Saturday, January 18, 2025
spot_img
spot_img
spot_imgspot_imgspot_imgspot_img
Homeफीचर्डचीनी आक्रामकता पर प्रहार

चीनी आक्रामकता पर प्रहार

लद्दाख सीमा पर परस्पर मुकाबले के लिए नौ माह से तैयार खड़ी भारत एवं चीन की सेनाओं के पीछे हटने का सिलसिला शुभ संकेत है। भारतीय नेतृत्व की आक्रामकता और आत्मनिर्भरता की ठोस व निर्णायक राणनीति के चलते यह संभव हुआ है। यही नहीं चीनी आधिकारियों ने पहले यह घोषणा की, कि चीन अपनी सेना पीछे हटाने को राजी हो गया है। इसके अगले दिन रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने यही सूचना संसद में दोहराते हुए कहा कि ‘दोनों देशों की सेनाओं के पीछे हटने के समझौते के क्रम में भारत को एक इंच भी जमीन गंवानी नहीं पड़ी है।

इस समझौते में तीन शर्तें तय हुई हैं। पहली, दोनों देशों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) का सम्मान किया जाएगा। दूसरा, कोई भी देश एलएसी की स्थिति को बदलने की एकतरफा कोशिश नहीं करेगा। तीसरा, दोनों देशों को संधि की सभी शर्तों को मानना बाध्यकारी होगा।’ यह समझौता बताता है कि आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह के कड़े तेवरों के चलते चीन की अकड़ कमजोर पड़ती चली गई। अब दोनों देशों के बीच मई 2020 में शुरू हुआ गतिरोध खत्म होने का सिलसिला क्रमवार शुरू हो चुका है। बावजूद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समझौते की वास्तविकता को नजरअंदाज कर अनर्गल प्रलाप करने में लगे रहकर इस वैश्विक मुद्दे पर अपनी नादानी जताने से बाज नहीं आ रहे हैं।

भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय ने पैंगोंग झील क्षेत्र से सैनिकों की वापसी को लेकर साफ किया है कि भारतीय भू-भाग फिंगर-4 तक ही नहीं, बल्कि भारत के मानचित्र के अनुसार यह भू-भाग फिंगर-8 तक है। पूर्वी लद्दाख में राष्ट्रीय हितों और भूमि की रक्षा इसलिए संभव हो पाई क्योंकि सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी थी। सेना ने बीस जवान राष्ट्र की बलिवेदी पर न्यौछावर करके अपनी क्षमता, प्रतिबद्धता और भरोसा जताया है। शायद इसीलिए रक्षा मंत्रालय को कहना पड़ा है कि सैन्य बलों के बलिदान से हासिल हुई इस उपलब्धि पर जो लोग सवाल खड़े कर रहे हैं, वे इन सैनिकों का उपहास उड़ा रहे हैं।

दरअसल भारत के मानचित्र में 43000 वर्ग किमी का वह भू-भाग भी शामिल है, जो 1962 से चीन के अवैध कब्जे में है। इसीलिए राजनाथ सिंह को संसद में कहना पड़ा कि भारतीय नजरिए से एलएसी फिंगर आठ तक है, जिसमें चीन के कब्जे वाला इलाका भी शामिल है। पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे के दोनों तरफ स्थाई पोस्ट स्थापित हैं। भारत की तरफ फिंगर-3 के करीब धानसिंह थापा पोस्ट है और चीन की तरफ फिंगर-8 के निकट पूर्व दिशा में भी स्थाई पोस्ट स्थापित है। समझौते के तहत दोनों पक्ष अग्रिम मोर्चों पर सेनाओं की जो तैनाती मई-2020 में हुई थी, उससे पीछे हटेंगे, लेकिन स्थाई पोस्टों पर तैनाती बरकरार रहेगी।

याद रहे भारत और चीन के बीच संबंध तब गंभीर संकट में पड़ गए थे, जब गलवन घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच बिना हथियारों के खूनी संघर्ष छिड़ गया था। नतीजतन भारत के बीस वीर सैनिक शहीद हो गए थे। इस संघर्ष में चीन के सैनिक भी मारे गए थे, लेकिन उसने इस सच्चाई को कभी सार्वजनिक रूप से मंजूर नहीं किया। हालांकि रूसी एजेंसी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार चीन के 45 सैनिक इस झड़प में हताहत हुए थे। बाद में इन सैनिकों की अंतिम क्रिया के विडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे।

वैश्विक समुदाय यह सोचकर विवश है कि आखिरकार शक्तिशाली व अड़ियल चीन, भारत के आगे नतमस्तक क्यों हुआ? इसका सीधा-सा उत्तर है भारत की चीन के विरुद्ध चौतरफा कूटनीतिक रणनीति व सत्ताधारी नेतृत्व की दृढ़ इच्छाशक्ति। नतीजतन भारत ने सैन्य मुकाबले में तो चीन को पछाड़ा ही आर्थिक मोर्चे पर भी पटकनी दे डाली। चीन से कई उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया और उसके सैकड़ों एप एवं संचार उपकरण प्रतिबंधित कर दिए। वैश्विक स्तर पर भारत ने क्वॉड यानी क्वाड्रीलैटरल सिक्टोरिटी डायलॉग में नए प्राण फूंके। इसमें भारत, जापान, आस्ट्रेलिया व अमेरिका शामिल हैं।

इसका उद्देश्य एशिया प्रशांत क्षेत्र में शांति की स्थापना और शक्ति का संतुलन बनाए रखना है। विदेश मंत्री जयशंकर ने इसकी कमान संभाली और जापान में 6 अक्टूबर 2020 को मंत्रीस्तरीय बैठक कर चीन की दादागिरी के विरुद्ध व्यूहरचना की। इस बैठक के पहले ही अमेरिका ने यह कहकर चीन की हवा खराब कर दी कि चीन अपनी विस्तारवादी नीति से बाज आए, अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। क्वॉड समुद्री लुटेरों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही को अंजाम दे चुका है। इसमें भारत भी शामिल था।

अमेरिका के नए राष्ट्रपति बाइडेन ने भी चीन की बढ़ती आक्रामकता को आड़े हाथ लिया है। हॉगकांग में चीन के अड़ियल रवैये और चीन के शिनजियांग प्रांत में उईगर मुस्लिमों को प्रताड़ित किए जाने का मुद्दा उठाया। व्हाइट हाउस से जारी जानकारी में बताया गया है कि बाइडेन ने जिनपिंग से कहा है कि मानवाधिकारों का हनन अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा। हिंद महासागर में मौजूद देशों के हितों की भी अनदेखी नहीं कि जाएगी।

चीन के इतने दलन के बावजूद राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करने में लगे हैं। उन्हें अत्यंत घटिया भाषा के इस्तेमाल में भी कोई शर्म-संकोच नहीं है। राहुल ने कहा है कि सीमा पर अप्रैल 2020 की स्थिति बहाल नहीं हुई है। मोदी ने चीन के समक्ष अपना मत्था टेक दिया है। फिंगर-3 से चार तक की जमीन हिंदुस्तान की है, वह अब चीन को सौंप दी है। उनका यह बयान सरकार की हंसी उड़ाने वाला तो है ही, सेना का मनोबल तोड़ने वाला भी है। क्योंकि अंततः सीमा पर सेना ने ही दम दिखाकर चीन को पीछे हटने के लिए विवश किया। इसीलिए केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा भी है कि राहुल सुपारी लेकर देश को बदनाम करने के षड्यंत्र व सुरक्षाबलों के मनोबल को तोड़ने में लगे हैं। इसका कोई इलाज नहीं है। जबकि राहुल को याद करना चाहिए कि 1962 में चीन ने भारत की जो जमीन हड़पी थी, उस समय केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार थी।

यह भी पढ़ेंः-पंचायतों में आरक्षण से और मजबूत होगा उत्तर प्रदेश

लोकतंत्र में सवाल उठाना बुरी बात नहीं है, लेकिन सवाल बेतुके और तथ्यहीन नहीं होने चाहिए। पिछले 70 साल में यह पहला मौका है जब चीन की हेकड़ी ढीली पड़ी है और भारतीय सेना ने उसे मुंहतोड़ जबाव दिया है। हालांकि चीन की धोखेबाजी की जो प्रवृत्ति रही है, उसके चलते वह विश्वास के लायक कतई नहीं है। अतएव भारत को एलएसी पर चौकन्ना रहने की जरूरत तो है ही, आत्मनिर्भर अभियान को गतिशील बनाए रखने और आर्थिक रूप से समर्थ बने रहने की जरूरत भी है। तभी चीन जैसे विस्तारवादी देश से मुकाबला करना संभव होगा।

प्रमोद भार्गव

सम्बंधित खबरें
- Advertisment -spot_imgspot_img

सम्बंधित खबरें