बॉक्सर कविता चहल: ताने झेलकर रिंग में रचा इतिहास

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लखनऊः भारत में आज भी कई जगह लड़कियों को लड़कों से कम आंका जाता है और उन्हें घर के रसोई तक ही सीमित रखा जाता है। पहले कुछ समय तक हरियाणा के भिवानी जिले के छोटे से गांव निमणी का भी यही हाल था। यहां लड़कियों को घरों में ही सीमित रखा जाता था, लेकिन गांव की इस छोटी सी सोच को बदला निमड़ी गांव के भूपसिंह की बेटी कविता चहल ने। जहां लड़कियों को घरों से निकलने तक की आजादी नहीं थी, वहां कविता ने पुरुषों के दबदबे वाले खेल बॉक्सिंग में वो मुकाम हासिल किया जिससे आज निमड़ी से मुक्केबाजी में कविता के अलावा और भी कई बड़े लेवल की मुक्केबाज निकली हैं। आज कविता महिलाओं के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं, लेकिन कविता के लिए ये सफर तय करना आसान नहीं था। कविता 8 अप्रैल 2021 को अपनी आयु के 36 वर्ष पूरे कर रही हैं। आइए जानते हैं कविता के संघर्ष से सफलता तक की पूरी कहानी।

ऐसे हुई सफर की शुरुआत

चार बहनों में सबसे छोटी और दो भाइयों से बड़ी कविता चहल का जन्म 8 अप्रैल 1985 को हरियाणा के भिवानी जिले के निमड़ी गांव में हुआ था। शुरू से ही कविता को ज़ोर-आजमाइश वाले खेल आकर्षित करते रहे हैं। आज एक अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज के रूप में अपनी पहचान बना चुकीं कविता की पहली पसंद बॉक्सिंग न होकर कबड्डी थी, लेकिन कबड्डी मैच में एक बार घुटने में चोट लगने के बाद जब मां ने उसे खेलने से मना कर दिया, तो मां की इच्छा के लिए कविता ने कबड्डी को छोड़ दिया। बॉक्सिंग में कई मेडल्स अपने नाम कर चुकीं कविता के लिए ये सफर आसान नहीं था। कविता को इसकी प्रेरणा मिली अपने पिता भूपसिंह से, जो खुद एक राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज थे। सेना में भर्ती होने के बाद भी बॉक्सिंग के प्रति दीवानगी कम नहीं हुई, लेकिन एक हादसे ने उनकी ज़िदगी बदल दी। हादसे में घायल होने के बाद उनको नौकरी भी छोड़नी पड़ी और बॉक्सिंग का करियर भी खत्म हो गया। इस हादसे के बाद भूपसिंह पूरी तरह से टूट गए। उनके सपने टूट गए, किंतु उनके अंदर बॉक्सिंग का कीड़ा अभी भी ज़िंदा था। ऐसे में उन्होंने अपने बच्चों के ज़रिए अपने सपने को पूरा करने की ठानी। सबसे छोटा बेटा 4-5 साल का था, दस साल तक इंतजार करने का धैर्य नहीं था। ऐसे में सबसे छोटी बेटी कविता को ही बॉक्सिंग के गुर सिखाने की ठानी।

कविता ने भी साहस दिखाया और पिता की उम्मीदों को बिखरने नहीं दिया, लेकिन कविता के लिए यह काफी मुश्किल राह थी। रिंग में खेलने जाती तो लोगों के ताने झेले। घर छूटा, मगर हौसला नहीं टूटा। पूरी शिद्दत से कोशिश की और फिर इतिहास ही बदल दिया। कविता ने साल 2004 में महज़ 16 वर्ष की उम्र में ही बॉक्सिंग की शुरुआत की। फौजी पिता का सपना पूरा करने के लिए वह हर रोज बस में 35 किलोमीटर का सफर कर भिवानी आती। लीक से हटकर चलने में थोड़ी मुश्किलें आईं, मगर इस कमजोरी को ही मजबूती बनाकर वह आगे बढ़ती गईं। इसके बाद कविता कोच जगदीश के सानिध्य में भिवानी बॉक्सिंग क्लब जाकर बॉक्सिंग के गुर सीखने लगीं। कविता का कहना है कि जब वह पहली बार भिवानी बॉक्सिंग क्लब गई, तो उसके पैर अचानक रुक गए क्योंकि हर तरफ सिर्फ लड़के थे। रिंग के बाहर भी, भीतर भी। उस वक्त कविता के पीछे हटते पैरों को उसके पिता ने संभाला और प्रोत्साहित करते हुए आगे बढ़ाया।

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कविता की उपलब्धियां

उसी दिन से कविता ने कभी पलटकर नहीं देखा, और वह निरंतर विजय पथ पर अग्रसर है। उसकी मेहनत और लगन ने खूब रंग दिखाया है। आज कविता के पास पदकों की भरमार है। कविता निरंतर नई उपलब्धियां अपने नाम करती जा रही हैं। कविता 2 बार की वल्र्ड चैंपियनशिप मेडलिस्ट और 3 बार की वल्र्ड पुलिस खेल में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं। इसके अलावा वो 4 बार की एशियन चैंपियनशिप विजेता रह चुकी हैं। कविता अब तक 9 गोल्ड मेडल जीतने के साथ वूमेंस नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप की रिकॉर्डधारी हैं। साथ ही फेडरेशन कप में 5 गोल्ड मेडल को कविता अपने नाम कर चुकी हैं। कविता 2012 से 2014 तक वल्र्ड रैंकिंग में नंबर 2 पर भी रह चुकी हैं। वहीं कविता के नाम एक उपलब्धि ये भी है कि वो भारत सरकार के द्वारा 2013 में अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित की जा चुकी हैं। कविता हरियाणा की पहली महिला बॉक्सर हैं, जिन्हें अर्जुन अवॉर्ड मिला।