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UP Elections: पिता रहे 5 बार विधायक, बेटे ने लगायी हार की हैट्रिक

बागपतः यूपी के बागपत विधानसभा सीट पर पांच बार विधायक रहे कोकब हमीद के बेटे अहमद हमीद को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा। इस तरह उन्होंने हार की हैट्रिक लगायी। बार-बार दल बदलने के बावजूद अहमद हमीद को जीत प्राप्त नहीं हुई। विधानसभा चुनाव- 2022 में वे भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार योगेश धामा से परास्त हो गये। महज मुस्लिम वोटों के दम पर टिकट पाने वाले अहमद हमीद के राजनीतिक सूरज पर अब सवाल उठने लगे हैं। इस बार अहमद हमीद सपा-रालोद गठबंन के उम्मीदवार थे।

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2012 में लड़ा था पहला चुनाव

बता दें कि हमीद ने अपना पहला चुनाव 2012 में रालोद के टिकट पर ही लड़ा था। तब उन्हें बहुजन समाज पार्टी की उम्मीदवार हेमलता चौधरी ने करीब 7000 वोटों से पराजित किया था। तब हेमलता चौधरी को 56,957 वोट मिले थे, जबकि अहमद हमीद को 49,294 वोट प्राप्त हुये थे। उस हार के बाद अहमद हमीद ने रालोद का दामन छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया था। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में अहमद हमीद बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया।

भाजपा उम्मीदवार योगेश धामा ने उन्हें हार का मुंह दिखाया। तब धामा को 92,566 वोट मिले थे, जबकि बहुजन समाज पार्टी से किस्मत आजमा रहे अहमद हमीद को 61,206 वोट मिले थे। वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर अहमद हमीद ने रालोद-सपा गठबंधन से चुनाव में ताल ठोक दी। लेकिन इस बार भी उनको हार का सामना करना पड़ा। लगातार हार की हैट्रिक लगाने वाले अहमद हमीद को इस बार 94,224 मत मिले, जबकि योगेश धामा को 1,00,639 मत प्राप्त हुये। भाजपा विधायक योगेश धामा ने अहमद हमीद को 6,415 मतों से हराया।

मुस्लिम वोटों के दम पर पाते रहे टिकट

अहमद हमीद बार-बार पार्टियां बदलने और अपना हित सर्वोपरि रखने में राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। राजनीतिक पार्टियों ने मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए उन्हें टिकट देना मुनासिब समझती है। दो बार राष्ट्रीय लोक दल एवं एक बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़कर उनका मुस्लिम कार्ड अब विफल साबित हुआ है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि 2017 के चुनाव में बसपा के टिकट पर अहमद हमीद को मुस्लिम एवं हरिजनों का वोट मिला था। जबकि रालोद सपा गठबंधन के टिकट पर जाट, यादव और मुस्लिमों का वोट मिला। करीब 30 हजार से ज्यादा हिन्दू वोट मिलने के बावजूद अहमद हमीद एक कमजोर प्रत्याशी ही साबित हुये हैं, जिसने बड़ी पार्टियों से टिकट पाकर भी हार की हैट्रिक लगायी है।

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