बीजेपी की ललकार से डरकर अमेठी से क्यों भाग रहे राहुल ?

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लखनऊः राहुल गांधी को कांग्रेस की पहली सूची में वायनाड से टिकट मिला है, लेकिन नेहरू गांधी परिवार की पारिवारिक सीट रायबरेली और अमेठी के लिए उम्मीदवारों की घोषणा न होने से कांग्रेस नेताओं के बीच चर्चा गर्म हो गई है। वहीं दूसरी ओर BJP नेता उन्हें बार-बार अमेठी से चुनाव लड़ने की चुनौती दे रहे हैं।

कांग्रेस सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी यहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस बार-बार उन्हें यहां लाने की कोशिश कर रही है। उनके यहां चुनाव न लड़ने की वजह ये है कि पिछली बार जब वो बसपा और सपा के समर्थन के बावजूद स्मृति ईरानी से हार गए थे तो इस बार बसपा भी अपना उम्मीदवार उतार सकती है। ऐसे में उन्हें जीतना मुश्किल होगा।

16 बार जीती कांग्रेस

गौरतलब है कि 1966 में अमेठी के लोकसभा क्षेत्र बनने के बाद से यह नेहरू-गांधी परिवार का संसदीय क्षेत्र रहा है। अब तक हुए 16 लोकसभा चुनावों और दो उपचुनावों में कांग्रेस ने 16 बार जीत हासिल की है। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत चार तहसीलें और पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं। राहुल गांधी सांसद बनने के बाद खुद तो चुनाव जीत जाते थे, लेकिन विधानसभाओं में अपने ज्यादातर उम्मीदवारों को जिताने में नाकाम रहे। पिछले चुनाव में स्मृति ईरानी ने उन्हें हराया था। इसके बाद उनका अमेठी आना नगण्य रहा।

2019 में अमेठी के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो 27 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने राहुल गांधी का समर्थन किया था। इसके बावजूद स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55,120 वोटों से हरा दिया, लेकिन इन दोनों के अलावा निर्दलीय या छोटी पार्टियों को मिलाकर 60540 वोट मिले। इसमें सात प्रत्याशियों को एक हजार से कम वोट मिले, जिन्हें मिलाकर 5183 वोट मिले। उसमें भी 3940 मतदाताओं ने नोटा पर बटन दबाया था। यानी इन वोटरों को राहुल, स्मृति या कोई और पसंद नहीं आया। उस चुनाव में स्मृति को 4,68,514 वोट मिले थे। जबकि राहुल गांधी को 4,13,394 वोट मिले। कुल पड़े वोटों में स्मृति ईरानी का वोट शेयर 49.71 फीसदी रहा। जबकि राहुल गांधी को 43.86 फीसदी वोट मिले।

राजनीतिक विश्लेषकों ने दी अपनी राय

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव में 55,120 वोटों से हारना कोई मायने नहीं रखता, लेकिन उसके बाद राहुल गांधी ने अमेठी आना बंद कर दिया। वह पांच साल में तीन बार अमेठी आ चुके हैं, जिसमें सिर्फ भारत जोधपुर यात्रा शामिल है, जबकि स्मृति ईरानी लगभग हर महीने वहां आती रही हैं। उन्होंने अमेठी में अपना आवास भी बना लिया है। ऐसे में राहुल गांधी वहां की जनता से कैसे जुड़ पाएंगे? वह स्मृति ईरानी के जवाब में कैसे मुखर हो पाएंगे?

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राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह की मानें तो उन्हें इस बात का भी डर है कि पिछली बार समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों ने सोनिया और राहुल के समर्थन में रायबरेली और अमेठी सीट से अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। ऐसे तो राहुल तीनों पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार बीएसपी वहां से उम्मीदवार उतार सकती है, क्योंकि मायावती का किसी से कोई समझौता नहीं है। ऐसे में राहुल गांधी को फिर से अमेठी से हार का सामना करना पड़ सकता है।

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