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रोजगार, किसान, गांव और मध्यम वर्ग पर फोकस हो बजट

Budget सरकार के वित्त का सबसे विस्तृत ब्यौरा होता है, जिसमें सभी स्रोतों से प्राप्त राजस्व और सभी मदों पर किया गया व्यय सम्मिलित होता है। आय-व्यय के विवरण सरकार के समष्टिभावी आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के हिसाब से तैयार किए जाते हैं इसलिए बजट सरकरी नीतियों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण होता है। बजट के पहले भाग में सामान्य आर्थिक सर्वेक्षण और नीतियों का ब्यौरा होता है और दूसरे भाग में आगामी वित्त वर्ष के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष करों के प्रस्ताव रखे जाते हैं। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) आने के बाद अप्रत्यक्ष करों के संदर्भ में निर्णय जीएसटी काउंसिल ही लेती है इसलिए अब आम लोगों के लिए बजट की उत्सुकता पहले की अपेक्षा कम हो गई है।

हां, जो लोग प्रत्यक्ष कर दे रहे हैं, उनके लिए अवश्य इसकी उत्सुकता अधिक होती है। सरकार के व्यय करने के कार्यक्रमों और नीतियों के सन्दर्भ में भी अब जनता अधिक जागरूक है। उच्च संवृद्धि, तेजी से बढ़ता विनिर्माण क्षेत्र, नियंत्रित मुद्रास्फीति और बजट अनुमानों की तुलना में राजकोषीय घाटे में कमी से लगता है कि इस समय देश में आर्थिक हालात अच्छे हैं। हालांकि, रुपये का थोड़ा सा अवमूल्यन हुआ है और भुगतान संतुलन का चालू खाता घाटा जीडीपी का लगभग 0.7 प्रतिशत है परन्तु विदेशी मुद्रा भंडार 665.8 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया है। ऐसे में बजट में मोदी सरकार के सामने चुनौती इस विकास को बनाए रखने और मुद्रास्फीति, विशेष रूप से खाद्य मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के मुद्दे को संबोधित करने की है।

स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सेवाएं दोगुना खर्चीली हो गई हैं, जिनसे हरेक व्यक्ति प्रभावित हो रहा है परन्तु आधिकारिक मुद्रास्फीति दर 05 प्रतिशत से भी कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में आय नहीं बढ़ रही है। Budget में अन्य गतिविधियों के अतिरिक्त अलग से रोजगार सृजित करने वाले क्षेत्रों एवं व्यवसायों पर विशेष रूप से फोकस करना चाहिए। ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ में सुधार भले हुआ हो, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण से भ्रष्टाचार कम होने का दावा भले ही किया जा रहा हो, परन्तु जमीनी वास्तविकता यह है कि सुगमता एवं स्वतंत्रता के साथ व्यवसाय करने की जद्दोजहद कम नहीं हुई है, राज्य एवं जिला स्तरों पर भ्रष्टाचार बढ़ गया है और लगातार बढ़ती अफसरशाही ने इन्स्पेक्टर राज को मजबूत किया है।

Budget में कर में छूट और सामाजिक व्यय में वृद्धि की उम्मीद है। पिछले बजटों में पूंजीगत व्यय पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे जीडीपी को बढ़ावा मिला परन्तु पूंजीगत व्यय रोजगार पैदा करने और आय बढ़ाने में सक्षम नहीं रहा है इसीलिए उपभोग व्यय में कमी आई। सरकार ने जिस प्रकार से विभिन्न मंत्रालयों का बंटवारा किया है और पुरानी नीतियों को जारी रखने का संकेत दिया है, उससे नीतियों में बजट के दौरान बहुत बदलाव की संभावना नहीं है। आशा है कि सरकार राजकोषीय संतुलन को साधते हुए पूंजीगत व्यय में कोई कमी नहीं लाएगी, क्योंकि अर्थव्यवस्था में आर्थिक समृद्धि को तेज करने के लिए यह आवश्यक है। इसके साथ ही उन क्षेत्रों और उद्योगों में निवेश बढ़ाने पर अधिक फोकस करेगी जहाँ रोजगार सृजन की संभावना अधिक है।

रोजगार और आय बढ़ाने के ठोस उपायों की आवश्यकता

budget should focus on employment

पिछले कुछ वर्षों में राजकोषीय नीति के दो मुख्य उद्देश्य रहे हैं, सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में निवेश करके पूंजी निर्माण में वृद्धि करना और राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत से घटाकर वित्त वर्ष 2025-26 तक 4.5 प्रतिशत करना है। सरकार ने पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर और विभिन्न कल्याणकारी कार्यक्रमों पर व्यय को कम करके अपने व्यय करने की प्रवृति में थोड़ा बदलाव किया। समग्र बजट में पूंजीगत व्यय का हिस्सा कोरोनाकाल के लगभग 12 प्रतिशत से बढ़कर अब 23 प्रतिशत से अधिक हो गया है। केंद्र सरकार के लिए सकल घरेलू उत्पाद के लिए पूंजीगत व्यय का अनुपात वित्त वर्ष 2019-20 में 1.7 प्रतिशत से वित्त वर्ष 2023-24 में लगातार बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया। सापेक्षिक रूप से, खाद्य सब्सिडी, मनरेगा और पीएम किसान जैसे कुछ प्रत्यक्ष कल्याण कार्यक्रमों के लिए आवंटित धन 1.7 प्रतिशत से घटकर जीडीपी का 1.2 प्रतिशत हो गया।

इन वर्षों में पूंजी निर्माण तेजी से बढ़ा है वित्त वर्ष 2019-20 और वित्त वर्ष 2023-24 के बीच इसमें 29.5 प्रतिशत की संचयी वृद्धि हुई। इसी अवधि के दौरान, उपभोग, जो अर्थव्यवस्था का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा है, में केवल 17.5 प्रतिशत की संचयी वृद्धि ही हुई। अर्थव्यवस्था के विभिन्न वर्गों से उपभोग की मांग के बीच गंभीर विरोधाभास के भी प्रमाण हैं। आर्थिक रूप से मजबूत वर्ग ने विभिन्न प्रीमियम वस्तुओं और सेवाओं की मजबूत मांग दिखाई है, जबकि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की मांग अभी तक कोविड के झटके से उबर नहीं पाई है। पूंजी निर्माण और निर्माण गतिविधि में विस्तार रोजगार पैदा करने के बजाय अधिक पूंजी और प्रौद्योगिकी संचालित रहा है।

पूंजीगत व्यय के लिए सरकार के लगातार दबाव के बावजूद, उपभोग और मांग में मजबूत वृद्धि नहीं होने के कारण निजी निवेश में कोई भी सार्थक वृद्धि नहीं हो रही है इसलिए बजट में मांग को बढ़ावा देने के लिए सरकारी व्यय के पुनः आवंटन की एक उचित नीति की आवश्यकता है। चुनाव में झटका खाई मोदी सरकार द्वारा इसीलिए अगले बजट में आवास, ग्रामीण सड़कें, आजीविका बढ़ाने आदि जैसे कार्यक्रमों के लिए अधिक धन आवंटित किया जा सकता है या मांग को बढ़ावा देने के लिए घरेलू क्षेत्र पर करों में छूट दी जा सकती है, जो आवश्यक भी है। चुनाव का संदेश बड़ा स्पष्ट है कि जब तक आर्थिक संमृद्धि का लाभ समाज के निचले वर्ग के वंचितों और बेरोजगारों तक नहीं पहुंचता है, तब तक वे भारत के सिर्फ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को लेकर संतुष्ट नहीं हो सकते बल्कि उनके लिए रोजगार के अवसरों के लिए सरकार को प्रयास करना ही होगा। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनकी वास्तविक आय में लगातार वृद्धि हो।

आर्थिक वृद्धि के साथ तेज गति से उत्पादक रोजगार तैयार करने पर बजट को फोकस करना चाहिए। रोजगार में वृद्धि कार्यकारी आयु के लोगों में वृद्धि की दर से अधिक होनी चाहिए। रोजगार सृजन के लिए सिर्फ आर्थिक संवृद्धि पर निर्भर रहने की जगह तेज रोजगार सृजन के द्वारा आर्थिक संवृद्धि तेज करने की रणनीति पर चलना होगा। सरकार पहले ही निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए जीडीपी के तीन प्रतिशत के बराबर पूंजीगत व्यय कर रही है, अब बेहतर कारोबारी वातावरण तैयार करने और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना चाहिए। भौतिक और डिजिटल अधोसंरचना में सुधार तथा ई-कॉमर्स एवं डिजिटल भुगतान प्रणालियों के तेजी से विस्तार का उपयोग करके अधिक रोजगार सृजन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

मध्य वर्ग को कर में राहत आवश्यक

सापेक्षिक रूप से देखा जाए तो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों को मिलाकर मध्य वर्ग पर करों का भार सबसे अधिक है। हाल के वर्षों में व्यक्तिगत आयकरदाता के लिए वास्तविक कर भार में बढ़ोत्तरी हुई है। इस समय आय कर का योगदान निगम कर से अधिक हो गया है। वित्त वर्ष 2023-24 में शुद्ध निगम कर 9.11 लाख करोड़ रुपये था, जबकि शुद्ध आयकर 10.44 लाख करोड़ रुपये था इसीलिए आय कर में छूट की अपेक्षा कई वर्ष से की जा रही है। 05 लाख से 20 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले करदाताओं को राहत देने की आवश्यकता है। अभी ये लोग 05 लाख से 15 लाख तक 5 से 20 प्रतिशत की कर दर और 15 लाख से ऊपर आय वाले करदाता 30 प्रतिशत की कर दर का सामना कर रहे हैं।

वेतनभोगी वर्ग के लिए उनके वेतन और ग्रैच्युटी पर आयकर छूट की अधिकतम सीमा को पर्याप्त रूप से बढ़ाना चाहिए। सरकारी कर्मचारियों के लिए मानक कटौती की राशि को बढाकर एक लाख रूपये कर देना चाहिए। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कीमतों में वृद्धि के चलते इस वित्त वर्ष 2023-24 के अंतिम चतुर्थांश में भारतीय परिवारों को पहले की अपेक्षा 18 प्रतिशत अधिक व्यय करना पड़ा है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में 4.83 प्रतिशत से मई में गिरकर 4.75 प्रतिशत हो गई, जो एक वर्ष में सबसे कम है। मार्च से मुद्रास्फीति 05 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है परन्तु खाद्य मुद्रास्फीति, जो समग्र उपभोक्ता मूल्य बास्केट का लगभग 40 प्रतिशत है, मई में वार्षिक आधार पर 8.69 प्रतिशत बढ़ी, जबकि अप्रैल में यह 8.70 प्रतिशत थी।

नवंबर से खाद्य मुद्रास्फीति लगातार 08 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है। दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड काल के बाद रोजगार के साथ-साथ मजदूरी में भी गिरावट आई है इसीलिए ग्रामीण क्षेत्रों में आय और उपभोग में वृद्धि न होने से निजी निवेश और अर्थव्यवस्था को आवश्यक और अपेक्षित गति नहीं मिल पाई इसलिए आवश्यक है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में कटौती करके और कर के सरलीकरण द्वारा निम्न व मध्यम वर्ग को राहत पहुंचाई जाए। वस्तुतः मध्य वर्ग को कर में राहत देने से सरकार के प्रत्यक्ष करों के संग्रहण से भले ही कुछ समय के लिए कुछ कमी आए, परन्तु इससे उपभोग में वृद्धि होगी जो कि आगे अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करेगी और अप्रत्यक्ष करों के संग्रहण में वृद्धि होगी।

यह देखते हुए कि नई कर व्यवस्था को अभी भी व्यापक स्वीकृति नहीं मिली है, इसके लिए कि 80सी के तहत कर कटौती को नई कर व्यवस्था तक बढ़ाया जाना चाहिए, फिर से नई कर व्यवस्था के तहत कर छूट सीमा को ऊपर की ओर संशोधित करने की भी आवश्यकता हैं, तभी इसे आकर्षक बनाया जा सकता है। पुरानी व्यवस्था में भी 80सी और 80डी में कटौती की सीमा बढ़ानी चाहिए। 80सी के तहत टैक्स कटौती की सीमा को आखिरी बार 2014-15 में 01 लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये किया गया था। तब से संचयी उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 60 प्रतिशत से अधिक रही है। इस आधार पर इसे बढ़ाकर कम से कम 2.5 लाख करना उचित होगा।

इससे बचतों को बढ़ने में भी मदद मिलेगी। 80डी सीमा में वृद्धि स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती लागत को देखते हुए आवश्यक है। देश की अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव हुए, जीएसटी लागू हुए, सात वर्ष बीत चुके हैं। अब समय आ गया है कि जीएसटी के बुनियादी ढांचे में सुधार करने का प्रयास किया जाए। जीएसटी की प्रारंभिक परिकल्पना एक दर के साथ की गई थी, जिससे स्पष्टता और मितव्यियता सुनिश्चित होती परन्तु कई दरें और स्लैब्स हैं, जो कि जीएसटी की मूल भावना के ही विरुद्ध है। राज्य और केंद्र सरकार के स्तर पर दोहरा ढांचा नहीं होना चाहिए।

निम्न से मध्यम आय वर्गों के पक्ष में कर की दरों में कमी और कर ढांचे को तर्कसंगत बनाना आवश्यक है जिससे जनसंख्या के निचले हिस्से से मांग बढ़े। एमएसएमई न केवल बड़े उद्योगों की तुलना में कम पूंजीगत लागत पर बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अपितु ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिकीकरण में भी मदद करते हैं। देश के कुल रोजगार और निर्यात में इस क्षेत्र का योगदार लगभग 40 प्रतिशत है। वस्त्र, खिलौना, चमड़ा, हस्तशिल्प जैसे अनेक महत्वपूर्ण उद्योगों में विकास और रोजगार की असीम संभावनाएं हैं। एमएसएमई क्षेत्र ने 01 जुलाई, 2020 से 01 अगस्त, 2023 के बीच 12.36 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। सरकार पीएलआई (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम) योजना के पहले चरण की सफलता से उत्साहित है, जिसने एपीआई, रक्षा उपकरण, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य में चीन पर निर्भरता को कम करने में मदद मिली।

अब पीएलआई के अगले चरण में लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र को समर्थन की आवश्यकता है। रोजगार सृजन के साथ साथ अधिक संतुलित औद्योगिक विकास के लिए एमएसएमई के लिए पीएलआई योजना तैयार करना महत्वपूर्ण है। भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ और रोजगार के लिहाज से महत्वपूर्ण माने जाने वाले सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यम क्षेत्र को बढ़ावा देकर रोजगार, आय और उपभोग में वृद्धि ले जा सकती है। चीन से आयात प्रतिस्थापन के लिए भी उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना शुरू की जानी चाहिए, जिसमें कार्बनिक रसायन, प्लास्टिक और ईवी संबंधित उपकरण शामिल हैं। ऐसी व्यापार नीति बनाई जानी चाहिए, जो छोटे कारोबारियों को निर्यात बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करे। स्थानीय मांग के लिए अंतिम उत्पाद तैयार करने में छोटे आपूर्तिकर्ताओं को बढ़ावा देना चाहिए।

ग्रामीण और कृषि क्षेत्र

ग्रामीण और कृषि क्षेत्र के लिए इस बार के बजट से काफी उम्मीदें हैं। वित्त वर्ष 2024 में कृषि वृद्धि दर गिरकर 1.4 प्रतिशत तक पहुंच गई। कृषि क्षेत्र में गिरावट का असर पूरी अर्थव्यव्स्था पर पड़ता है परन्तु पिछले कुछ वर्षों में कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की आय में वृद्धि नहीं हुई है, इसीलिए उपभोग भी मंद है। इस समय कृषि क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के विकास, कृषि शोध में निवेश और जलवायु परिवर्तन को लेकर क्षमता बढ़ाने पर खास फोकस करने की आवश्यकता है। सरकार को जलवायु उपायों के लिए और स्मार्ट कृषि के सन्दर्भ में ठोस उपाय करने होंगे। कृषि के विकास के लिए इस क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के स्तर को बढ़ाना जरूरी है। इसके लिए कृषि अनुसंधान और विकास के लिए बजट में भारी वृद्धि की आवश्यकता होगी। कृषि अनुसंधान परिषद की राशि को 9,500 करोड़ रुपए से बढ़ाकर दोगुने से अधिक करना होगा। सरकार को खाद्य मुद्रास्फीति खासकर सब्जियों, तिलहन और दलहन की महंगाई पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

सरकार को व्यापार नीति को घरेलू मूल्य नीति के अनुरूप बनाते हुए किसानों और उपभोक्ताओं के हितों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। भारत दुनिया में बड़े खाद्य तेल आयातकों में शामिल है, भारत में खाद्य तेलों की जितनी मांग है, उसका 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा आयात करता है। तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मिशन शुरू करने की आवश्यकता है, जिससे भारत की खाद्य तेलों के महंगे आयात पर निर्भरता को कम जा सके। आवश्यक कृषि उपज के लिए भंडारण सीमा की शुरुआत और आयात शुल्क में कमी के कारण बाजार की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे आ रही हैं इसलिए सरकार किसानों को पीएम किसान योजना के तहत दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि को भी बढ़ाने पर विचार करने की आवश्यकता है। 6,000 रुपये की राशि को बढ़ाकर काम से काम 8,000 रुपये तक कर देना चाहिए। .

शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण

शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जनोपयोगी वस्तुओं का उपभोग सिर्फ उपभोक्ता को ही नहीं लाभ पहुंचता है, बल्कि उसके परिवार, समाज और उससे जुड़े सभी लोगों को लाभान्वित करता है। इस प्रकार शिक्षा और स्वास्थ्य को सुलभ और बेहतर बनाकर आर्थिक समृद्धि त्वरित किया जा सकता। सरकार को इस बात पर विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है कि समाज के सभी वर्गों को लगभग समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सके। भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य पर होने वाला व्यय अनेक को उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा भी काफी कम है। कौशल विकास के लिए भी जमीनी स्तर पर अभी बहुत कार्य करने की आवश्यकता है। दीर्घावधि में कौशल विकास के लिए बेहतर व्यवस्था की आवश्यकता होगी। देश में नवोन्मेष और अनुसंधान एवं विकास को प्राथमिकता देना होगा। लगातार आने वाले बजटों में यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास पर अधिक से अधिक व्यय किया जाए, तभी आर्थिक विकास का ठोस आधार कायम होगा और देश से गरीबी स्थायी रूप से दूर किया जाना संभव होगा।

अंधी विकास की दौड़ ने पर्यावरण और पारिस्थितिकी संतुलन पर जिस प्रकार से प्रभाव डाला है, उससे आने वाले समय में मानव जीवन के लिए ही खतरा उत्पन्न हो गया। भारत में, जहां दो तिहाई से अधिक जनसंख्या आजीविका के लिए कृषि क्षेत्र पर निर्भर है और 40 प्रतिशत कृषि मानसून पर निर्भर है, लगातार होने वाला जलवायु परिवर्तन पूरी अर्थव्यवस्था में उथल-पुथल ला सकता है। सूखती और मैली होती नदियां, कटते, सुलगते जंगल, पीने के पानी की विकराल होती समस्या ने जल, जंगल और जमीन को विकास नीतियों के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। बजट में इन सभी पर ठोस उपाय करने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में अनुसंधान और विकास के लिए भी व्यय को बढ़ाने और निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

ऑनलाइन खरीददारी के चलते फुटकर विक्रेताओं के लाभ पर काफी असर पड़ा है जबकि भारत में फुटकर व्यापार का हिस्सा देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 10 प्रतिशत है और यह क्षेत्र सीधे तौर पर रोजगार में लगे लोगों की संख्या की दृष्टि से कृषि के बाद दूसरे स्थान पर है। बजट में सरकार को इन विक्रेताओं के लिए भी ठोस व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे ये संगठित क्षेत्र के विक्रेताओं से प्रतिस्पर्धा कर सकें। उन क्षेत्रों को चिन्हित किया जा सकता है, जहां खुदरा उद्योग को मजबूत बनाया जा सकता है। मार्च 2020 में कोविड महामारी के समय भारतीय रेलवे ने वरिष्ठ नागरिकों को ट्रेन किराए में मिलने वाली छूट बंद कर दी थी। सरकार को इस बार वरिष्ठ नागरिकों के लिए ट्रेन किराए में मिलने वाली छूट वापस शुरू करनी चाहिए। पहले टिकट किराए में वरिष्ठ महिला यात्रियों को 50 प्रतिशत, जबकि वरिष्ठ पुरुष और ट्रांसजेंडर नागरिकों को 40 प्रतिशत की छूट मिलती थी।

असंतुष्टि को गंभीरता से लेना होगा

इस चुनाव से एक बात तो साफ हो गईं कि यह मानते हुए भी कि इस सरकार ने विकास के लिए कार्य किए हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की प्रतिष्ठा और ताकत में वृद्धि की है, अर्थव्यवस्था में मजबूती लाई है, मुफ्त में खाद्यान्न, घर, गैस आदि आवश्यक वस्तुएं भी खूब बांटी है, परंतु बिना गुणवत्तापूर्ण रोजगार बढ़ाए और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित किए जनता को संतुष्ट कर पाना संभव नहीं है। किसानों, युवाओं और मध्यवर्ग की असंतुष्टि को गंभीरता से नहीं लेना सरकारों पर हमेशा से ही भारी पड़ता रहा है। भूतकाल में प्याज की बढ़ती हुई कीमतों ने कई सरकारें गिरा दी है।

निश्चित ही भारत इस समय विश्व की सबसे तेज आर्थिक समृद्धि वाला देश बना हुआ है परन्तु यदि आम लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं होती है, बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिलता है, किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति में सुधार नहीं होता है, उनके आय तथा उपभोग में वास्तविक वृद्धि नहीं होती है, तब तक अर्थव्यवस्था की इस असमान तरक्की का आम जन के लिए कोई अर्थ नहीं है। आर्थिक वृद्धि की गति बनाये रखने के लिए बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान केंद्रित करने और पूंजीगत व्यय जारी रखने की सरकार की रणनीति सही है परंतु बजट में आम लोगों पर कर भार को कम करने और खाद्य वस्तुओं की महंगाई को नियंत्रित करने के लिए भी उपाय करने आवश्यक है। आयकर में आय स्लैब के निचले स्तर पर राहत, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन जैसी रोजगार प्रोत्साहन योजनाओं को बेहतर और प्रभावी बनाने और कारोबार सुगमता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

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इसके साथ ही कृषि और ग्रामीण विकास के लिए भी ठोस उपायों को अमल लाए बिना किसानों और ग्रामीण जनता की आय में वृद्धि नहीं की जा सकती। मध्यवर्ग को राहत देने के क्रम में सरकार को दो और प्रमुख बातों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। प्रथम, वेतन भोगी कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन की बहाली या पेंशन व्यवस्था में सुधार और द्वितीय, आठवां वेतन आयोग का गठन। यह न सिर्फ वेतनभोगी वर्ग की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था में उपभोग और आर्थिक समृद्धि को गति देने के लिए आवश्यक है।

डॉ. उमेश प्रताप सिंह

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