लखनऊः राजधानी लखनऊ के अमौसी स्थित चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर जल्द ही यात्रियों के चेहरे से उनकी पहचान की जाएगी। इसके लिए लखनऊ एयरपोर्ट पर ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ (चेहरे की पहचान प्रणाली) को लगाया जाएगा। इससे यात्रियों को बोर्डिंग पास और आईडी दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। एयरपोर्ट प्रशासन के मुताबिक लखनऊ एयरपोर्ट पर ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ को जल्द लगाया जाएगा। इससे यात्रियों को बोर्डिंग पास और आईडी दिखाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पहले इसे वाराणसी एयरपोर्ट पर शुरू किया गया था। अब इसे लखनऊ एयरपोर्ट पर भी लगाने की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। फिलहाल बेंगलुरु, हैदराबाद सहित 5 हवाई अड्डों पर इस तकनीक का प्रयोग हो रहा है।
चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट उत्तर भारत के प्रमुख हवाई अड्डों में शामिल है। लखनऊ एयरपोर्ट के नए टर्मिनल टी थ्री के बन जाने के बाद यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ेगी। इसलिए यात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए एयरपोर्ट प्रशासन कई तरह की सहूलियतें देने जा रहा है। लखनऊ में यह व्यवस्था वाराणसी एयरपोर्ट के साथ-साथ शुरू होनी थी, लेकिन तकनीकी पेंच फंसने की वजह से ऐसा नहीं हो पाया था। फिलहाल ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ के बारे में यात्रियों का फीडबैक लिया जा रहा है। इसकी रिपोर्ट एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया को भेजी जाएगी। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) की तरफ से ‘डिजी यात्रा योजना’ काफी पहले बनाई गई थी। जिसके तहत यह सिस्टम शुरू किया जाना है। वाराणसी एयरपोर्ट पर इस सिस्टम केे बारे में यात्रियों की अच्छी प्रतिक्रिया (रिस्पॉन्स) मिल रही है। फिलहाल यह योजना स्वेच्छा के आधार पर लागू है। यात्रियों की मांग पर ही उन्हें यह सुविधा दी जा रही है।
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हवाई अड्डे पर ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ का लाभ लेने वाले यात्रियों को पहली यात्रा के दौरान आधार नंबर, पैन या दूसरी आईडी के साथ रजिस्ट्रेशन कराना होगा। इससे उनकी डिटेल सुरक्षित हो जाएगी। डिटेल सुरक्षित होने के बाद जब यात्री हवाई यात्रा के लिए टिकट बुक कराएंगे तो उनसे जुड़ी जानकारी एयरपोर्ट प्रशासन तक पहुंच जाएगी। इसके बाद जब भी यात्री फ्लाइट डिपार्चर वाले दिन एयरपोर्ट पहुंचेंगे तो ‘हाई डेफिनिशन फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ यात्री के चेहरे को स्कैन करेगा और यात्री की आईडी से पहचान होने पर उन्हें आगे जाने दिया जाएगा। एयरपोर्ट पर तैनात सीआईएसएफ कर्मियों को बोर्डिंग पास और आईडी नहीं दिखानी पड़ेगी।
ऐसे कार्य करता है ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’
‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ एक बायोमेट्रिक प्रणाली है। किसी व्यक्ति की पहचान करने एवं दूसरे व्यक्ति से अंतर करने के लिए इसमें चेहरे के विशेष गुणों का प्रयोग किया जाता है। लगभग छह दशकों में स्किन पैटर्न को पहचानने से लेकर चेहरे की 3डी आकृति बनाने के लिए यह प्रणाली विकसित की गई है। प्रारंभिक स्तर पर ‘फेस रिकॉग्निशन सिस्टम’ में कैमरे द्वारा चेहरे और उसकी विशेषताओं को कैप्चर किया जाता है। इसके बाद विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर का उपयोग कर उन विशेषताओं को दोबारा निर्मित किया जाता है। चेहरे और उसकी विशेषताओं को एक साथ एक डाटाबेस में संग्रहित कर सुरक्षा के लिए उपयोग किया जाता है।