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कैप्टन विक्रम बत्रा का बलिदान देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा, आज ही शहीद हुए थे 'शेरशाह'

नई दिल्लीः जब-जब कारगिल युद्ध का जिक्र किया जाएगा तब तब परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का नाम हमेशा लिया जाएगा। भारतीय सेना के इस जांबाज ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर अपनी बहादुरी से पानी फेर दिया था। विक्रम बत्रा को शेरशाह के नाम से जाना जाता है। परमवीर विक्रम बत्रा की आज 23वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन 7 जुलाई 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा करगिल की ऊंची चोटी पर शहादत पाने के साथ दुश्मनों को भारत की जमीन के खदेड़ गिया था। विक्रम बत्रा ने करगिल में ऐसा शौर्य दिखाया कि दुश्मन उनके नाम से थर थर कांपने लगे थे।

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बता दें कि विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का जन्म 14 सितंबर 1974 को कांगड़ा जिले में स्थित पालमपुर के घुग्गर गांव में हुआ था। विक्रम बत्रा जुलाई 1996 में भारतीय सेना अकादमी देहरादून में प्रवेश लिया था। 6 दिसंबर 1997 को विक्रम को जम्मू के सोपोर में सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में बतौर लेफ्टिनेंट नियुक्ति मिली। पहली जून 1999 को उनकी टुकड़ी को कारगिल युद्ध में भेजा गया। हम्प व राकीनाब स्थानों को जीतने के बाद उसी समय विक्रम बत्तरा को कैप्टन पद पर पदोन्नति मिली थी। इसके बाद श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर सबसे महत्वपूर्ण 5140 चोटी को पाक सेना से मुक्त करवाने का जिम्मा भी कैप्टन विक्रम बतरा मिला।

कारगिल का शेर

बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बावजूद विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ 20 जून 1999 को अलसुबह 3:30 बजे ही इस चोटी को अपने कब्जे में ले लिया। 5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले बुलंद हो गए। बलिदानी विक्रम बत्रा ने जब इस चोटी से रेडियो के जरिए अपना विजय उद्घोष ‘यह दिल मांगे मोर’ कहा, तो सेना ही नहीं बल्कि पूरे देश में उनका नाम छा गया। इसी दौरान विक्रम के कोड नाम ,शेरशाह, के साथ ही उन्हें ‘कारगिल का शेर’ के नाम से जाना जाने लगा।

आठ पाकिस्तानियों को उतारा था मौत के घाट

बताया जाता है कि इस मिशन पर अपनी जान की परवाह न करते हुए लेफ्टिनेंट अनुज नैय्यर के साथ कैप्टन बत्रा ने 8 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया। मिशन लगभग पूरा होने ही वाला था। तभी उनके जूनियर ऑफिसर लेफ्टिनेंट नवीन के पास एक ब्लास्ट हुआ, नवीन के दोनों पैर बुरी तरह जख्मी हो गए। वो दर्द कराह रहे थे। विक्रम बत्रा से उनकी हालत देखी नहीं गई। दुश्मन की गोलीबारी के बीच कैप्टन बत्रा नवीन के पास जा पहुंचे। नवीन को बचाने के लिए वो उन्हें पीछे घसीटने लगे, तभी उनकी छाती में गोली लगी और 7 जुलाई 1999 को भारत का ये शेर शहीद हो गया। विक्रम बत्रा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

नड्डा-शाह ने दी श्रद्धांजलि

वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष जेपी नड्डा ने परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान दिवस पर उन्हें याद करते हुए कहा कि उनका अदम्य साहस और बलिदान देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। नड्डा ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, “वीरभूमि हिमाचल के अमर सपूत, अपराजेय रणकौशल, कारगिल युद्ध की शौर्यगाथा लिखने वाले परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा जी के बलिदान दिवस पर उन्हें शत शत नमन। कैप्टन विक्रम बत्रा जी का अदम्य साहस एवं पराक्रम सभी देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा।”

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट कर कहा, “कैप्टन विक्रम बत्रा के बलिदान दिवस पर उनका स्मरण कर उनकी वीरता और देशप्रेम को नमन करता हूं। कारगिल युद्ध में विपरीत परिस्थितियों में भी अपने शौर्य से उन्होंने दुश्मनों को खदेड़ कर भारतीय सीमाओं को सुरक्षित किया। मातृभूमि के प्रति उनका प्रेम हर देशवासी को प्रेरित करने वाला है।

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