पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के करीबियों पर CBI का छापा, इस मामले में एक्शन

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CBI raids on Satyapal Malik's relatives

नई दिल्ली: केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में किरू पनबिजली परियोजना में कथित भ्रष्टाचार के संबंध में दिल्ली में 10 और राजस्थान में दो सहित 12 स्थानों पर छापेमारी कर रही है। ये ठिकाने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के पूर्व मीडिया सलाहकार, तीन चार्टर्ड अकाउंटेंट और अन्य के हैं।

सूत्रों के मुताबिक, बिजली परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार की जांच के तहत छापेमारी की जा रही है। सूत्र ने कहा कि दिल्ली में जिन दो ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है, वे डिफेंस कॉलोनी और वेस्ट एंड इलाके हैं। दोनों सुनक बाली से हैं। पश्चिमी दिल्ली के नांगलोई में दो अन्य कथित संदिग्धों वीरेंद्र सिंह राणा और कंवर सिंह राणा के 2 ठिकानों पर भी छापेमारी की जा रही है। इसके अलावा घोटाले में शामिल बताई जा रही द्वारका निवासी अनीता के घर पर भी छापेमारी की जा रही है।

राजस्थान में डॉ. प्रियंका चौधरी के जयपुर और बाड़मेर स्थित ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। सीबीआई ने उसके बैंक विवरण और अन्य दस्तावेजों के माध्यम से घोटाले में उसकी कथित संलिप्तता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र की है। सूत्रों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर राज्य के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक के अनुरोध पर 20 अप्रैल को मामला दर्ज किया गया था।

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IAS नवीन कुमार चौधरी, जो उस समय चिनाब वैली पावर प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (CVPPPL) के अध्यक्ष थे, के साथ एम.एस. बाबू (सीवीपीपीपीएल के तत्कालीन एमडी), एम.के. मित्तल (सीवीपीपीपीएल के तत्कालीन निदेशक), अरुण कुमार मिश्रा (सीवीपीपीपीएल के तत्कालीन निदेशक) और पटेल इंजीनियरिंग लिमिटेड के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। यह आरोप लगाया गया था कि उसने मलिक को रिश्वत देने की कोशिश की थी।

सीबीआई के एक सूत्र ने कहा कि 2019 में एक निजी कंपनी को किरू हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट के सिविल कार्यों के लिए 2,200 करोड़ के ठेके देने में अनियमितता के संबंध में मामला दर्ज किया गया था। किरू जलविद्युत परियोजना के सिविल वर्क पैकेज के अवार्ड के लिए ई-टेंडरिंग के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया था। हालांकि सीवीपीपीपीएल की बोर्ड बैठक में चल रही निविदा प्रक्रिया को रद्द करने के बाद रिवर्स नीलामी के साथ ई-निविदा के जरिए फिर से निविदा करने का निर्णय लिया गया था, मगर इस निर्णय को लागू नहीं किया गया, जिसके कारण अंततः निजी कंपनी को निविदा सौंपी गई।

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