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गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता

जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर उसके दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला दुनिया के इतिहास में दर्ज हो चुका है। लंबे समय से यह स्थापित सी धारणा बन चुकी थी, कि इस राज्य का विशेष दर्जा खत्म करना आसान नहीं है। केंद्र सरकार, खासकर उसके गृह मंत्रालय ने इस पर पूरी तैयारी के साथ काम किया और परिणाम ऐसा कि कानून से लेकर आमजन तक ने इसे सहज ही स्वीकार किया। अलग बात है कि विपक्ष के एक हिस्से ने तत्काल इसका विरोध किया था, जो टिक नहीं सका। अब केंद्रीय गृह मंत्रालय का नया कदम भी कुछ कम खास नहीं है। केंद्र सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सम्बंध रखने वाले गैर-मुस्लिम शरणार्थियों से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन आमंत्रित किए हैं। ये शरणार्थी गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा तथा पंजाब के 13 जिलों में हैं। गृह मंत्रालय ने 28 मई की रात इस बारे में अधिसूचना जारी की। दो साल पहले 2019 में बने सीएए कानून का देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध हुआ था। तब से सरकार इस पर नियम नहीं बना सकी थी। अब जबकि इन देशों से आए शरणार्थी मात्र कोविड-टीके की मांग कर रहे थे, उनके भारतीय नागरिक बनने का रास्ता साफ कर दिया है।

दुनिया के किसी भी देश की तरह हमारे यहां भी नागरिकता पाने के कई तरीके हैं। आम तौर पर भारत में जन्म लेने वाले हर वयक्ति को स्वतः ही यहां की नागरिकता हासिल हो जाया करती है। फिर नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत 26 जनवरी,1950 को अथवा उसके बाद, किंतु 10 दिसंबर,1992 के पूर्व पैदा कोई व्यक्ति भी भारत का नागरिक हो सकता है।

इसके लिए जरूरी है कि उसके पैदा होने के समय उसका पिता भारत का नागरिक हो। बाहर से आए लोगों की नागरिकता के लिए एक और ढंग है, उनका रजिस्ट्रेशन। यह व्यवस्था भी 1955 के ही अधिनियम में है। इसकी व्याख्या पर विवाद की गुंजाइश है। यह भी देखना है कि सरकार ने यह दृढ़ फैसला करते समय इस किस रूप में व्याख्यायित किया है। इस बात की भी लोग मीमांशा करेंगे कि यह कद जम्मू-कश्मीर वाले सवाल से किस कदर मिलता है। फिलहाल तो केंद्र सरकार ने अपने एक और संकल्प को अमलीजामा पहनाने के लिए निर्णयात्मक कदम उठाया है।

इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय एक अधिसूचना लेकर आया है। उसमें कहा गया है, ‘नागरिकता कानून-1955 की धारा-16 में दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए केंद्र सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों को धारा-5 के तहत भारतीय नागरिक के तौर पर पंजीकृत करने या धारा-6 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता का प्रमाणपत्र देने का फैसला किया है। मोरबी, राजकोट, पाटन, वडोडरा (गुजरात), दुर्ग और बलोदाबाजार (छत्तीसगढ़), जालौर, उदयपुर, पाली, बाड़मेर, सिरोही (राजस्थान), फरीदाबाद (हरियाणा) तथा जालंधर (पंजाब) में रह रहे पाकिस्तान, अफगानिस्तान व बांग्लादेश के गैर-मुस्लिम इसके तहत भारतीय नागरिकता के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के पात्र हैं।’ स्पष्ट है कि सरकार ने 1955 के कानून की धारा-5 और धारा-6 को सम्यक तरीके से समझ लिया है।

अधिसूचना के मुताबिक, ऐसे शरणार्थियों के आवेदन का सत्यापन राज्य के सचिव या जिले के डीएम कर सकेंगे। जिलाधिकारी या राज्य के गृह सचिव एक ऑनलाइन और लिखित रजिस्टर बनाएंगे। रजिस्टर में भारत के नागरिक के रूप में इस तरह के शरणार्थियों का पंजीकरण होगा। इस तरह की जानकारी की एक प्रति सात दिनों के अंदर केंद्र सरकार को भेजनी होगी।

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केंद्र सरकार की नयी अधिसूचाना के साथ नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) विरोधी आंदोलनों की याद स्वाभाविक है। दो साल पहले 2019 में इस कानून के खिलाफ देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में 2020 की शुरुआत में दंगे को भी इसी का नतीजा बताया जाता है। इस तरह के विरोध के बीच यह कानून ठंडे बस्ते में चला गया और सरकार ने इस पर आगे कदम नहीं बढ़ाए। तब भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए उन हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की बात कही गयी थी, जो अपने यहां सताए गए हैं। ये ऐसे लोग हो सकते हैं, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे। देखना है कि अधिसूचना में यह समय सीमा क्या बढ़ायी भी गयी है, उम्मीद तो यही की जा रही है। नई अधिसूचना का संपूर्ण विवरण आना है। फिर भी एक बात तो है कि इस तरह के सताए लोग इस अधिसूचना के आने के साथ ही भारतीय नागरिक के रूप में अपना पंजीकरण करा सकेंगे। इसी के साथ केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने अपने एक और संकल्प को पूरा करने का काम किया है।

-डॉ. प्रभात ओझा