Bilkis Bano Case: सुप्रीम कोर्ट ने पलटा गुजरात सरकार का फैसला, बिलकिस बानों के दोषी फिर जाएंगे जेल

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Bilkis Bano Case, नई दिल्लीः बहुचर्चित बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को समय से पहले रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। इस का मतलब है कि बिलकिस बानो के 11 दोषियों को फिर से जेल की सलाखों के पीछे जाना होगा।

जस्टिस बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि रिहाई के संबंध में फैसला लेने का अधिकार गुजरात सरकार को नहीं, बल्कि महाराष्ट्र सरकार को है। अपराध भले ही गुजरात में हुआ हो, लेकिन गुजरात सरकार को फैसला लेने का अधिकार नहीं है क्योंकि मुकदमा महाराष्ट्र में चल रहा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि दोषियों को रिहा करने का गुजरात सरकार का फैसला सत्ता का दुरुपयोग है।

गुजरात सरकार ने 11 आरोपियों की सजा माफ कर दी थी

बता दें कि गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो गैंगरेप के 11 आरोपियों की सजा माफ कर दी थी। गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिस पर सोमवार यानी आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 12 अक्टूबर 2023 के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था।

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गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत वर्ष 2022 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के दोषियों की सजा माफ कर दी गई और उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया। इन दोषियों को 2008 में विशेष सीबीआई अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिस पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी मुहर लगा दी थी।

बिलकिस बानो मामले में जिन 11 दोषियों को रिहा किया गया, वे थे- गोविंद भाई नाई, राजूभाई सोनी, जसवंत भाई नाई, बकाभाई वोहनिया, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, कैसरभाई वोहनिया, रमेश चंदना,मितेश भट्ट, शैलेश भट्ट और प्रदीप मोधिन्या। वहीं सुप्रीम कोर्ट के आज के फैसले के बाद इन सभी दोषियों को फिर से जेल जाना होगा।

कैसे चला पूरा केस ?

गौरतलब है कि बिलकिस बानो करीब 21 साल की थीं जब 2002 में उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था। पांच महीने की गर्भवती बिलकिस बानो के अलावा तीन और महिलाओं के साथ रेप किया गया था। इसके बाद केस एक के बाद एक तारीख लगते हुए यह मामला चलता रहा और 2008 में एक अहम मुकाम पर पहुंचा जब 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। हालांकि आजीवन कारावास की सज़ा के खिलाफ मुकदमा भी दायर किया गया लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट ने सज़ा बरकरार रखी।

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