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चार धाम : जहां पृथ्वी और स्वर्ग होते हैं एकाकार

  उत्तराखण्ड हिंदू धर्मावलंबियों के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। चारों ओर से हिमालय की ऊंची-ऊंची चोटियां इसे एक दिव्य आभा प्रदान करती हैं। उत्तराखण्ड के आनंदमय राज्य में यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ के पवित्र मंदिर शामिल हैं, जिन्हें छोटा चार धाम के नाम से जाना जाता है। छोटा चार धाम उत्तराखण्ड हिमालय में सबसे प्रमुख आध्यात्मिक यात्रा है। ये तीर्थस्थल हिमालय की ऊंची चोटियों के कारण पर्यटन का भी प्रमुख केंद्र है। दुनिया भर से तीर्थयात्री इन तीर्थों तक पहुंचने के लिए कठिन यात्रा करते हैं। यमुनोत्री का पवित्र मंदिर देवी यमुना का है और गंगोत्री का पवित्र मंदिर देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का प्रतीक है। दूसरी ओर भगवान बद्रीनाथ (विष्णु) तीर्थयात्रियों को बद्रीनाथ के पवित्र मंदिर के रूप में आशीर्वाद देते हैं। आत्मा की खोज का आनंद भगवान केदारनाथ के शांत मंदिर में समाप्त होता है, जो भगवान शिव को समर्पित है। इन पवित्र मंदिरों की भव्यता और इतिहास सदियों से भक्तों को लुभाता रहा है। सभी चार तीर्थों के साथ एक लंबा और समृद्ध इतिहास जोड़ा गया है। देव भूमि उत्तराखण्ड की यात्रा के इस प्रथम द्वार का नाम हरिद्वार हैं। यहां का ब्रह्म कुण्ड श्रद्धालुओं के लिए एक ऐसा स्थान है, जहां जाकर उन्हें अपने मन में ऐसी आस्था होती है कि इसके अगले जन्म में मुझे परम पद प्राप्त होगा यानी मेरा जन्म जहां होगा, वहां का वातावरण ब्रह्ममय यानी सुंदर होगा। कहते हैं ब्रह्म कुण्ड में स्नान करने वालों को भगवान अपने शरण में लगा लेते हैं फिर हम जिस राम राज्य की कल्पना करते हैं, उस राम के राज्य में आपका प्रवेश होता है। जिस राम के चरण कमलों से गंगा निकलकर शंकर जी के मस्तक में जटाओं से खेलती हुई धरती पर आईं, वहां आपको स्थान मिल जाता है। प्राचीन मंदिरों के महत्व और प्रमुख देव नदियों की महत्ता अपने आप मन को मोहने लगती है। यहां कनखल सबसे प्राचीन तीर्थ स्थल है, महाराजा दक्ष प्रजापति ने यहां पर यज्ञ किया था। यहीं पर शंकरजी की पत्नी सती ने आत्म दाह हवन कुण्ड में कूद कर या स्वयं के योगाग्नि को प्रकट करके कर लिया था। ग्यारहवीं शताब्दी की बनी चंडी देवी और मनसा देवी की प्राकृतिक शोभा और आध्यात्मिक आस्था का जितना वर्णन किया जाए, वह कम ही होगा। हरि की पौड़ी पर होने वाली गंगा आरती का दृश्य बड़ा ही दिव्य दर्शन देता है।

प्राकृतिक शोभा और आध्यात्मिक आस्था का दर्शन ऋषिकेश

हरिद्वार से आगे ऋषिकेश आता है, यहां पर रेम्य नामक ऋषि ने अपने इंद्रियों को वस में करके तपस्या की थी। यहां मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के तीनों भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न ने तपस्या की थी। ऋषिकेश में राम झूला, लक्ष्मण झूला, भरत मिलाप, मुनि की रेती आदि का दर्शन करने के बाद यात्रियों का मन मंत्रमुग्ध हो जाता है। गीता मंदिर का ज्ञान और मुनि आश्रम के मनमोहक दृश्यों के जैसा ही मनोहारी दृश्य भरत मिलाप आश्रम में देखने को मिलता है। उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम यात्रा के रूप में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ की यात्रा को मान्यता प्राप्त है। इस यात्रा को ‘हिमालय की चार धाम’ यात्रा के नाम से जाना जाने लगा है। चमोली जिले की हिमालय श्रृंखला के बीच स्थित बद्रीनाथ मंदिर, अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। इस पवित्र मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में हिंदू धर्म को नया जीवन और अर्थ प्रदान करने के लिए की थी। किवदंतियों के अनुसार, यह पहले देवी पार्वती और भगवान शिव का निवास था, बाद में भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ को अपना निवास स्थान बनाया। पद्म पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने बद्रीनाथ की पहाड़ियों में कठोर तपस्या की थी। उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी ने उन्हें कठोर धूप से बचाने के लिए एक बेर के पेड़ का रूप धारण किया। इस प्रकार शहर का नाम ‘बद्रीनाथ’ रखा गया, जो ‘बद्री के भगवान’ के लिए खड़ा है, जहां बद्री जंगली बेरी का स्थानीय नाम है और नाथ का अर्थ है भगवान। badrinath kedarnath Char Dham Where earth and heaven are united बद्रीनाथ वह स्थान भी है, जहां महाभारत के निशान मिलते हैं। मिथकों के अनुसार, पांचों पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी के साथ स्वर्ग की अंतिम तीर्थयात्रा ‘स्वर्गरोहिणी’ या ‘आरोहण से स्वर्ग’ नामक शिखर की ढलान पर चढ़कर की थी। पुराण के अनुसार, मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर माणा गांव में एक गुफा है, जहां महान ऋषि वेद व्यास ने महान भारतीय महाकाव्य महाभारत लिखा था। बदरीनाथ का मुख्य आकर्षण है बदरीनाथ मंदिर। यह मंदिर अलकनन्दा नदी के बाएं तट पर स्थित है। इस मंदिर की निर्माण कला बौद्ध निर्माण कला से पर्याप्त प्रभावित प्रतीत होती है। बदरीनाथ मंदिर के ठीक सामने अलकनंदा नदी के दाएं किनारे पर गरम पानी का एक झरना है। इसे तृप्त कुण्ड कहते हैं। बदरीनाथ के ठंडे वातावरण में इस झरने के गरम पानी से स्नान करना सुखद प्रतीत होता है। वासुधारा काफी ऊंचाई से गिरने वाला एक रमणीय झरना है। यह बदरीनाथ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यहां से भारत की सीमा पर स्थित माणा गांव केवल चार-पांच किमी दूर ही रह जाता है। व्यास गुफा माना गांव में स्थित है। मान्यता है कि महर्षि व्यास ने विभिन्न पुराणों की रचना इसी गुफा में की थी। बदरीनाथ में पर्यटकों के आवास के लिए मंदिर समिति का अतिथि गृह, लोक निर्माण विभाग का निरीक्षण गृह, डी.जी.बी.आरत्र का विश्रामगृह, बिड़ला अतिथिशाला आदि के अलावा होटलों और धर्मशालाओं की कमी नहीं है। आप अपनी सुविधानुसार कहीं भी ठहर सकते हैं। हाँ, सरकारी आवासों में असुविधा से बचने के लिए पहले ही आरक्षण करा लेना अच्छा रहता है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है केदारनाथ मंदिर

पवित्र मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित, केदारनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। उत्तराखण्ड के गढ़वाल हिमालय में यह तीर्थ अक्षय तृतीया से कार्तिक पूर्णिमा के बीच खुला रहता है। भक्त केदार खंड के भगवान के रूप में भगवान शिव को श्रद्धांजलि देते हैं, जो कभी इस क्षेत्र का नाम था। ऐसा कहा जाता है कि इस संरचना का निर्माण आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में करवाया था। पुराणों के अनुसार, महाभारत की लड़ाई के बाद पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद पाने और अपने ही रिश्तेदारों को मारने के अपने पापों को धोने के लिए केदार खंड के क्षेत्र में गुप्तकाशी पहुंचे। हालांकि, भगवान शिव उनके सामने प्रकट नहीं होना चाहते थे और इस तरह उन्होंने खुद को एक बैल में बदल लिया और खुद को मवेशियों के समूह में छिपा कर चरने लगे। भीम ने उनकी पहचान की। जब मवेशी अपने निवास स्थान पर लौट रहे थे, भीम दो शिलाखंडों पर पैर फैलाकर खड़े हो गए और मवेशियों को अपने पैरों के नीचे से जाने दिया। भगवान शिव ने भागने की कोशिश की और खुद को पृथ्वी में मिलाना शुरू कर दिया। केवल कूबड़ को भीम ने पकड़ लिया। इस पर भगवान शिव प्रसन्न हुए और पांडवों के सामने प्रकट हुए इसलिए केदारनाथ में बैल के कूबड़ की पूजा की जाती है। केदारनाथ मंदिर एक शिव मंदिर है। यह मंदिर मंदाकिनी घाटी के सिरे पर बना है। केदारेश्वर व नंदी के अतिरिक्त इस मंदिर में पार्वती, गणेश, पांडव, कुंती आदि की मूर्तियों में भी शिल्पकला का सौंदर्य देखा जा सकता है। केदारनाथ धाम स्थित मंदाकिनी घाटी की सुंदरता बरबस ही पर्यटकों को मुग्ध कर देती है। यह घाटी केदारनाथ मंदिर के निकट ही है। केदारनाथ धाम में गांधी सरोवर नामक विशाल तालाब है। प्राचीनकाल में इसे चेरावादी तालाब कहते हैं, इसी सरोवर से मंदाकिनी नदी का उद्गम हुआ है। वासुकी ताल झीलनुमा ताल है। यह केदारनाथ से लगभग 04 किमी की दूरी पर स्थित है। इसका प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को लुभाने में सक्षम है। यहां आप पिकनिक का आनंद भी उठा सकते हैं। केदारनाथ तक केवल सड़क मार्ग से ही पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश, हरिद्वार, कोटद्वार, काठगोदाम, बद्रीनाथ, नैनीताल, गंगोत्री आदि स्थानों से बसे गौरीकुण्ड तक ले जाती हैं। इसके आगे की 14 किमी की दूरी पर्यटकों को पैदल तय करनी पड़ती है। यह चढ़ाई दुर्गम तथा कष्टदायक होने के बावजूद यहां के सुखद और स्वच्छ वातावरण के कारण पर्यटक आसानी से तय कर लेते हैं, वैसे इस यात्रा के लिए किराए की डंडी या घोड़े का उपयोग किया जा सकता है। केदारनाथ में पर्यटकों के ठहरने के लिए होटल, लॉज तथा धर्मशालाओं की पर्याप्त व्यवस्था है।

गंगा नदी का उद्गम स्थल गंगोत्री

gangotri badrinath kedarnath Char Dham Where earth and heaven are united पवित्र मंदिर पवित्र गंगा को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यह नदी सभी पापों को धो देती है और भक्तों की आत्मा को पवित्र बनाती है। यह मोक्ष का मार्ग है। यह मंदिर मुख्य रूप से गंगा नदी के उद्गम स्थल के रूप में जाना जाता है। यह वह स्थान है, जहां भगवान शिव ने अपने बालों के कर्ल में गंगा को लिया था। गौमुख वह स्थान है, जहां गंगोत्री ग्लेशियर से गंगा निकलती है। मंदिर के पास स्थित भगीरथ शिला पर कहा जाता है कि राजा भगीरथ ने देवी गंगा को प्रसन्न करने और उन्हें स्वर्ग से पृथ्वी पर आने के लिए राजी करने के लिए तपस्या की थी। पृथ्वी पर आते समय गंगा की बिखरती गति को कम करने के लिए, भगवान शिव ने अपने उलझे हुए बालों में धारा ले ली। एक जलमग्न शिवलिंग है, जहां कहा जाता है कि भगवान शिव धारा प्राप्त करने के लिए बैठे थे। अत्यधिक ऊंचाई होने के कारण गंगोत्री में सर्दी अधिक पड़ती है। नवम्बर से यहां बर्फ जमने लगती है, जो अप्रैल में ही पिघल पाती है। अतः गंगोत्री के पर्यटन के लिए अप्रैल से जून तक का मौसम अच्छा रहता है। जुलाई-अगस्त में वर्षा अधिक होती है, फिर सितंबर से अक्टूबर तक का समय भी पर्यटन के लिए उपयुक्त है। गंगोत्री में प्राकृतिक सुषमा के साथ-साथ अनेक मंदिर तथा कुण्ड भी हैं। कुण्डों के नाम सूर्य, विष्णु, ब्रह्मा आदि देवताओं के नाम पर रखे गए हैं। कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं। हरी-भरी रमणीय प्रकृति के मध्य स्थित है गंगा देवी का मंदिर। एक किवदंती के अनुसार पांडवों ने महाभारत की समाप्ति पर प्रायश्चित स्वरूप इस मंदिर का निर्माण कराया था। एक अन्य मतानुसार शंकराचार्य ने यहां गंगादेवी की मूर्ति स्थापित की थी। बाद में 18वीं सदी में एक गोरखा अधिकारी ने वहां मंदिर बनवा दिया था। आजकल इस मंदिर की देखरेख स्थानीय पंडों द्वारा की जाती है। गंगादेवी के मंदिर के निकट ही भैरव नाथ मंदिर है। कहा जाता है कि भागीरथ ने यहीं बैठकर कठोर तपस्या की थी। मंदिर में एक शिला है, जिसे ‘‘भागीरथ शिला’’ कहते हैं। यहां तमाम लोग पिंडदान भी करने आते हैं। भागीरथ शिला से कुछ ही दूरी पर रुद्र शिला है। पौराणिक कथाओं के आधार पर भगवान शिव ने यहां प्रकृति से भरपूर सौंदर्य बिखेर रखा है। यहां से बलखाती गंगा का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है। रुद्र शिला के समीप गंगा केदार गंगा से मिलती है। आगे जाकर यह धारा एक पत्थर के बीच से होकर लगभग 15 मीटर नीचे प्रपात के रूप में गिरती है। यह ‘‘गौरी कुण्ड’’ कहलाता है। गंगा की धारा एक शिवलिंग के ऊपर प्रपात के रूप में गिरती है। संभव है कि इसी प्राकृतिक दृश्य को देखकर किसी सहृदय ने शिव द्वारा अपनी जटाओं में गंगा धारण की कल्पना की हो, कुछ लोग गंगा का उद्गम इसी को मान लेते हैं। गंगा का वास्तविक उद्गम गौरीकुण्ड से 18 किमी और ऊपर श्रीमुख पर्वत पर बने गौमुख के आकार के एक कुण्ड से होता है। गौमुख को धारा देखते ही बनती है। यहां एक ग्लेशियर वर्ष भर तैरता रहता है। कहा जाता है कि इसी ग्लेशियर की बर्फ पिघल कर गंगा की क्षीण धारा में बदल जाती है। इसके आस-पास चीड़ व देवदार के वृक्ष हैं, जिनसे इस स्थल का सौंदर्य देखते ही बनता है।

यमुना नदी का उद्गम स्थल यमुनोत्री

yamunotri Char Dham Where earth and heaven are united यमुनोत्री पवित्र यमुना नदी का स्रोत है। यह उत्तरकाशी जिले में स्थित है और लगभग 3,293 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह वहां पाए जाने वाले थर्मल स्प्रिंग्स के लिए प्रसिद्ध है। नदी का वास्तविक स्रोत एक जमी हुई झील और ग्लेशियर है, जो लगभग 4,421 मीटर की ऊंचाई पर कलिन पर्वत पर स्थित है। मंदिर को अत्यधिक प्रतिष्ठित कहा जाता है और कहा जाता है कि इस मंदिर में जाने से भक्तों के पाप धुल जाते हैं। इस स्थान तक पहुंचने के लिए एक ट्रेक शामिल है। पुराणों का कहना है कि यहां ऋषि असित मुनि निवास करते थे। उन्होंने जीवन भर प्रतिदिन यमुना और गंगा में स्नान किया। वृद्धावस्था में वे गंगोत्री नहीं जा सके और इस प्रकार उनके लिए यमुनोत्री की धारा के सामने गंगा की एक धारा प्रकट हुई। सूर्य देव की पुत्री यमुना को मनुष्यों की माता माना जाता है, जो उन्हें पोषण प्रदान करती हैं। टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने 1839 में यमुनोत्री मंदिर का निर्माण कराया था। हालांकि, भूकंप के कारण मंदिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी के अंत में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। समुद्रतल से 3,291 मीटर की ऊंचाई पर बंदरपूंद नामक उन्नतशिखर के पश्चिमी किनारे पर स्थित है यमुनोत्री तीर्थ। यह शिखर सदैव बर्फ से ढका रहता है। ठण्डे, गरम पानी के अनेक कुण्डों से सुशोभित यमुनोत्री को यमुना नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। शायद इसी कारण इस क्षेत्र का नाम यमुनोत्री पड़ा है। यमुनोत्री भ्रमण के लिए अनुकूल समय है मई-जून के महीने होते हैं। इन दिनों यहां गुलाबी सर्दी पड़ती है। अतः हल्के ऊनी कपड़ों से काम चल जाता है, किंतु सितंबर से अक्टूबर के बीच यहां भारी ऊनी वस्त्रों की जरूरत पड़ती है। जुलाई-अगस्त में यहां वर्षा के कारण भ्रमण करना उचित नहीं है। इसी प्रकार नवम्बर से अप्रैल तक यहां बर्फ जमी रहने के कारण पर्यटन करना ठीक नहीं है। इन दिनों मार्ग भी प्रायः अवरुद्ध रहता है। केदारनाथ, गंगोत्री, ऋषिकेश, मंसूरी, बदरीनाथ, देहरादून, कोटद्वार, नैनीताल आदि स्थानों से यमुनोत्री के लिए बसें चलती हैं। हनुमान चट्टी और यमुनोत्री के बीच लगभग 07 किमी के अंतराल पर जानकीबाई चट्टी से यमुनोत्री का भ्रमण करके उसी दिन लौटा जा सकता है। जानकी बाई चट्टी में ट्रेवलर्स लॉज और लोक निर्माण विभाग के निरीक्षण भवन में ठहरा जा सकता है। जो यात्री यमुनोत्री में ही ठहर कर पर्यटन का आनंद लेना चाहते हैं, वे यमुनोत्री में धर्मशालाओं या वन विभाग के विश्रामगृह को अपना आवास बना सकते हैं। यह भी पढ़ेंः-International yoga day : विश्व को भारत की देन है योग यमुनोत्री के प्राकृतिक सौंदर्य के केन्द्र हैं यमुना नदी का उद्गम स्थल। इस स्थल पर हमेशा बर्फ जमी रहती है। हनुमान गंगा तथा टोंस नदियों का जल निर्गम क्षेत्र भी यही है। हिमाच्छादित ऊंचे-ऊंचे पर्वतों का अपना अलग ही आकर्षण है। यमुनोत्री में यमुना देवी का मंदिर भी है। मंदिर के निकट गरम पानी के कई स्रोत हैं। यह पानी विभिन्न कुण्डों में चला जाता है। मुख्य मंदिर में यमुना देवी के रूप में मूर्ति प्रतिष्ठित है। यमुनोत्री के समस्त कुण्डों में सूर्य कुण्ड का विशिष्ट स्थान है। इस कुण्ड का पानी अपेक्षाकृत अधिक गरम रहता है। अनेक पर्यटक चावल, आलू आदि कपड़े में बांधकर इसमें उबाल लेते हैं। पर्यटकों के लिए यह आनंददायक अनुभव है। जानकी बाई कुण्ड का पानी गुनगुना है। इस कुण्ड के जल में स्नान करने से यात्रियों की थकान उतर जाती है। पुराणों के अनुसार, यहां ऋषि असित मुनि निवास करते थे। उन्होंने जीवन भर प्रतिदिन यमुना और गंगा में स्नान किया। वृद्धावस्था में वे गंगोत्री नहीं जा सके और इस प्रकार उनके लिए यमुनोत्री की धारा के सामने गंगा की एक धारा प्रकट हुई। सूर्य देव की पुत्री यमुना को मनुष्यों की माता माना जाता है, जो उन्हें पोषण प्रदान करती हैं। टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने 1839 में यमुनोत्री मंदिर का निर्माण कराया था। हालांकि, भूकंप के कारण मंदिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था और जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं शताब्दी के अंत में इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया था। सूर्य कुंड, जो दिव्यशिला के पास स्थित एक गर्म पानी का झरना है, भगवान सूर्य ने अपनी बेटी को भेंट किया था। तीर्थयात्री तप्तकुंड में पवित्र स्नान करते हैं और सूर्यकुंड में भी आलू व चावल पकाते हैं। मान्यताओ के अनुसार, उत्तराखण्ड चार धाम की यात्रा करने से इंसान जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है। जो लोग इस यात्रा को श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनके सब पाप धुल जाते हैं और मन शांत हो जाता है। चारधाम यात्रा मई से शुरू होती है और नवंबर में समाप्त हो जाती है। उस समय के दौरान यात्रा करना सबसे अच्छा है क्योंकि चार धामों में अन्य महीनों के मौसम के दौरान बहुत अनिश्चित हो सकता है। नवंबर तक की समय अवधि के दौरान मौसम सबसे अधिक यात्रा के अनुकूल रहता है। ज्योतिप्रकाश खरे (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)