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Bhopal Gas Tragedy: 38 साल बाद भी नहीं भरे हैं भोपाल गैस त्रासदी के जख्‍म, न्याय के लिए संघर्ष रहे पीड़ित

भोपालः दुनिया की सबसे बड़ी और घातक रासायनिक आपदा भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) 38 साल पहले 1984 में 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात को हुई थी। इसका दुष्परिणाम आज भी हजारों लोग भुगत रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार के भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास (बीजीटीआरआर) के अनुसार इसके कारण 1लाख 20 हजार से अधिक लोग पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं और सैकड़ों लोगों की कैंसर, फेफड़ों की बीमारी, गुर्दे की बीमारी आदि के कारण असामयिक मौत हो रही है।

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रिपोर्ट ने कहा गया है कि हजारों बच्चे जन्मजात विकार के साथ पैदा हो रहे हैं। शहर के बीचोबीच एक वैश्विक जहरीला हॉटस्पॉट मौजूद है, जिसने दो लाख से अधिक लोगों के लिए मिट्टी और भूजल को प्रदूषित कर दिया है। 2016-17 में जारी आईसीएमआर द्वारा संचालित भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमएचआरसी) की वार्षिक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 1998-2016 के बीच की अवधि में जहरीले गैस से प्रभावित लगभग 50.4 प्रतिशत लोग हृदय संबंधी रोग और 59.6 प्रतिशत फुफ्फुसीय समस्याओं से पीड़ित थे। ।

पड़ताल में पता चला कि गैस पीड़ितों के लिए पिछले कई वर्षों में बहुत सारे काम किए गए, लेकिन अब भी कई ऐसे मुद्दे हैं, जो अनसुलझे हैं। सबसे महत्वपूर्ण इस आपदा के कारण होने वाली मौतों की संख्या में अंतर का होना है। सर्वेक्षण में एजेंसियों ने मृतकों का अलग-अलग आंकड़ा दिया है। कुछ पहले की रिपोटरें में कहा गया था कि हताहतों की संख्या 5-6 हजार के बीच थी, जबकि कुछ अन्य रिपोटरें में यह संख्या 15 हजार से अधिक बताई गई है। कुछ अन्य रिपोटरें में दावा किया गया है कि मरने वालों की संख्या एक लाख से अधिक हो सकती है। अब तक कोई सटीक डेटा सामने नहीं आया है।

उदाहरण के लिए 1984-1993 के बीच किए गए अपने सर्वेक्षण में आईसीएमआर की रिपोर्ट में 1994 तक आपदा के कारण 9,667 मौतों का उल्लेख किया गया है। लेकिन 2009 तक 23 हजार मौतों का अनुमान लगाया गया है। 2010 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पीड़ितों और बचे लोगों के परिजनों को अधिक मुआवजे की सिफारिश के लिए लिखे गए पत्र में उल्लेख किया था कि हादसे में कम से कम 10 हजार 47 लोगों की मौत हुई।

अभी यूनियन कार्बाइड कारखाने के अंदर और बाहर पड़े जहरीले कचरे की सफाई का मुद्दा अनसुलझा ही है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लोहे के तीन टैंकों में से एक (टैंक - ई610), जिसकी खराबी के कारण जहरीली गैस का रिसाव हुआ था और रिसाव के कुछ ही घंटों के भीतर लगभग 3 हजार लोगों की मौत हो गई थी, अभी भी सड़क के किनारे पड़ा हुआ है। भोपाल यूसीआईएल में 68 हजार लीटर तरल एमआईसी भंडारण की क्षमता वाले तीन टैंक थे।

इसके अलावा न्याय और मुआवजे के लिए कानूनी लड़ाई अभी भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस साल सितंबर में केंद्र से अतिरिक्त मुआवजे पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। रिपोटरें के अनुसार जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वह गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए यूएस-आधारित यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) की उत्तराधिकारी फर्मों से अतिरिक्त धन के रूप में 7,844 करोड़ रुपये की मांग वाली अपनी याचिका को आगे बढ़ाएगी। मामले की सुनवाई अब अगले साल 10 जनवरी को होगी।

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