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144 साल बाद सेना को मिला ‘बंगला’

 

आईपीके, लखनऊः छावनी में रक्षा मंत्रालय की 4.88 एकड़ जमीन पर बने बंगले पर अब पूरी तरह से सेना का अधिकार होगा। बताया जा रहा है कि करीब 144 वर्ष बाद इस पर सेना की जीत हुई है। ब्रिटिश प्रबंधन वाले बैंक के पास यह बंगला गिरवी के रूप में रखा गया था। तमाम तरह की कानूनी अड़चनों का सामना करने में सेना का भी लंबा समय लग गया। गिरवी के बाद मुंशी प्राग नारायण ने इसकी सेल डीड कराई थी। रक्षा मंत्रालय पिछले 52 वर्ष से इस बंगले के लिए बराबर लड़ता आ रहा था, लेकिन खुशी इस बात की है कि सेना का अब इस पर अधिकार हो गया है।

यह बंगला विवादों में इस तरह से पिसा कि इसको पुनर्निर्माण की जरूरत तो सालों पहले से थी। मध्य कमान मुख्यालय के ठीक बगल में यह स्थित है, लेकिन अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। अब यह पूरी तरह से खंडहर बन चुका है। इसकी एक श्रेणी भी निर्धारित है। इसे ओल्ड ग्रांड श्रेणी में रखा गया है। रक्षा मंत्रालय की बी-3 श्रेणी की भूमि वाला यह बंगला नंबर चार नेहरू रोड मध्य कमान मुख्यालय के पास है। 12 सितंबर 1836 में बने जीजीओ एक्ट की धारा 179 के तहत कोयलास चंद्र मुखर्जी को यह बंगला 1876 में दिया गया था। उस दौरान जीजीओ एक्ट की उपधारा 6 (1) में कुछ अहम निर्णय भी लिए गए थे। फैसले में लिखा गया था कि सेना को जरूरत पड़ने पर वह एक माह की नोटिस जारी करेगा और बंगले की जमीन को वापस ले सकती है।

बैंक ने कब्जा जमाया और फिर बेंच दिया

द देलही एंड लंदन बैंक लि. के पास 19 अगस्त 1876 और 9 जून 1877 को बंधक रखकर कोयलास चंद्र मुखर्जी ने लोन लिया था। लोन न लौटाए जाने पर बैंक ने 1877 में ही रिकवरी का नोटिस जारी किया थी। इसके साथ ही कोर्ट में मानहानि का दावा पेश किया गया था। उस दौरान कोर्ट ने बैंक के पक्ष में निर्णय सुना दिया, साथ ही बंगले की नीलामी का नोटिस भी जारी किया गया। इस बंगले को 10 जनवरी 1878 को इसी बैंक ने खरीद लिया था। बैंक ने करीब 19 वर्ष बाद 15 मार्च 1897 को यह बंगला मुंशी प्राग नारायण भार्गव को बंेच दिया।

बंगले के लिए लड़ी गई लंबी लड़ाई

1897 के बाद 71 वर्ष तक इस बंगले को लेकर गहमा-गहमी चलती रही। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लखनऊ में सेना की गतिविधियां बढ़ गई थीं। एक मई 1963 को लखनऊ छावनी में मध्य कमान मुख्यालय की स्थापना की गई। इससे पहले इसी जगह पर पूर्वी कमान था। मध्य कमान की स्थापना के बाद यहां ज्यादा जमीन की आवश्यकता पड़ने लगी तो सेना ने पहल भी शुरू कर दी।

इस तरह से बढ़ी फाइल - दो नवंबर 1968 को रक्षा मंत्रालय ने बंगले को अपने अधिकार में लेने के लिए एक नोटिस दी। - 1969 में मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। - 1970 को कोर्ट ने स्थगनादेश दिया। - 1968 की नोटिस को आधार बनाया। - 2020 को बंगला हस्तांतरण का नोटिस दिया। - 7 दिसंबर 2020 को स्वामित्व सेना को सौंपा।

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1844 में बना था बैंक 1844 में द देलही एंड लंदन बैंक लि. की स्थापना हुई थी। तब इस बैंक की शाखाएं भारत में लखनऊ के अलावा कलकत्ता, दिल्ली, मसूरी और शिमला में थी। 1862 और 1867 में इसका पंजीकरण कंपनी एक्ट लंदन के तहत था।