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कैंसर की वैक्सीन तैयार, इम्यूनोथेरेपी बना नया हथियार

ब्रिटेन ने कैंसर की वैक्सीन (Cancer vaccine) तैयार कर ली है और इम्यूनोथेरेपी कैंसर से जंग का नया हथियार बन रही है। अब इससे जानलेवा कैंसर पर लगाम लगाई जा सकती है। ब्रिटेन में कैंसर वैक्सीन का फ्री ट्रायल शुरू हो चुका है। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के शरीर में कैंसर कोशिकाओं की पहचान करना और उनसे लड़ने की क्षमता प्रदान करना है। अभी इसका क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है, जिसके तहत एक 81 साल के मरीज को इसकी पहली खुराक दी गई। चिकित्सा विज्ञान में आजकल कई अलग पद्धतियों से कैंसर का उपचार किया जाता है, जो कई मामलों में कारगर भी साबित हो रही हैं। कुछ इसी तरह से इन दिनों इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में भी किया जा रहा है। इसमें हमारे शरीर की इम्यूनिटी को कैंसर सेल्स से लड़ने के लिए मजबूत बनाया जाता है।

10 फीसदी ही सफल है इलाज

यह उपचार प्रणाली रोगी के इम्यून सिस्टम में सामान्य ट्यूमर मार्कर पेश करने के लिए मैसेंजर आरएनए का उपयोग करती है। इसका लक्ष्य इम्यून सिस्टम को इस प्रकार से विकसित करना है कि वह इन कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर उनका मुकाबला कर सके। इसका काम संभावित रूप से उन कोशिकाओं को नष्ट करना है, जो प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबा सकते हैं। मॉडर्ना-यूके स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के सहयोग से आयोजित इंपीरियल कॉलेज का परीक्षण, यूके में एमआरएनए वैक्सीन निर्माण लाने और भविष्य की स्वास्थ्य आपात स्थितियों के लिए तैयारियों को बढ़ाने के व्यापक प्रयास का हिस्सा है। यूके सरकार ने कैंसर के लिए एमआरएनए-आधारित इम्यूनोथेरेपी के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए कई दवा कंपनियों के साथ सहयोग किया है। ऐसे कई उपचार वर्तमान में क्लीनिकल टेस्टिंग के प्रारंभिक चरण में हैं, जहां उनके एक्शन, प्रोटेक्शन और प्रारंभिक गतिविधि का आकलन किया जा रहा है। कैंसर का इलाज अभी तक रेडिएशन (विकिरण) या कीमोथेरेपी (रसायन चिकित्सा) के भरोसे हैं, जिसमें कैंसर की कोशिकाओं को मार देते हैं या सर्जरी के भरोसे, जिसमें ट्यूमर को पूरा निकाल देते हैं। मगर हीमैटोलॉजिकल या रक्त कैंसर सरीखे कुछ प्रकार के कैंसरों की उन्नत अवस्था में इन इलाजों की सफलता की दर 10 फीसदी से भी कम है। कीमो या रेडियेशन के साइड इफेक्ट-थकान-मितली-उलटी, दस्त, शरीर दर्द, त्वचा व बालों में बदलाव, रक्तस्राव, अनिद्रा एक और हिम्मत तोड़ने वाला कारक है, क्योंकि दोनों इलाज कैंसर की कोशिकाओं के साथ अंततः शरीर की स्वस्थ सामान्य कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाते हैं। मौजूदा इलाज कैंसर की हर एक कोशिका को खत्म कर देने की भी गारंटी नहीं देते। उन्नत अवस्था के कैंसरों में इसके दोबारा होने की संभावना 30-40 फीसदी जितनी ज्यादा बनी रहती है।

इम्यूनोथेरेपी को लेकर बड़ी उम्मीद

यहीं इम्युनोथेरेपी या प्रतिरक्षा उपचार की अहमियत सामने आती है। बीते कुछ साल में कैंसर रिसर्च ने इस पर ध्यान केन्द्रित किया है कि कैंसर की कोशिकाओं को पहचानकर उन्हें नष्ट करने के लिए खुद इंसान के शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कैसे और किन तरीकों से सक्रिय किया जा सकता है। गुरूग्राम स्थित आर्टेमिस अस्पताल में आंकोलॉजी के चेयरपर्सन और नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में मेडिकल आंकोलॉजी के पूर्व प्रमुख डॉ. ललित कुमार बताते हैं कि बीमारी से निजात पाने का शरीर का अपना तंत्र है। कैंसर में यह तंत्र किसी न किसी तरह ठप हो जाता है। बहुत सारे नये उपचारों का वास्ता इस बात से है कि इन कोशिकाओं को छिन्न-भिन्न करने के लिए शरीर को कैसे तैयार किया जाए। इम्यूनोथेरेपी पक्का करती है कि केवल ट्यूमर को निशाना बनाया जाए और स्वस्थ कोशिकाओं को नहीं, जिससे साइड इफेक्ट कम होते है। अगर कैंसर दोबारा होता है, तो इम्यून या प्रतिरक्षा प्रणाली नुकसानदायक कोशिकाओं को पहचान सकती है। इलाज की सारी विधियां शरीर को कैंसर जनित कोशिकाओं को नष्ट करने पर निर्भर है। पर अब पता चला है कि कैंसर रोगी की इम्यूनिटी बढ़ाकर भी उसे ठीक किया जा सकता है। दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर इस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के मेडिकल आन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. विनीत तलवार के अनुसार पिछले कुछ सालों से कैंसर मरीजों पर इम्यूनोथेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है। हर प्रकार के कैंसर के रोगियों को यह थेरेपी दी जाती है। हालांकि, इससे परिणाम उतने बेहतर नहीं आए हैं। जैसा की अमेरिका में रेक्टल कैंसर के मरीजों पर हुए ट्रायल में देखे गए हैं। इस ट्रायल के बाद इम्यूनोथेरेपी को लेकर बड़ी उम्मीद जग गई है। अब कैंसर मरीजों के इलाज़ में इस थेरेपी का महत्व काफी बढ़ रहा है। ये थेरेपी रेक्टल कैंसर, लंग्स कैंसर और ओरल कैंसर में मुख्य रूप से दी जाती है।

सफेद चूहों पर किया गया परीक्षण

वैकल्पिक चिकित्सा के क्षेत्र में कई दशकों से काम करने वाली संस्था डीएस रिसर्च सेंटर ने पोषक ऊर्जा से कैंसर की औषधि तैयार करके यही काम किया है। वैज्ञानिक परीक्षणों में भी इस औषधि के नतीजे बेहतर पाए गये हैं। कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय के नैदानिक अनुसंधान केन्द्र (सीआरसी) के निदेशक डा. टीके चटर्जी के अनुसार, डीएस रिसर्च सेंटर की पोषक ऊर्जा से तैयार की गई औषधि सर्वपिष्टी के पशुओं पर किये गये परीक्षण के परिणाम उत्साहजनक पाये गये हैं। यदि पशुओं के शरीर पर सर्वपिष्टी का प्रयोग किये जाने के बाद सीआरसी ने उत्साहजनक परिणाम प्राप्त किये हैं, तो ऐसे ही परिणाम इसे मानव शरीर पर प्रयोग करने से भी प्राप्त किये जा सकते हैं, जो कैंसर उपचार के इतिहास में युगान्तकारी घटना होगी। सीआरसी विभिन्न रोगों के लिए दवाईयों का नैदानिक परीक्षण करता है। इसी सिलसिले में उन्होंने सर्वपिष्टी का भी नैदानिक परीक्षण किया था। किसी दवाई की प्रभावकारिता का स्तर सुनिश्चित करने के लिए सामान्यतः दो प्रकार का परीक्षण किया जाता है। पहला- औषधीय (फार्माकोलॉजिकल) परीक्षण और दूसरा- विष विद्या सम्बन्धी (टोक्सीकोलॉजिकल) परीक्षण। ये परीक्षण आयातित सफेद चूहों पर किये गये। पशु शरीर में कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया और जब ट्यूमर निर्मित हो गया, तब हमने दवा देना शुरू किया। ‘पोषकऊर्जा’ के परीक्षण की स्थिति में 14 दिनों बाद जो प्रतिक्रियायें देखी गयीं, उनमें कोशिकाओं की संख्या स्पष्ट रूप से कम होना शुरू हो गई थीं। पशु शरीर में कोई अल्सर पैदा नहीं हुआ। ट्यूमर विकास दर 46 प्रतिशत तक कम हो गई थी और दवाई की विषाक्तता लगभग शून्य थी। ऐसे सकारात्मक परिणाम हाल के समय में नहीं देखे गये थे। इस औषधि में कैंसर को रोकने और उससे लड़ने की अपरिमित संभावनाएं हैं। औषधियों के परिणाम-परीक्षण की एक सुनिश्चित वैज्ञानिक पद्धति है। औषधियां प्रायः विषों और ड्रगों से बनती है, अतएव पहला परीक्षण किया जाता है कि वे स्वास्थ्य और जीवन को खतरे में तो नहीं डाल देंगी, लेकिन डीएस रिसर्च सेंटर ने तो मानवीय भोज्य पदार्थो में सन्निहित पोषक ऊर्जा को प्राप्त करके औषधियां तैयार की थी, इसलिए वे औषधियां मानव स्वास्थ्य के लिए सर्वथा अनुकूल थी। यहां तक कि औषधि के सेवन का माध्यम भी दुग्ध शर्करा को बनाया गया था, जो एक मानवीय भोज्य है और स्वास्थ्य पर इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है। डीएस रिसर्च सेंटर के संस्थापक वैज्ञानिक डॉक्टर उमाशंकर तिवारी के अनुसार सर्वपिष्टी कोई औषधीय सूत्र नहीं है, बल्कि पोषक ऊर्जा वर्ग की औषधीय का प्रतिनिधित्व करती है, जो मानवीय भोज्यों के विस्तार से काट छांट कर विकसित पोषक ऊर्जा है। सन् 1982 में सेंटर ने कैंसर की औषधि तैयार की। इस औषधि के परीक्षण के लिए प्रारम्भ से ही नीति बनी कि केवल ऐसे रोगियों की तलाश की जाए, जिन्हें अस्पताली चिकित्सा के धर्मकांटे ने चिकित्सा के लिए अयोग्य मानकर अन्तिम रूप से छोड़ दिया हो। खोजबीन करके इस तरह के रोगियों तक पोषक ऊर्जा की खुराकें पहुंचायी जाने लगी। उन्हें यह भी कह दिया गया कि अपने कष्टों के लिए और स्वास्थ्य के विकास के लिए जो भी औषधियां वे लेते रहे हैं, उन्हें लेते रहें। सेंटर के वैज्ञानिक डॉ. उमाशंकर तिवारी के निर्देशन में परीक्षण अभियान शुरू हुआ। अन्ततः औषधि की सफलता और उसके प्रभाव-परिणाम की सकारात्मकता, रोगियों के अपने अनुभवों तक सीमित नहीं रही, वह जांच रिपोर्टो से भी प्रमाणित हुई और पारम्परिक चिकित्सा के वर्तमान सूत्रधारों को अक्सर विस्मित भी करती रही। बहरहाल, आज दुनिया के कई देशों में इम्यूनोथेरेपी के जरिए कैंसर का इलाज हो रहा है। निरंकार सिंह