लखनऊ: हाल ही में लखनऊ में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय एलर्जी संगोष्ठी में एलर्जी और अस्थमा (Allergies and Asthma) के बीच गहरे संबंध पर प्रकाश डाला गया। अमेरिकन कॉलेज ऑफ चेस्ट फिजीशियन के तत्वाधान में आयोजित इस संगोष्ठी में देश-विदेश के कई विशेषज्ञों ने भाग लिया।
तीन में एक पीड़ित को अस्थमा का खतरा
संगोष्ठी में प्रमुख वक्ता डॉ. सूर्यकान्त, जो कि केजीएमयू में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष भी हैं, ने बताया कि अस्थमा और एलर्जिक राइनाइटिस (नाक की एलर्जी) एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि अस्थमा के 80 फीसदी मरीजों में एलर्जिक राइनाइटिस की समस्या भी होती है, और साथ ही एलर्जिक राइनाइटिस से पीड़ित हर तीन में से एक व्यक्ति को अस्थमा से पीड़ित होने का खतरा बना रहता है।
चेस्ट फिजीशियन से सलाह लेना जरूरी
डॉ. सूर्यकान्त ने इस बात पर जोर दिया कि नाक को घर के प्रथम तल और फेफड़े को भूतल मानकर समझा जा सकता है। अगर प्रथम तल पर कोई समस्या है तो उसका असर भूतल पर भी पड़ता है। उन्होंने बताया कि एलर्जिक राइनाइटिस के मरीजों को नाक, कान, गला विशेषज्ञ के साथ-साथ चेस्ट फिजीशियन से भी सलाह लेनी चाहिए। अमेरिकी विशेषज्ञ डा0 अंजू त्रिपाठी पीटर्स ने नेजल स्प्रे, एन्टी-एलर्जिक दवाएं, इम्यूनोथेरेपी और सर्जरी जैसे उपचारों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि इन उपचारों के माध्यम से एलर्जिक राइनाइटिस को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।
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गंभीर बीमारियों से बचने की दी गई सलाह
इस संगोष्ठी में देश के 49 शहरों से 1000 से अधिक डॉक्टरों ने वर्चुअल माध्यम से भाग लिया। संगोष्ठी का आयोजन लखनऊ के एक होटल में किया गया और सैनेफी लिमिटेड इसका एजुकेशनल पार्टनर रहा। यह संगोष्ठी एलर्जी और अस्थमा के बीच के संबंध को समझने और इन बीमारियों के प्रबंधन के लिए नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच साबित हुई। विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि एलर्जिक राइनाइटिस को समय पर पहचानकर और उसका उचित इलाज करके अस्थमा जैसी गंभीर बीमारियों को रोका जा सकता है।
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