राजधानी के आम उत्पादक किसानों का बुरा हाल, धूल फांक रहीं लाखों की लागत से लगाई गईं मशीनें

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लखनऊः यूपी सरकार ने बीते साल अपने बजट में आम उत्पादकों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कई वायदे किए थे। इनमें एक यह भी था कि आम पट्टी में बागवानों को समृद्ध बनाने में विभिन्न तरीकों से सरकार मदद करेगी। आर्थिक मदद के साथ आम की फसल से उत्पाद बनवाकर देश-विदेश में पहुंचाने में सहयोग करेगी। जब किसानों तक सरकारी ख्वाब पहुंचे तो वह काफी खुश भी हुए थे लेकिन यह कल्पना कोरी ही रह गई, साथ ही लाखों रूपयों से बना भवन भी हाथी दांत साबित हो रहा और मशीनें धूल के कारण जंग खाने लगी हैं।

सरकारी घोषणाओं में बताया गया था कि माल और मलिहाबाद में आधुनिक फैक्ट्रियां लगाई जाएंगी। इन फैक्ट्रियों में आम के उत्पाद तैयार किए जाएंगे। इनमें तमाम तरह के स्वाद चखने को मिलेंगे लेकिन हकीकत यह है कि आम पट्टी मलिहाबाद और माल में जो भी प्रयास किए गए, वह तो पहले से ही किए गए थे। आज तक उन्हें अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। क्षेत्र में मैंगो पैकिंग हाउस बनाया गया और यह काम बागवानों के फसल बिक्री कार्य को आसान करने के लिए किया गया था। इसमें लाखों रुपए खर्च भी हुए। यह भी सच है कि विदेशों में आम मलिहाबाद और माल से भी जाता है लेकिन इसमें पैकिंग हाउस की कोई भूमिका नहीं है। इस साल भी विदेशों में आम भेज दिया गया है।

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क्या कहना है किसानों का…

बागवान चाहता है कि क्षेत्र में ही आम बिके, भले ही वह किसी भी उत्पाद के लिए हो। मैंगो पैक हाउस में आम पकाने का काम किया जाता था। हालत यह है कि यहां आज आम पहुंचाया भी नहीं जाता है, जबकि आम उत्पादकों को आंधी, तूफान और बारिश तथा ओलों से नुकसान होता है। जिला उद्यान अधिकारी बैजनाथ सिंह ने भी यह स्वीकार किया है कि आपदा राहत लाभ उनके अधिकारों से बाहर है। आम उत्पादकों का वह किसी प्रकार से मदद नहीं कर सकते हैं। अब तो जिला उद्यान विभाग के औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं।

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किसानों के सामने परेशानी केवल सेलिंग या फिर उत्पाद न बनने की ही नहीं है, उसके सामने आम सीटों पर हमले, छिड़कने की दवा, सब्सिडी और नहरों का पानी भी है। आखिर किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी, यह बड़ा सवाल है। सरकार ने पूर्व में कहा था कि आम बागवानों को विभिन्न कारणों पर सब्सिडी दी जाएगी। सब्सिडी योजना के कारण ही किसानों तक नकली दवाएं पहुंच रही हैं। किसानों की मांग थी कि बिक्री केंद्र पर ही सरकार की ओर से कीटनाशक दवाएं दी जाएं, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। आम उत्पाद को लेकर आज भी असमंजस बना हुआ है।

 1996 में राजकीय संस्कृति उद्यान में लगाई गई थी एक यूनिट 

मलिहाबाद में कृषि रक्षा इकाई भी है, लेकिन इससे भी आम बागवान नाखुश हैं। आम व्यापारियों तक ज्यादा लाभ पहुंचाने के लिए 1996 में राजकीय संस्कृति उद्यान में एक यूनिट लगाई गई थी। इसमें लाखों रुपए सरकार की ओर से खर्च किए गए। यहां आम के उत्पाद बनाकर बेचने के लिए मशीनें लगाने का काम शुरू किया गया था। पूरा काम एक इमारत में हो सके, इसलिए अलग से एक बिलिंडग की व्यवस्था की गई थी। हालत यह है कि बड़े अधिकारियों की लापरवाही खुलकर सामने आ गई। आज तक यह तय नहीं हो सका कि उत्पाद कौन तैयार करेेगा ? काम के लिए न तो कर्मचारी लाए गए और न ही किसी को मेन्यू तैयार करने के लिए ट्रेनिंग दिलाई गई।

तमाम किसानों ने जो सपना आय को लेकर देखा था, वह सपना ही साबित हुआ। बागवान और किसान अब ज्यादा दिन महंगाई झेलने की स्थिति में नहीं हैं। मौसम भी किसानों का साथ नहीं दे रहा है। मलिहाबाद के किसान राजेश सिंह यादव तथा माल के किसान लईक खान कहते हैं कि सबसे बड़ी समस्या पेड़ों की सिंचाई की है। यदि आम के पेड़ के आस-पास पानी भरा रहता है तो उसके फल आंधी-तूफान में जल्दी नहीं टूटते हैं लेकिन सिंचाई काफी कठिन है। बिजली महंगी होने के कारण बाग में पानी भर पाना काफी खर्चीला साबित होता है। ज्यादातर नहरों में पानी नहीं है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष मैंगो एसोसिएशन आफ इंडिया इनसार अली ने पूर्व में नहरों में पानी की मांग भी की थी। आंकड़े बताते हैं कि 2,75,000 हेक्टेयर में आम की पट्टी फैली है, लेकिन इस खेती के प्रति सरकारी दिलचस्पी नहीं है। इसके अलावा सबसे बड़ी बात यह है कि आंधी और तूफान के जरिए आम का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। इस बार भी तीस फीसदी से ज्यादा नुकसान आम उत्पादकों का हो चुका है। किसान आज भी मांग कर रहे हैं कि गेहूं और चावल की फसल बर्बाद होने पर सरकार मुआवजा देती है तो फिर आम के नुकसान होने पर भी मुआवजा देना चाहिए।

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