संपादकीय

सर्दी के मौसम में परिवार के साथ छुट्टियां बिताने के लिए सबसे सुंदर स्थान

सर्दियों का मौसम साल का ऐसा समय होता है, जिसमें आप घूमने का भरपूर मजा ले सकते हैं। बहुत से लोग तो घूमने के लिए ठंड के मौसम का इंतजार करते हैं, जिससे वो बर्फ वाली जगहों पर घूमकर खूब आनंद उठा सके। भारत के अधिकांश इलाकों में नवंबर के महीनों में सर्दियों की शुरुआत हो जाती है। अगर आप यात्रा के शौकीन हैं, तो आप कहीं न कहीं सर्दी में जाने की योजना बना रहे होंगे, लेकिन अगर आपने अब तक नहीं तय किया है कि जाने कौन सी स्थान है, तो इन स्थानों के बारे में एक बार सोचे। ये सर्दी के मौसम में परिवार के साथ छुट्टियों का बिताने के लिए सबसे सुंदर स्थान (beautiful place) हैं, जहां आपका खर्च भी उतना नहीं होगा। तो चलिए जानते हैं वे कौन-कौन से पर्यटन स्थल हैं, जिनकी यात्रा को आप यादगार बना सकते हैं।

भारत का स्विटजरलैंड: शिलांग

मेघालय को यदि बादलों की धरती कहा जाये तो कोई गलती नहीं होगी। तेज हवा के साथ त्वचा को छूकर गुजरने वाले इन बादलों का सुखद अहसास केवल वहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है। मेघालय भारत का खूबसूरत राज्य है और यह प्रांत खासी, गारो आदि पहाड़ियों से मिलकर बना है। यहां के लोग इस उप-महाद्वीप की प्राचीनतम जातियों में से है और यह क्षेत्र भारत के कुछ इलाकों में से एक है, जहां आज भी मातृसत्तात्मक समाज के अवशेष विद्यमान हैं। इस राज्य के लोग बहुत ही मेहनती एवं विनोदप्रिय हैं, लेकिन यहां पर रहने वाले लोगों में पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं ज्यादा मेहनती और कामगार हैं। पान खाना यहां का आम रिवाज है। पान में हरा पत्ता और गीली सुपारी रहती है। गीली सुपारी अक्सर चबायी जाती है। शिलांग मेघालय की राजधानी है। शिलांग पहुंचना ज्यादा कठिन नहीं है। कोलकाता दिल्ली से इंडियन एयरलाइंस या फिर रेल से गुवाहाटी सुविधापूर्वक पहुंचा जा सकता है। वैसे कोलकाता से सीधे वायुदूत विमान सेवा से शिलांग जाया जा सकता है, लेकिन गुवाहाटी से शिलांग तक का सफर कार या बस से तय किया जाये तो उसका अपना अलग आनंद मिलेगा। सांप-सी बलखाती सड़कें, ढलानदार पहाड़ियों पर अनानास के बगीचे, कटहल के पेड़, बांस के जंगल, खुशगवार हवा और चेहरे पर मासूमियत लिये यहां के लोग, सब आपके स्वागत के लिए तैयार मिलेंगे। शिलांग को पूर्वी भारत का स्विटजरलैंड भी कहा गया है। गुवाहाटी से शिलांग तक की दूरी केवल तीन घंटे में तय की जा सकती है। शिलांग से मात्र 17 किमी पहले एक बड़ी झील एवं जलाशय है। इस प्राकृतिक झील का डिजाइन प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी ‘चार्ल्स कोरिया’ ने किया है। इस झील में एक तैरता हुआ रेस्तरां, पानी के खेल तथा एक खूबसूरत उद्यान भी है। इसके अतिरिक्त चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन किया हुआ एक सुंदर होटल भी है। शिलांग अपनी तरह का एक मात्र ऐसा पर्वतीय पर्यटन स्थल है, जहां पर न कड़ाके की सर्दी पड़ती है और न हिमपात होता है। सुखद मौसम यहां की विशेषता है। वर्षा और अधिक वर्षा यहां की एक ऐसी महत्वपूर्ण विशेषता है, जिसने उसे विश्व में सबसे ज्यादा बरसाती स्थल का दर्जा दिलवाया है। जी हां, चेरापूंजी ही वह जगह है, जहां सबसे ज्यादा बरसात होती है। उमड़-घुमड़ कर बादल आये, बरसे और चले गये। यह क्रम पूरा वर्ष यूं ही चलता रहता है। शिलांग पहुंच कर वहां रहने की व्यवस्था करना कोई मुश्किल काम नहीं है। भारतीय पर्यटन विकास निगम एवं प्रदेश पर्यटन विभाग के होटल आपका स्वागत करते हैं। होने को भारतीय पर्यटन विकास निगम का होटल अशोक फाइनवुड है, पर वह मंहगा है। प्रदेश सरकार पर्यटन विभाग का आर्किड होटल अपेक्षाकृत सस्ता, सुंदर एवं सुव्यवस्थित है । कई निजी होटल भी हैं जो सस्ते एवं अच्छे हैं। राज्य सरकार के पर्यटन विभाग ने प्रतिदिन टूरिस्ट बसों का विशेष प्रबंध कर रखा है, जो पर्यटकों को मेघालय के विभिन्न पर्यटक स्थलों के भ्रमण पर ले जाते हैं। शिलांग को झरनों की धरती कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां पांच बड़े ‘वाटरफॉल’ हैं, जिनके उतने ही सुंदर नाम हैं- स्वीट, विशप, एलिफेंट, क्रिनोलिन और शिलांग। यहां का गोल्फ मैदान, वार्डलेक, हैदरी पार्क, सेंटपाल का गिरिजाघर तथा शिलांग पीक देखने योग्य स्थान है। शिलांग पीक पर खड़े होकर पूरी वादी का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। चेरापूंजी, जहां विश्व में दूसरी सबसे अधिक वर्षा होती है, शिलांग से 56 किमी की दूरी पर है। यहां के डायन थलैन वाटरफॉल देखने योग्य हैं। हां, अगर आप भाग्यशाली हैं, तभी इनके दर्शन हो सकते हैं, क्योंकि अधिकतर समय ये वाटरफॉल धुंध की चादर में छुपे रहते हैं। विश्व के चौथे नंबर पर आने वाले नोहक्यलीकल वाटरफॉल भी यहीं पर है। most-beautiful-place-to-spend-holidays-with-family-in-winter-season चेरापूंजी से दालचीनी अवश्य खरीदनी चाहिए। यह यहां की विशेषता है। चेरापूंजी से करीब 20 किमी आगे जाने पर चूने के पत्थरों में बनी गुफायें हैं, जिनके दूसरे सिरे के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है- ऐसा हमें हमारे गाइड ने बताया। बांस की बनी टार्च से (जिसे यहां लोग बेम्बू टार्च कहते हैं) गुफा के भीतर जाने का प्रयास किया जा सकता है। वैसे इन डरावनी अन्धेरी गुफाओं को मुहाने से देखना ज्यादा बुद्धिमत्ता होगी। खरीदारी के लिए बड़ा बाजार सबसे उत्तम बाजार है। बांस की बनी हुई चीजें सुंदर एवं सस्ती हैं। नागा शाल व नागा स्कर्ट यादगार उपहार के लिए खरीदे जा सकते हैं। शिलांग किसी भी महीने में जाया जा सकता है। बादलों की इस धरती को करीब से देखने की सुखद अनुभूति को यहां जाकर ही महसूस किया जा सकता है। हां, आप अपना रेन कोट या छाता जरूर साथ ले जाइये।

हिमालय का सुंदर पर्वतीय सैरगाह: दार्जिलिंग

बंग प्रदेश (पश्चिमी बंगाल) का दार्जिलिंग पहाड़ी शहर समुद्र तल से 2,143 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसे बंगाल की ग्रीष्मकालीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। कहा जाता है कि पर्वतारोहण के लिए दार्जिलिंग से सुंदर स्थान कोई दूसरा नहीं है। यहां लगभग वर्ष भर देशी-विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता है। दार्जिलिंग शहर की भौगोलिक स्थिति अत्यंत ही सुंदर है। शहर के किसी भी भाग से हिमालय की चोटियों की श्रृंखला देखी जा सकती है, जो विश्व के किसी भी भाग में सुलभ नहीं है । दार्जिलिंग पहुंचने के लिए पश्चिमी बंगाल के सिलीगुड़ी एवम् न्यू जलपाईगुडी रेलवे स्टेशनों तक देश के प्रत्येक भाग से रेलगाड़ियां मिलती हैं। यहां का निकटतम हवाई अड्डा सिलीगुडी शहर से 12 किमी दूर बागडोगरा में है। बागडोगरा से दार्जिलिंग तक का सफर मात्र 03 घण्टे का है। अनेक टैक्सियां तथा बसें सुगमतापूर्वक उपलब्ध रहती है। सिलीगुड़ी रेलवे स्टेशन से छोटी गाड़ी (खिलौना गाड़ी) भी चलती है, जो लगभग 07 घंटे में दार्जिलिंग पहुंचाती है। इससे यात्रा करने का अपना अलग ही आनंद है। दार्जिलिंग के मॉल रोड पर अनेक दर्शनीय स्थल हैं। मॉल रोड से हिमालय की गगनचुम्बी चोटियों की गोद में झूलते दार्जिलिंग शहर की प्राकृतिक छटा एवं हरियाली का दृश्य अद्वितीय लगता है। यहां पर दिन भर सैलानियों का तांता लगा रहता है। मॉल रोड पर आगे बढ़ने पर जवाहर पर्वत पर हिमालय पर्वतारोहण संस्थान है, जिसमें एवरेस्ट विजेताओं की विजयगाथा दुर्लभ चित्रों से दर्शाई गई हैं। यहां पर्वतारोहण से संबंधित समस्त जानकारी मिलती है। मॉल रोड से थोड़ा और आगे बढ़ने पर पद्मजा नायडू जैविक उद्यान है, जिसमें सोन चिड़िया, बर्फीली गाय (याक) तथा स्नो लिओपार्ड आदि दुर्लभ जंतु देखे जा सकते हैं। बस स्टैण्ड के नीचे ही विश्वविद्यालय लायड बॉटेनिकल गार्डन है, जिसमें अनेक विदेशी दुर्लभ पेड़-पौधे उगाए गए हैं। यहां के हारबेरियम में दार्जिलिंग तथा सिक्किम व हिमालय के हजारों पौधों के 100 से भी अधिक वर्ष पुराने नमूने रखे हैं। यहां के हरित गृह की छटा अद्वितीय है। इनके अतिरिक्त आवा आर्ट गैलरी, राजभवन (गर्वनर हाउस) के पीछे स्थित ‘दि श्रवरी’ नामक उद्यान, जहां से कंचनजंघा श्रृंखला तथा सिंगाघाटी का मनमोहक दृश्य दिखता है। रंजीत घाटी, रोपवे, लेवांग रेसकोर्स (विश्व में सबसे ऊंचाई पर स्थित तथा सबसे छोटा रेसकोर्स) आदि दर्शनीय है। दार्जिलिंग आने वाला हर दर्शक यहां की प्रख्यात ‘टाइगर हिल’ से सूर्योदय देखने को लालायित होता है। यहां प्रातः चार बजे से ही लोगों का तांता लग जाता है। एक अन्य बतासिया लूव ये मुड़ती हुई खिलौना गाड़ी का यह इंजीनियरिंग का अद्वितीय नमूना है। धार्मिक स्थानों में दार्जिलिंग से लगभग 08 किमी दूर घूम में स्थित बौद्ध मंदिर, रेलवे स्टेशन के पास ही स्थित धी धाम मंदिर तथा दार्जिलिंग चौरस्ते के पास ही स्थित आबजर्वेअरी हिल प्रमुख है। दार्जिलिंग की प्रसिद्धि में यहां चाय का बड़ा योगदान है। यहां मीलों फैले चाय के बाग ऐसे दिखते हैं, जैसे पहाड़ों पर हरा कालीन बिछा हो।

गुवाहाटी: जहाँ दूर-दूर तक फैली है हरियाली

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे बसा गुवाहाटी नगर पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार है। सात राज्यों में बंटा यह पूर्वोत्तर भारत पहले असम प्रांत था। असम प्रांत की राजधानी गुवाहाटी है, जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इसके एक ओर मणिपुर, दक्षिण में मिजोरम, त्रिपुरा, बंग्लादेश और मेघालय तथा पश्चिम में पश्चिम बंगाल स्थित है। गुवाहाटी में मंदिर, चिड़ियाघर, झील, म्यूजियम, टी.वी. टावर, पार्क आदि देखने योग्य हैं। यहां कामाख्या मंदिर भी है। यह स्थान ‘कामरूप कामाख्या’ के नाम से प्रसिद्ध है। कामरूप अति प्राचीन और विचित्र देश है। इसके विषय में पौराणिक कहानियां आज भी भारत के कोने-कोने में प्रचलित हैं। जनसाधारण की यह धारणा है कि यहां ‘देवता’ और ‘असुरों’ का राज्य था तथा यहां के निवासी तंत्र मंत्र व जादू-वशीकरण विद्या द्वारा लोगों को अनायास ही भेड़-बकरी वगैरह बनाकर रखते थे। पत्थरों से बने हुए मार्ग, घाट, मंदिर तथा नाना प्रकार की कलात्मक मूर्तियों को देखकर यात्री मुग्ध हुए बिना नहीं रहते। गुवाहाटी में देखने योग्य कई मंदिर हैं। कामाख्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, उमानंद आदि मंदिरों के ऐतिहासिक भवनों को देखकर आप चकित रह जायेंगे। कामाख्या मंदिर गुवाहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग 10 किमी की दूरी पर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। यहां रेलवे स्टेशन से बस या टैक्सी द्वारा जा सकते हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार पर पंडे पुजारियों की भीड़ लगी रहती है, जो अपनी अदाकारी दिखाकर लोगों को ठगते हैं। पूजा कराने तथा बलि देने के नाम पर सैकड़ों रुपये वसूल लेते हैं। आप को यदि दर्शन करने हों तो किसी भी पण्डे को भाड़ा दिए बिना ही दर्शन करें, वरना मंदिर में घुसने के लिए घूस की रकम तिगुनी-चैगुनी हो सकती है। कामाख्या पहाड़ से लगभग 15 किमी दूर गुवाहाटी-शिलांग मार्ग पर 07 किमी भीतर निर्जन स्थान में यह आश्रम है। वशिष्ठ आश्रम से कुछ दूर पश्चिम की ओर वशिष्ट मुनि की पत्नी अरुंधती देवी का शिलाचिन्ह भी है। इसी स्थान पर वशिष्ट गंगा नामक एक अत्यंत मनमोहक जल-प्रपात है, जहां पर बड़े वेग से जल प्रवाहित होता है, जिसे देखकर पर्यटक प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। गुवाहाटी स्टेशन से लगभग 05 किमी दूर गणेशगुड़ी नामक स्थान के निकट असम चिड़ियाघर एवं जैविक उद्यान है। इसमें विभिन्न प्रकार के पक्षियों का कलरव यात्रियों को सहज ही आकर्षित करता है। पूरा चिड़ियाघर देखने के लिए दिन भर का समय चाहिए। सांप घर में कई नस्लों के सांप रखे गए हैं। चिड़ियाघर के भीतर एक यात्री टावर बनाया गया है, जिससे आप पूरा गुवाहाटी शहर देख सकते हैं। गुवाहाटी स्टेशन के समीप ही जिला पुस्तकालय के बगल में असम राज्य संग्रहालय है। most-beautiful-place-to-spend-holidays-with-family-in-winter-season इसके सामने एक सरोवर (पिघली पुखरी) और पार्क है। गुवाहाटी में जज फील्ड के पास नेहरु पार्क है। शाम के समय इस पार्क में काफी भीड़ रहती है। रंग-बिरंगे फूलों से भरे इस पार्क के भीतर एक झील है, जिसमें मछलियों को तैरता देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। गुवाहाटी से लगभग 24 किमी दूर हाजो (पोवा मक्का) नामक एक स्थान है, यहां हिन्दु, मुस्लिम और बौद्ध संप्रदाय के लिए महत्वपूर्ण स्थल हैं। टी.वी. टावर- यह पूर्वोत्तर भारत का सबसे ऊंचा टी.वी. टावर है। यहां से आप गुवाहाटी शहर का अवलोकन कर सकते हैं। गुवाहाटी में इसके अलावा और भी दर्शनीय स्थल हैं।

पर्यटकों का स्वर्ग: गंगटोक

सिक्किम की राजधानी गंगटोक समुद्र तल से 1600 मीटर ऊंचाई पर स्थित प्राकृतिक सौन्दर्य का अद्भुत स्थल है। घनी हरीतिमा के बीच उभरे एक नगीने की तरह गंगटोक की अपनी शोभा है। ज्यों-ज्यों सड़कें चढ़ती जाती हैं, ऊंचाई बढ़ती जाती है। जीरो प्वाइंट की ऊंचाई 6,000 फीट है। पर्वतारोहण के आकांक्षी कंचनजंघा पहुंचते हैं। भोर की पहली किरण में चांदी से चमकते कंचनजंघा के दर्शन गंगटोक से भी किए जा सकते हैं। यहां के पहाड़ की ऊंची चोटियां, शांत घाटियां तथा कल-कल करती नदियां स्वतः ही पर्यटकों को आमंत्रित करती प्रतीत होती हैं। गंगटोक की स्थापत्य कला, हरियाली युक्त घाटियां आनन्द, उल्लास भर कर सैलानियों को रोमांचित कर देती हैं। विश्व की तीसरी ऊंची चोटी कंचनजंघा की तलहटी में बसे गंगलेक का अर्थ है ‘ऊंचा पहाड़’ है । यहां ‘तिब्बतोताजी’ ऐसा ही स्थान है, जहां तिब्बती कला के बेहतरीन नमूने हैं। ऑर्किड के नमूनों का उद्यान भी दर्शनीय है। कुछ झीलें भी देखने लायक हैं। खेचीपेरी ताल (यक्ष ताल) व छंगु झील ऐसे ही दर्शनीय स्थल हैं। कहा जाता है कि यहीं महाभारत में वर्णित यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से प्रश्न किए गए थे। फूलों से भरे डियर पार्क में अनेक दुर्लभ हिरणों की प्रजातियां देखी जा सकती हैं। लाल पंडा और चौकड़ी भरते हिरण प्रकृति प्रेमी पर्यटकों को अत्यंत लुभावने लगते हैं। इस उद्यान के मध्य में बुद्ध की एक स्वर्ण जड़ित प्रतिभा लगी हुई है, जो शांति प्रदान करने वाली प्रतीत होती है। यह अन्य दिन प्रातः 08 बजे से 11 बजे तक तथा छुट्टी के दिन प्रातः 08 बजे से सांय 05 बजे तक खुला रहता है। ऑर्किड सेंचुरी में विभिन्न प्रजातियों के 200 से अधिक दुर्लभ पौधों का संग्रह है। यह तिब्बती संस्थान के नीचे बना एक अनूठा तथा दर्शनीय स्थल है। तिब्बती रिसर्च इंस्टीट्यूट नामक स्थान तिब्बती बौद्ध साहित्य के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इसमें प्राचीन पांडुलिपियों, चित्रकृतियां, पूजा के लिए अनुपम वस्तुएं, प्रतिमाएं आदि का अनूठा संग्रह है। यह देश-विदेश के शोधार्थियों के लिए भी कार्य करता है। गंगटोक से लगभग 08 किमी की दूरी पर ताशी व्यू प्वाइंट स्थित है। यह एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है, जहां से कंचनजंघा पर्वतश्रेणी के सौन्दर्य को निहारा जा सकता है। साथ ही टसुकला खांग, यह बोग्याल शासकों का धार्मिक स्थल है। इसके स्तम्भ, दीवारों की चित्रकारी, नक्काशी एवं पच्चीकारी अत्यंत आकर्षक है। इस स्थल की भीतरी खूबसूरती के साथ-साथ बाहर से दूर तक फैले हुए पहाड़ी का सौन्दर्य भी देखा जा सकता है। अब आधुनिक फैशन सिक्किम में पहुंच चुका है। विशेषकर गंगटोक शहर आधुनिक महानगरीय संस्कृति की पूरी-पूरी तस्वीर पेश करता है। एक से एक ऊंची इमारतें, बड़ी-बड़ी दुकानें, सरसराती रंग-बिरंगी मोटर कारें, वीडियो पार्लर, सड़कों पर चहल-कदमी करते हुए लड़के-लड़कियां मुख्य बाजार में जगह-जगह फिल्मी गीतों के कैसेट वगैरह गंगटोक के कुछ नीचे लाल बाजार में प्रतिदिन शाम को हाट लगता है, जहां दुकानदारी करीब-करीब महिलाएं ही करती हैं। सिक्किम का पहनावा अलग-अलग है। नेपाली स्त्रियां कमर से ऊपर ब्लाउज पहनती हैं और सिर को एक प्रकार के दुपट्टे से ढकती हैं। अधिकतर पुरुष चुस्त पाजामा और मिरजईनुमा एक ऊंचा कुर्ता पहनते हैं। कमर में कपड़ा बांधे रहते हैं। भोटिया स्त्री-पुरुष लंबा चोंगा पहनते हैं। यहां की सभी जातियों की स्त्रियां सोना, फीरोजी पत्थर और तरह-तरह के मोतियों की लड़ियों के आभूषण पहनती हैं। सिक्किम में तीन भाषाएं प्रचलित हैं- लेपचा, नेपाली और तिब्बती। लेपचा भाषा की अपनी लिपि है। नेपाली ठेठ नेपाली बोलते हैं तथा स्कूलों में तिब्बती और अंग्रेजी प्रमुख भाषाएं हैं। सिक्किम में साहित्य के नाम पर जो कुछ है, वह तिब्बती भाषा में लिखे गए धर्मग्रंथ ही हैं। इन ग्रंथों में कंजूर तंजूर नामक बौद्ध धर्म ग्रंथ वहां रामायण और गीता की तरह पूजे जाते हैं। कंजूर भगवान बुद्ध के उपदेशों का संग्रह है। करीब एक हजार पृष्ठों के 108 ग्रंथों का यह महाग्रंथ तिब्बती में संस्कृत का अनुवाद है। नेपाली भाषा में कुछ नया साहित्य भी तैयार हो रहा है। यहां के नेपाली कवियों में तुलसी अपतन, संतोष बरदेवा, रामदत्त लाल ठाकुर तथा कु. शांति प्रधान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। यह भी पढ़ेंः-जन-जन के राम यहां से नेपाली भाषा में कुछ पत्र-पत्रिकाएं भी प्रकाशित होती हैं। जिस प्रकार इस राज्य की अधिकांश घाटियां फूलों से आच्छादित रहती है, उसी प्रकार विविधवर्णी पक्षियों के कलरव से घाटियां गूंजती रहती हैं। सुबह-शाम उनके स्वर अत्यंत कर्णप्रिय लगते हैं। यहां पक्षियों की लगभग 550 प्रजातियां पाई जाती हैं। करीब 04 हजार किस्म के पौधे यहां मिलते हैं। बांस, बड़ी इलायची, संतरा भी यहां काफी होता है। पशुओं में काले रंग का भालू, लाल रंग का पंडा, हिरण और हिम में पाये जाने वाले तेंदुए मिलते हैं। सिक्किम का सबसे पवित्र स्थान काटेंन तासीडिंग के नाम से प्रसिद्ध था. जहां के महत्वपूर्ण मठों में पेमीयांगची तथा फोदंग का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है । सिक्किम की प्राकृतिक शोभा का अवलोकन करने के लिए प्रति वर्ष पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है। ज्योति प्रकाश खरे (अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक और ट्विटर(X) पर फॉलो करें व हमारे यूट्यूब चैनल को भी सब्सक्राइब करें)