कोलकाताः पश्चिम बंगाल में सत्ता हासिल करने की कवायद में जुटी भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक सपनों को कोलकाता नगर निगम चुनाव में आघात लगा है। 34 सालों तक राज्य में शासन करने वाली वामपंथी पार्टियों का जनाधार जिस तरह से शून्य हो गया था ठीक उसी तरह से भारतीय जनता पार्टी कोलकाता में 10 साल पहले की राजनीतिक हैसियत में पहुंच गई है। 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनाव में भाजपा को महज तीन सीटें मिली थीं। पांच साल बाद जब 2015 में चुनाव हुए तो यह संख्या बढ़कर सात पर पहुंच गई थी। और अब एक बार फिर 2021 के केएमसी चुनाव में भाजपा की जीती हुई सीटों की संख्या घटकर तीन पर लौट आई है।
2010 में भाजपा ने 22, 23 और 42 नंबर वार्ड में जीत दर्ज की थी। इस बार 42 नंबर तो हाथ से निकल गया है लेकिन 22, 23 के साथ 50 नंबर वार्ड में भी पार्टी की जीत हुई है। अगर पहले संपन्न हुए चुनावों में भाजपा को मिले मत प्रतिशत के हिसाब से तुलना करें तो भी पार्टी को तुलनात्मक तौर पर बेहद कम सीटें मिली हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी को कोलकाता नगर निगम के क्षेत्र में 22 वार्डों में सर्वाधिक वोट मिले थे। इसी हिसाब से भाजपा ने कोलकाता नगर निगम पर जीत दर्ज करने की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी। लेकिन इसी साल अप्रैल-मई महीने में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को कोलकाता क्षेत्र में मिलने वाले मतों के आंकड़ों की अगर तुलना की जाए तो 2019 के मुकाबले 22 वार्डों से घटकर केवल 12 वार्डों में भाजपा को बहुमत मिली। उस समय भारतीय जनता पार्टी भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र के दो वार्डों में आगे थी। हालांकि हाल ही में भवानीपुर में जो उप चुनाव संपन्न हुए उसमें भवानीपुर के दोनों वार्ड में भाजपा पीछे हो गई थी।
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बावजूद इसके भाजपा के पास कहने के लिए यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी के बाद उसने ही सबसे अधिक सीट जीती है। हालांकि जहां भाजपा को केवल तीन सीटें मिली है वहीं तृणमूल को 134, यानी 45 गुना अधिक सीटें सजीती हैं।
माकपा को मिले भाजपा से अधिक वोट
चुनाव आयोग की ओर से अपडेटेड आंकड़े के मुताबिक 2015 में भारतीय जनता पार्टी को कोलकाता नगर निगम चुनाव में 15.42 फ़ीसदी वोट मिले थे जो इस बार घटकर नौ फ़ीसदी के करीब आ गए हैं। उल्टे इस बार माकपा को भी भाजपा से अधिक वोट मिले हैं। फिलहाल बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के 18 सांसद हैं और विधानसभा में करीब 75 विधायक हैं, लेकिन कोलकाता नगर निगम में महज तीन सीटें जीतने में ही पार्टी के पसीने छूट गए जो प्रदेश नेतृत्व के लिये बेहद निराशाजनक परिणआम कहा जा सकता है।
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