पटना: झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली, कचरा चुनने वाली और अनाथ बच्चियों ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके हाथ में किताब और कॉपी होगी, लेकिन आज ऐसे कई बच्चियों के हाथ में न कॉपी कलम हैं बल्कि पेंटिंग और नृत्य सहित अपनी छिपी प्रतिभाओं को भी निखार रही हैं। आज ये लड़कियां अपने दम पर सपने देख रही है और बुलंद हौसलों के साथ दुनियां में छाना चाहती हैं। पटना के मनेर प्रखंड के सराय स्थित स्वयंसेवी संस्था ‘नयी धरती ‘ द्वारा चलाये जा रहे सिस्टर निवेदिता बालिका स्कूल में ऐसी एक नहीं बल्कि करीब 100 ऐसी बच्चियां पढ़ाई कर रही हैं, जिनके माता-पिता नहीं है या उनके अभिभावकों के पास इतनी क्षमता नहीं कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेज सके।
कई बच्चियां पहले कचरा चुनने का काम करती थी लेकिन अब वे मैट्रिक पास कर 12 वीं में पढाई कर रही हैं। इन बच्चियों को यहां मुफ्त में रहने की सुविधा भी है। संस्था की सचिव नंदिता बनर्जी बैंक में चीफ मैनेजर थीं। उन्होंने बताया कि ऑफिस से घर आते-जाते अक्सर छोटी लड़कियों को कचरा चुनते देखती थीं। ये सब देख उन्हें दुख होता था। वह इनके लिए कुछ करना चाहती थीं लेकिन रास्ता नहीं सूझ रहा था।
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वे बताती हैं, “बैंक में नौकरी करते हुए भी सामाजिक कार्य करने में दिलचस्पी के कारण ऐसे कार्य करती रहती थी, लेकिन इस दौरान एहसास हुआ कि बडों की मदद कर उन्हें बदलना आसान नहीं है। इन गरीब, अनाथ परिवारों के नन्हें बच्चों के लिए कुछ किया जाए।” नंदिता ने नौकरी छोड़ दी और बेघर बच्चों के लिए काम करने लगीं। इसके बाद इन्होंने गरीब, असहाय बच्चियों के लिए स्कूल खोलने निर्णय लिया और करीब 2013 से सराय स्थित संस्था नई धरती गरीब बच्चियों की जिंदगी बदल रही है। नंदिता बताती हैं कि ऐसी पांच बच्चियां 2009 में हमारे पास आई थीं। 2011 में दानापुर के सराय में स्कूल खोला। 2013 में इस स्कूल की आठवीं तक मान्यता मिल गई।
उन्होंने बताया कि पहली बार 2020 में इस स्कूल की पांच बच्चियों ने बिहार बोर्ड ऑफ ओपन स्कूलिंग एंड एग्जामिनेशन के द्वारा आयोजित मैट्रिक की परीक्षा पास की। इस स्कूल से 79 प्रतिशत अंकों के साथ मैट्रिक परीक्षा पास कर चुकी तनु कुमारी आज 12 वीं की छात्रा है। डॉक्टर बनने का सपना देख रही है तनु यहीं छात्रावास में रहती हैं। तनु के पिता की अत्यधिक शराब पीने से मौत हो गई है जबकि उसकी मां शराब बेचने के आरोप में पिछले दो साल से जेल में बंद है। यह कहानी सिर्फ एक तनु की नहीं हैं। ऐसी कई बच्चियों हैं, जो गरीबी के कारण स्कूल का मुंह नहीं देखा था, लेकिन आज मैट्रिक की परीक्षा दे चुकी है। मैट्रिक की परीक्षा दे चुकी निभा कुमारी बताती हैं कि अगर आज यहां यह सुविधा नहीं मिलती तो वे कचरा चुनती या भीख मांग रही होती। लेकिन आज यह डॉक्टर बनकर समाजसेवा करने का सपना देख रही हैं।
यहां की बच्चियां सुबह साढ़े पांच बजे उठती हैं। प्रार्थना, योग, नाश्ते के बाद सभी क्लास में पहुंच जाती हैं। वार्डेन और काउंसेलर इन बच्चियों की दिनचर्या को मेंटेन करती है। आज इन बच्चियों को देखकर यह लगता है कि परिवर्तन कितनी सकारात्मक प्रक्रिया होती है। आज सभी बच्चियां न केवल पढ़ने में तेज हैं बल्कि वह कराटे, गीत-संगीत में भी निपुण हो चुकी हैं। यहां की दो बच्चियां पेंटिंग में पुरस्कार पा चुकी हैं। आज इन बच्चियों ने अपनी कमजोरी को ही ताकत बना लिया है।
नयी धरती संस्था की संस्थापक सचिव नंदिता बनर्जी कहती हैं कि आज स्कूल में सौ के आसपास बच्चियां पढ़ रही हैं। सभी बच्चियां गरीब घरों से हैं। कई बच्चियों के माता, पिता नहीं हैं। यहीं छात्रावास में रहती हैं और पढ़ती हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल में कंप्यूटर लैब, साइंस लैब है। उन्होंने कहा कि में जो अच्छी नहीं उनकी प्रतिभा को भी निखारने की कोशिश की जाती है। नंदिता बनर्जी बताती हैं कि वह सरकार से कोई मदद नहीं लेती हैं। उन्होंने कहा कि कई संस्था ऐसी है जो चंदा देती है और उसी से खर्च निकलता है। बनर्जी कहती हैं कि इस कार्य में पति रतीन्द्र कुमार बनर्जी का भी साथ मिलता है। उन्होंने पहलं तो काफी आर्थिक परेशानी थी, लेकिन अब लोगों का सहयोग मिल रहा है।
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