नई दिल्लीः हरियाणा के अप्रत्याशित चुनाव नतीजों ने कांग्रेस को दिन में ही तारे दिखा दिए हैं। चुनाव का ऐलान होने से पहले ही कांग्रेस जिस राज्य में एकतरफा जीत का खम ठोंक रही थी, वहां के नतीजों ने उसकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। बीजेपी की बल्ले-बल्ले हो गई है क्योंकि किसानों व पहलवानों के एक के बाद एक हुए आंदोलनों के चलते उसके नेता भी जीत को लेकर आशंकित नजर आ रहे थे लेकिन शीर्ष नेतृत्व की सटीक रणनीति और ‘चेंज’ पॉलिटिक्स ने सभी अनुमानों पर पूरी तरह पानी फेर दिया है। हरियाणा में इस बार न सिर्फ बीजेपी की बंपर जीत हो रही है बल्कि वह 50 प्लस के आंकड़े को भी पहली बार छूने में कामयाब होती दिख रही है।
अपनी पुरानी नीति पर कायम रही बीजेपी
इसके अलावा हरियाणा राज्य की जो सियासत रही है, उसमें कभी भी कोई पार्टी जीत की हैट्रिक नहीं लगा सकी है लेकिन इस बार बीजेपी ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए इस रिकॉर्ड को भी धाराशायी करती नजर आ रही है। अब आइए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है वो बीजेपी की चेंज पॉलिटिक्स, जिससे वह देश के अलग-अलग राज्यों में होने वाले चुनावों में विपक्षी दलों को पटखनी देती जा रही है और विपक्षी दल बेबस नजर आ रहे हैं।
देश की सियासत में अधिकतर पार्टियां परिवार पर आधारित हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी उस परिवार के हाथों में ही पार्टी की बागडोर रहती है। चाहे वह राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस हो या फिर बड़े क्षेत्रीय राजनीतिक दल। हालांकि, बीजेपी पर भी गाहे-बगाहे परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगते हैं लेकिन अभी तक भाजपा पर परिवार आधारित पार्टी का ठप्पा नहीं लगा है। यही वजह है कि भाजपा दम भरते हुए यह कहती है कि हमारी पार्टी का कोई सामान्य कार्यकर्ता भी राष्ट्रीय अध्यक्ष या प्रधानमंत्री बन सकता है। इसे कई बार पार्टी ने चरितार्थ करके भी दिखाया है, जहां पर ऐसे सामान्य कार्यकर्ताओं को अचानक मुख्यमंत्री या अन्य बड़े पदों की जिम्मेदारी दे दी गई, जिन्हें उसके पहले कोई जानता ही नही था।
हरियाणा में भी बीजेपी अपनी पुरानी नीति पर कायम रही और उसी के बूते उसने फतह हासिल कर ली। हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक के पीछे उसके मुख्यमंत्री को ‘चेंज’ करने की पॉलिटिक्स को ही सबसे अहम माना जा रहा है। इसी साल मार्च महीने में ही भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटाकर नायब सिंह सैनी को अचानक मुख्यमंत्री बना दिया था। उस समय बीजेपी के इस फैसले पर उसके कुछ अपने नेताओं के साथ विपक्षी दलों ने भी जमकर चटखारे लिए थे लेकिन उसका यही फॉर्मूला काम कर गया और पार्टी पहली बार 50 सीटों के आंकड़े को भी पार करती दिख रही है।
चुनाव से पहले हुए बदलावों ने किया कमाल
दरअसल, देश में हो रही ओबीसी पॉलिटिक्स को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इस समुदाय से आने वाले नायब सिंह सैनी को सीएम बना दिया था, जबकि मनोहर लाल खट्टर पंजाबी समुदाय से आते थे। ऐसे में खट्टर को हटाकर सैनी को सीएम बनाना भाजपा के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ। एग्जिट पोल में तो बीजेपी का सूपड़ा साफ होता दिख रहा था लेकिन अब चुनावी नतीजे कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। हरियाणा में जाटों का दबदबा माना जाता है और इस बार बीजेपी से वह नाराज चल रहे थे।
किसान आंदोलन के बाद पहलवानों के आंदोलन से जाट बीजेपी से छिटक रहे थे और यह भी माना जा रहा था कि कांग्रेस नेता दीपेंद्र हुड्डा को एकतरफा जाट वोट मिल सकते हैं। इसके बाद बीजेपी ने अपना आजमाया हुआ फॉर्मूला लागू किया और ओबीसी कैटेगरी से आने वाले नायब सिंह सैनी को सीएम की गद्दी पर बैठा दिया। सीएम बदलने का फायदा यह हुआ कि बीजेपी ने एंटी इन्कंबेंसी को कम कर दिया और ओबीसी वोटों को भी साध लिया। इसी का फायदा उसे इस चुनाव में मिलता दिख रहा है।
हरियाणा से पहले बीजेपी ने कई राज्यों में ऐन चुनाव से पहले ‘चेंज’ पॉलिटिक्स यानी मुख्यमंत्री को बदलने की रणनीति को अपनाया है और उसे काफी हद तक सकारात्मक परिणाम मिले हैं। आइए आपको बताते हैं कि किन राज्यों में ऐन चुनाव से पहले बीजेपी ने बदलाव किया और उसे बंपर जीत मिली। पहले बात करते हैं बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले राज्य गुजरात की। यहां पर बीजेपी ने दो बार चुनाव से पहले सीएम बदला और दोनों बार ही उसे बंपर फायदा मिला। 2017 के चुनाव से पहले आनंदीबेन पटेल को हटाकर विजय रूपाणी को सीएम बनाया तो बीजेपी ने 182 सीटों में से उसने 99 सीटें जीत लीं।
इसके बाद 2022 के चुनाव से एक साल पहले विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्र सिंह पटेल को सीएम बनाया और बीजेपी ने रिकॉर्ड 156 सीटों पर भगवा फहरा दिया। उत्तराखण्ड में 2022 चुनाव के ऐन पहले त्रिवेंद सिंह रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाया और फिर उन्हें भी रिप्लेस कर पुष्कर सिंह धामी को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इसका नतीजा रहा कि बीजेपी ने 70 में से 47 सीटों पर कब्जा जमा लिया। बात अब त्रिपुरा की करें तो यहां पर 2023 में चुनाव से ठीक पहले पार्टी ने बिप्लब कुमार देव को हटाकर मणिक साहा को सीएम बनाया। चुनाव हुए तो नतीजे बीजेपी के पक्ष में ही आए और पार्टी ने 60 में से 32 सीटों पर परचम लहरा दिया।
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बहरहाल, बीजेपी ने हरियाणा में हैट्रिक लगाकर राज्य की सियासत में एक नया कीर्तिमान रच दिया है और पार्टी के अंदर उठ रहे छिटपुट विरोध के स्वरों को भी दबाने में कामयाबी हासिल कर ली है। हरियाणा में मिली बंपर जीत बीजेपी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मरहम का काम भी करेगी क्योंकि किसान और पहलवान आंदोलन के चलते उसे काफी फजीहत झेलनी पड़ी थी लेकिन हरियाणा के जनादेश को अब वह अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों में भी भुनाने से नहीं चूकेगी।
रघुनाथ कसौधन
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