Sunday, December 29, 2024
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeउत्तर प्रदेशयूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग की होगी कड़ी परीक्षा

यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग की होगी कड़ी परीक्षा

लखनऊः उत्तर प्रदेश 2022 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के सोशल इंजीनियरिंग की कड़ी परीक्षा होगी। इस बार पार्टी के पास दूसरी लाइन के बड़े नेताओं का अभाव है। नई टीम के साथ मैदान में है। इस बार के चुनाव में दलित वोट बसपा के पाले में बचा है या नहीं, इसका भी आंकलन हो जाएगा। चुनाव की शुरूआती दौर से ही मायावती को लड़ाई से बाहर माना जा रहा है। हालांकि, राजनीतिक पंडित मानते हैं कि ऐसा कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी। सभी दलों की निगाहें इस बार दलित वोट बैंक की ओर लगी हुई है। बसपा के बहुत सारे लोग सपा में शामिल हो गए है। सपा ने दलित वोटों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए अपनी पार्टी की नई विंग समाजवादी बाबा साहेब वाहिनी गठित की है। इसकी कमान भी बसपा के पुराने नेता मिठाई लाल भारती को सौंपी है। वह बसपा के पूर्वांचल के जोनल कोआर्डिनेटर भी रहे चुके हैं।

वहीं भारतीय जनता पार्टी दलित वोट को लेकर 2014 से कसरत कर रही है। उसको इस वोट बैंक का कुछ हिस्सा मिला है। लेकिन अभी मूल वोट बसपा के पास ही है। इस चुनाव से तय हो जाएगा कि अभी वह किसके पास रहने वाला है। बसपा अपने कॉडर के साथ ही सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला भी अपना रही है। इसके तहत दलितों के साथ ही ब्राह्मण, मुस्लिम, पिछड़े वोट बैंक पर अच्छा खासा ध्यान दिया जा रहा है। बसपा को 2007 में 30.43 प्रतिशत वोट मिले थे और 206 सीटों पर विजयश्री हासिल हुई। बसपा अध्यक्ष मायावती ने वर्ष 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के अंतर्गत 139 सीटों पर सवर्ण उम्मीदवारों को टिकट प्रदान किया था। तब बसपा ने 114 पिछड़ों व अतिपिछड़ों, 61 मुस्लिम व 89 दलित को टिकट दिया था। सवर्णो में सबसे अधिक 86 ब्राह्मण प्रत्याशी बनाए गए थे और इसके अलावा 36 क्षत्रिय व 15 अन्य सवर्ण उम्मीदवार चुनावी जंग में उतारे थे। पहले चरण के चुनाव के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूरी तरह से सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाते हुए 53 सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इनमें से 14 सीटें मुस्लिम उम्मीदवरों को दी गईं हैं। 9 ब्राह्मणों के अलावा 12 टिकट पिछड़े वर्ग के लोगों को दिए गए हैं। पहले चरण की लिस्ट में यह साबित भी हो गया। इसमें सर्वाधिक टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए गए हैं। इसके बाद पिछड़े वर्ग के उम्मीदवारों पर दांव लगाया गया है। पश्चिमी इलाके में मायावती ने मुस्लिम कार्ड खेला है। कुछ स्थानों पर दलित मुस्लिम समीकरण को दुरूस्त करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही ब्राम्हणों को भी अपने हिसाब से भरपूर टिकट दिये गय हैं। चुनावी पंडितों की मानें तो मायावती ने जिस तरह से टिकटों का वितरण किया है उससे माना जा रहा है कि कुछ सीटों पर भाजपा के लिए मुश्किल पैदा होगी, तो अधिकतर सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन की राह में कांटे खड़े होंगे।

यह भी पढ़ेः राहतः कोरोना के संक्रमण दर में आयी कमी, रिकवरी रेट में हुआ इजाफा

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बसपा ने जितनी बार सत्ता हासिल की है, वह किसी न किसी प्रकार की सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से ही पायी है। सबसे पहले मुलायम सिंह के साथ सरकार बनायी तो वह दलित पिछड़ों सोषल इंजीनियरिंग थी। इसके बाद भाजपा अगर तथाकथित सवर्णों की पार्टी मानी जाती है तो उन्होंने सवर्णों और दलित की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल किया। सोशल इंजीनियरिंग बसपा के सफलता का एक फॉर्मूला रहा है। जब उन्होंने देखा कि दो विधानसभा और दो लोकसभा में उन्हें पुराने हिसाब से सफलता नहीं मिली तो नए प्रकार के सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग किया है। अभी तक जो देखने को मिल रहा है। उसमें इस बार ब्राम्हण, मुस्लिम और दलित पर फोकस किया गया है। बसपा के पूर्व मंत्री नकुल दुबे का कहना है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में सोषल इंजिनियरिंग के फॉर्मूले पर पार्टी मैदान में है। भाजपा इस बार पूरे प्रदेश से साफ है। बसपा एकतरफा चुनाव जीत रही है। अबकी हमारा वोटर साइलेंट है। जितनी भी यात्राएं निकाल रही हैं इससे कुछ होने वाला नहीं है। वोटर जान रहा है कि यूपी को तरक्की की राह पर पहुंचाने के लिए बसपा की सरकार बनाना जरूरी है।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर  पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें…)

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें