BJP सांसद ने संसद में की ‘वर्शिप एक्ट’ को खत्म करने मांग, कही ये बात

15

नई दिल्लीः भारतीय जनता पार्टी के सांसद हरनाथ सिंह ने आज राज्यसभा में पूजा स्थल कानून 1991 (Worship Act 1991) पर सवाल उठाए और इसे खत्म करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह कानून भगवान राम और भगवान कृष्ण के बीच अंतर करता है जबकि दोनों भगवान विष्णु के अवतार हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून हिंदू, जैन, सिख और बौद्धों के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

हरनाथ सिंह यादव ने कहा, ‘1991 का कानून संविधान में कानून की समानता का उल्लंघन करता है और कानून में प्रावधान है कि श्री राम जन्मभूमि के अलावा 1947 से लंबित मामले बंद माने जाएंगे और जो भी इस कानून का उल्लंघन करेगा उसे दंडित किया जाएगा।

उन्हें 1 साल से 3 साल तक की सजा हो सकती है। पूजा स्थल अधिनियम 1991 न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जो हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के अनुयायियों के अधिकारों में कटौती करता है। आजादी के बाद लंबे समय तक जो लोग सरकार में रहे, वे हमारे धार्मिक स्थलों के औचित्य को नहीं समझ सके और राजनीतिक लाभ के लिए अपनी ही संस्कृति को शर्मसार करने की प्रवृत्ति स्थापित कर ली।

प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या है ?

1991 का उपासना अधिनियम 15 अगस्त, 1947 से पहले के सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात करता है। चाहे वह मस्जिद, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल हों। वे सभी पूजा स्थल इतिहास की परंपरा के अनुसार वैसे ही रहेंगे। इसे कोई भी अदालत या सरकार नहीं बदल सकती।

सार्वजनिक पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने के संबंध में संसद ने स्पष्ट रूप से कहा था कि इतिहास और उसकी गलतियों को वर्तमान और भविष्य के परिप्रेक्ष्य में नहीं बदला जा सकता है। 2019 के अयोध्या फैसले के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने एक सुर में यही बात कही थी।

किस सेक्शन में क्या लिखा है?

इसमें पांच खंड हैं। पूजा स्थल अधिनियम धारा-2 के मुताबिक, 15 अगस्त 1947 के बाद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव को लेकर अगर कोई मामला कोर्ट में लंबित है तो उसे रोका जाएगा। पूजा स्थल अधिनियम धारा 3 के अनुसार, किसी भी पूजा स्थल को दूसरे धर्म के पूजा स्थल में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।

पूजा स्थल अधिनियम धारा-4(1) के अनुसार विभिन्न धर्मों के पूजा स्थलों का स्वरूप बरकरार रखा जाएगा। जबकि धारा 4(2) कहती है कि ऐसे विवादों से जुड़े मामलों को खत्म किया जाना चाहिए।

क्यों बनाया गया 1991 एक्ट?

यह कानून पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय आया था, जब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा, बिहार में उनकी गिरफ़्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर फ़ायरिंग से सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया था।

यह भी पढ़ेंः-UP Budget 2024: वैश्विक निवेश को आकर्षित कर रही योगी सरकार की प्रोत्साहन नीति-2023

इस बीच संसद में बिल पेश करते समय तत्कालीन गृह मंत्री एसबी चव्हाण ने कहा था कि सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने वाले पूजा स्थलों के धर्मांतरण को लेकर समय-समय पर उठने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को लागू करना जरूरी है। लेकिन तत्कालीन मुख्य विपक्षी दल बीजेपी ने इस बिल का कड़ा विरोध किया था।

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)