पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाएं पिछले वर्ष मई 2020 से आमने-सामने हैं। एलएसी पर बड़े तनाव को कम करने की ताजा सैन्य वार्ता किसी ठोस परिणाम पर नहीं पहुंच पाई है। 11वें दौर की हुई कमांडर स्तरीय इस बातचीत में चीन ने बुनियादी रूप से कारण बने चार बिंदुओं में से दो बिंदुओं को मानने से साफ इनकार कर दिया है। चीन ने कहा है कि सेनाओं को पीछे हटने को लेकर भारत ने पेंगोंग झील क्षेत्र में जो प्राप्त किया है, उसी में संतोष करे। फिलहाल चीनी सेना हॉट स्प्रिंग्स के पेट्रोलियम पांइट 15 और गोगरा पोस्ट के निकट पीपी-17 ए पर डटी है। चीन ने यहां बख्तरबंद गाड़ियों के साथ सैनिक भी तैनात किए हुए हैं। विवादित दोनों बिंदु कोंगका दर्रे के नजदीक है। इसे लेकर चीन का दावा है कि भारत-चीन सीमा चिह्नित करने वाले दर्रों में यह मील का पत्थर है।
भारतीय नेतृत्व की आक्रामकता और आत्मनिर्भरता की ठोस व निर्णायक राणनीति के चलते दोनों देशों के बीच हुए समझौते के तहत चीन सेना पीछे हटाने का वचन दे चुका था। लेकिन अब अपनी खोटी नीयत के चलते वचन से मुकर रहा है। दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने के समझौते के क्रम में भारत को एक इंच भी जमीन गंवानी नहीं पड़ी, यह बयान रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने दिया था। इस समझौते में तीन शर्ते तय हुईं थीं। पहली, दोनों देशों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान किया जाएगा। दूसरा, कोई भी देश एलएसी की स्थिति को बदलने की इकतरफा कोशिश नहीं करेगा। तीसरा, दोनों देशों को संधि की सभी शर्तों को मानना बाध्यकारी होगा। दरअसल चीनी सेना ने पीपी-15, पीपी-17 ए, गलवान घाटी में पीपी-14 और पेंगोंग झील के उत्तरी क्षेत्र फिंगर-4 पर कब्जा जमा लिया था। यह भू-भाग भारत के अधिकार क्षेत्र फिंगर-8 से 8 किमी पश्चिम में है। समझौते के बाद भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने पैंगोंग झील क्षेत्र से सैनिकों की वापसी को लेकर साफ किया था कि ‘भारतीय भू-भाग फिंगर-4 तक ही नहीं, बल्कि भारत के मानचित्र के अनुसार यह भू-भाग फिंगर-8 तक है।’ पूर्वी लद्दाख में राष्ट्रीय हितों और भूमि की रक्षा इसलिए संभव हो पाई थी, क्योंकि सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी थी। सेना ने बीस जवान राष्ट्र की बलिवेदी पर न्यौछावर करके अपनी क्षमता, प्रतिबद्धता और भरोसा जताया था।
दरअसल, भारत के मानचित्र में 43000 वर्ग किमी का वह भू-भाग भी शामिल है, जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में है। इसीलिए राजनाथ सिंह को संसद में कहना था कि भारतीय नजरिए से एलएसी फिंगर आठ तक है, जिसमें चीन के कब्जे वाला इलाका भी शामिल है। पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे के दोनों तरफ स्थाई पोस्ट स्थापित हैं। भारत की तरफ फिंगर-3 के करीब धानसिंह थापा पोस्ट है और चीन की तरफ फिंगर-8 के निकट पूर्व दिशा में भी स्थाई पोस्ट स्थापित है। समझौते के तहत दोनों पक्ष अग्रिम मोर्चों पर सेनाओं की जो तैनाती मई-2020 में हुई थी, उससे पीछे हटेंगे, लेकिन स्थाई पोस्टों पर तैनाती बरकरार रहेगी। याद रहे भारत और चीन के बीच संबंध तब संकट में आ गए थे, जब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच बिना हथियारों के खूनी संघर्ष छिड़ गया था। नतीजतन भारत के बीस वीर सैनिक शहीद हो गए थे। इस संघर्ष में चीन के 45 सैनिक हताहत हुए थे।
चीन से लगी पूरी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना के लिए कुछ स्थान चिन्हित हैं। जहां भारत के सैनिक अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में गस्त कर सकते है। इन्हीं बिंदुओं को पेट्रोलियम पांइट अर्थात पीपी कहते है। हालांकि इन बिंदुओं के निर्धारण के संदर्भ में विडंबना है कि इन्हें तय करने का काम चीन का ‘पाइंटस चाइना स्टडी ग्रुप’ करता है। इसकी शुरूआत इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए 1976 में हुई थी। इस पूरी नियंत्रण रेखा पर 65 पीपी और कुछ अल्फा पाइंटस हैं, जो वास्तविक पेट्रोलिंग पाइंटस से कुछ आगे है। पीपीए-17 और पीपी-17 के निकट भी एक अल्फा पाइंट है। देवसांग जैसे कुछ दुर्गम क्षेत्रों को छोड़कर सभी बिंदु एलएसी पर स्थित हैं। भारत-चीन सीमा के बीच आधिकारिक सीमांकन नहीं होने के कारण ये बिंदु सीमा निर्धारण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
हॉट स्प्रिंग्स और गोगरा पोस्ट क्षेत्र पूर्वी लद्दाख में एलएसी के गलवान में चांग चेनमो नदी के किनारे पर है। हॉट स्प्रिंग्स चांग चेनमो नदी के उत्तर में मौजूद है। गोगरा पोस्ट गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में स्थित है। यह पूरा क्षेत्र कराकोरम की पहाड़ियों के उत्तर में है, जो पेंगोंग झील के उत्तर की ओर गलवान घाटी के दक्षिण पूर्व में है। यहीं पर जून-2020 में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प हुई थी। अब समझौते की शर्तों से मुकरते हुए चीन दावा कर रहा है कि कोंगका दर्रा भारत चीन के बीच सीमा चिन्हित करने वाला मील का पत्थर है। जबकि भारत का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा यहां से पूरब की तरफ है, जिसमें अक्साई चीन क्षेत्र भी आता है। भारत और चीन के बीच अक्साई चिन को लेकर करीब 4000 किमी और सिक्किम को लेकर 220 किमी सीमाई विवाद है।
तिब्बत और अरुणाचल में भी सीमाई हस्तक्षेप कर चीन विवाद खड़ा करता रहता है। 2015 में उत्तरी लद्दाख की भारतीय सीमा में घुसकर चीन के सैनिकों ने अपने तंबू गाढ़कर सैन्य अभ्यास शुरू कर दिया था। तब दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच 5 दिन तक चली वार्ता के बाद चीनी सेना वापस लौटी थी। दरअसल 1960 में सीमा निर्धारण पर आधिकारिक बातचीत के दौरान चीन का कहना था कि सीमा रेखा का पश्चिमी क्षेत्र दो भागों में बंटा है और कोंगका दर्रा विभाजक बिंदु है। इस दर्रे का उत्तरी हिस्सा झिनझियांग और लद्दाख के बीच की सीमा रेखा है। इसी तरह दक्षिणी हिस्सा तिब्बत और लद्दाख के बीच की सीमा रेखा तय करता है। झिनझियांग और तिब्बत के बीच ही हॉट स्प्रिंग्स एवं गोगरा पोस्ट पेट्रोलिंग पाइंट मौजूद है, जहां से समझौते के बावजूद चीन ने अपनी सेना हटाने से दो टूक इंकार कर दिया है।
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चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाकर पानी का विवाद भी खड़ा करता रहता है। दरअसल चीन विस्तारवादी तथा वर्चस्ववादी राष्ट्र की मानसिकता रखता है। इसी के चलते उसकी दक्षिण चीन सागर पर एकाधिकार को लेकर वियतनाम, फिलीपिंस, ताइवान और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ ठनी हुई है। यह मामला अंतरराष्ट्रीय पंचायत में भी लंबित है। बावजूद चीन अपने अड़ियल रवैये और वादाखिलाफी से बाज नहीं आता है। दरअसल उसकी मंशा दूसरे देशों के प्राकृतिक संसाधन को हड़पना है। इसीलिए आज उत्तर कोरिया और पाकिस्तान को छोड़ ऐसा कोई अन्य देश नहीं है, जिसे चीन अपना पक्का दोस्त मानता हो।
प्रमोद भार्गव