस मंजूनाथ का उल्लेख है, वे मंजूनाथ गोरखनाथ जी हैं। महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर दास की परंपरा भी मत्स्येंद्रनाथ जी, गोरखनाथ जी और निवृत्तिनाथ जी की ही कड़ी है।

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नाथपंथ ने हमेशा अपनी भूमिका को समझती है

महाराष्ट्र में रामचरितमानस की तर्ज पर नवनाथों के पाठ की परंपरा है। नाथपंथ का विस्तार पंजाब, त्रिपुरा, असम, बंगाल आदि राज्यों के साथ ही वृहत्तर भारत और नेपाल, बांग्लादेश, तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत कई देशों में होता दिखेगा। नाथपंथ की परंपरा से जुड़े प्रतीकों को संरक्षित करने और उन्हें संग्रहालय के रूप में संग्रहीत करने की जरूरत पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय का महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ इस दिशा में पहल कर सकता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि नाथपंथ ने हमेशा देश, काल और परिस्थितियों के अनुसार अपनी भूमिका समझी है। जब देश पर बाहरी आक्रमण शुरू हुए थे, तब नाथपंथ के योगियों ने सारंगी बजाकर समाज को देश पर आने वाले खतरे से अवगत कराया था। उन्होंने कहा कि यह सौभाग्य की बात है कि महायोगी गोरखनाथ जी ने अपनी साधना से गोरखपुर को पवित्र किया।

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