Thursday, January 30, 2025
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Homeछत्तीसगढ़अरविंद पनगढ़िया बोले- जरूरत के हिसाब से बनानी होगी कार्ययोजना

अरविंद पनगढ़िया बोले- जरूरत के हिसाब से बनानी होगी कार्ययोजना

रायपुरः 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष Dr. Arvind Panagariya और आयोग के सदस्यों ने पंचायत प्रतिनिधियों से चर्चा कर पंचायतों के त्वरित और समग्र विकास का खाका खींचा। बस्तर संभाग के मुख्यालय जगदलपुर कलेक्ट्रेट के प्रेरणा कक्ष में आयोजित बैठक में कई महत्वपूर्ण सुझावों पर चर्चा हुई।

समस्याओं के समाधान पर चर्चा

पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा दिए गए परामर्श पर वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ. पनगढ़िया ने कहा कि 16वें वित्त आयोग का कार्यकाल 2026-27 से 2030-31 तक प्रभावी रहेगा। इस अवधि को ध्यान में रखते हुए हमें स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप विकास की आगामी कार्ययोजना बनानी होगी। उन्होंने बस्तर के पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा दिए गए सुझावों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यहां दिए गए सभी सुझाव वित्त आयोग के कार्यक्षेत्र से संबंधित हैं और उन पर निश्चित रूप से कार्यवाही की जाएगी। पंचायत प्रतिनिधियों ने जनसरोकार से जुड़े ऐसे मुद्दों पर बात की, जिनका यथासंभव समाधान करने का प्रयास किया जाएगा।

बस्तर जिला पंचायत अध्यक्ष वेदवती कश्यप ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि 15वें वित्त आयोग के अंतर्गत 90 प्रतिशत जनसंख्या और 10 प्रतिशत क्षेत्रफल के आधार पर आवंटन जारी किया जाता है। बस्तर जिले के अंतर्गत ग्राम पंचायतों में आश्रित गांव और टोले दूर-दूर तक फैले हुए हैं, इसलिए क्षेत्रफल को ध्यान में रखते हुए 16वें वित्त आयोग के अंतर्गत 70 प्रतिशत जनसंख्या और 30 प्रतिशत क्षेत्रफल के आधार पर आवंटन प्रदान किया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारा बस्तर संस्कृति से भरा हुआ है, चाहे वह देवगुड़ी हो, मेला हो, मंडी हो, बस्तर में इसकी बड़ी पहचान है। इसे ध्यान में रखते हुए देवगुड़ी, मेला, मंडी और खेल क्षेत्र के लिए भी आवंटन का प्रावधान किया जाना चाहिए। बस्तर जिला पंचायत उपाध्यक्ष मनीराम कश्यप ने कहा कि बस्तर में पेसा एक्ट लागू होने के साथ ही यह नक्सल प्रभावित क्षेत्र है।

पंचायत प्रतिनिधियों ने दिए कई सुझाव

उन्होंने 16वें वित्त आयोग के अंतर्गत नक्सल और पेसा जिलों को जनसंख्या और क्षेत्रफल के साथ अतिरिक्त आवंटन प्रदान करने की बात कही। साथ ही बस्तर की अधिकांश आबादी इन्हीं वन क्षेत्रों में निवास करती है तथा अधिकांश आदिवासियों की आय का मुख्य स्त्रोत लघु वनोपज है। लघु वनोपज सामग्री को मूल्य संवर्धन कर सह-उत्पाद की श्रेणी में लाने के लिए अतिरिक्त आवंटन की व्यवस्था की जानी चाहिए।

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इसके साथ ही अन्य पंचायत प्रतिनिधियों ने बस्तर जिले में पथरीली एवं पहाड़ी भूमि को देखते हुए कृषि एवं सिंचाई क्षेत्र में कार्य करने, पेयजल एवं स्वच्छता क्षेत्र की बाध्यता को समाप्त कर अन्य 09 थीमों में से क्षेत्र चुनने की स्वतंत्रता प्रदान करने, ऑनलाइन भुगतान प्रणाली का सरलीकरण करने, सामूहिक फेंसिंग एवं नलकूप स्थापना के लिए कृषकों को सहायता प्रदान करने, प्राकृतिक आपदा की स्थिति में तत्काल सहायता प्रदान करने, ग्राम पंचायतों में अधोसंरचना विकास के लिए आश्रित ग्रामों के आधार पर आवंटन प्रदान करने के संबंध में सुझाव दिए। देवगुड़ी, मातागुड़ी, मृतकों के स्मारक, क्षेत्र की आदिवासी संस्कृति के आस्था के केन्द्रों के संरक्षण, पर्यटन स्थलों में सुविधाओं के विकास के संबंध में भी पंचायत प्रतिनिधियों द्वारा सुझाव दिए गए।

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