Friday, October 18, 2024
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छावला रेप-मर्डर केस: 3 दोषियों को बरी किए जाने की समीक्षा के लिए दिल्ली सरकार ने SC का किया रुख

नई दिल्ली: दिल्ली के छावला में फरवरी 2012 में 19 वर्षीय लड़की का गैंगरेप करके उसकी हत्या कर दी गई थी। लड़की के क्षत-विक्षत शव को हरियाणा में सरसों के खेत से बरामद किया गया था। आरोपियों ने लड़की के साथ इतनी बर्बरता की गई थी जिसने लोगों की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया था। दिल्ली सरकार ने 19 वर्षीय एक लड़की से गैंगरेप और हत्या के तीन मौत की सजा के दोषियों को बरी करने के अपने 7 नवंबर के फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। जिसमें कहा गया है कि फैसला स्पष्ट नहीं है, क्योंकि यह पूरी तरह से चिकित्सा, वैज्ञानिक और परिस्थितिजन्य सबूतों की अनदेखी करता है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा समीक्षा याचिका में कहा गया है कि वर्तमान मामले में अपराध और जिस तरीके से अपराध किया गया है वह यौन प्रिडेटर्स (शिकारियों) और यौन मनोरोगियों के मिजाज को दर्शाता है। इसमें आगे कहा गया है कि आरोपियों ने लड़की के मृत शव के साथ वहशीता जारी रखी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया था कि उसे गंभीर चोटें आईं खासकर उसके यौन अंगों पर।

समीक्षा याचिका में कहा गया है कि डीएनए नमूना परीक्षणों ने दोषियों को अपराध से जोड़ने वाले सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि अदालत के सामने केवल सबूत मायने रखता है और कुछ नहीं, हमें सजा को बरकार रखने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं मिली। निर्णय पारित करने वाली बेंच का हिस्सा रहे यूयू ललित ने कहा कि जिन सबूतों के आधार पर आरोपियों को दोषी ठहराया गया था वे पर्याप्त नहीं थे।

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समीक्षा याचिका में दिल्ली सरकार ने कहा कि डीएनए नमूनों से छेड़छाड़ के संबंध में शीर्ष अदालत की टिप्पणी गलत है। इसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि वजाइनल स्वैब की कस्टडी चेन, पीड़िता के शरीर पर मिले बाल, आरोपी की कार की सीट से बालों लटें मिलीं, कार की सीट के कवर पर खून मिला यह पूर्ण और अनस्सैलेबल है। इसमें कहा गया है कि पीड़िता के शरीर से एकत्र किए गए बालों के डीएनए प्रोफाइलिंग की एक रिपोर्ट मूल रूप से आरोपी रवि कुमार के डीएनए प्रोफाइल से मेल खाती है। इसलिए डीएनए सबूत और सीएफएसएल रिपोर्ट के अविश्वसनीय होने का सवाल ही नहीं उठता है। याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने गलत तरीके से यह माना था कि हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट डीएनए रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार की जांच करने में विफल रहे।

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