Akshaya Navami : काशी पुराधिपति की नगरी में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी यानि अक्षय नवमी पर रविवार को श्रद्धालुओं ने आंवला वृक्ष का विधिवत पूजन किया। इसके बाद आंवला के वृक्ष के नीचे श्रद्धालुओं ने पूरे श्रद्धाभाव से अहरा सुलगाया। अहरा के जलने पर खीर, बाटी, दाल, चोखा बनाकर पहले श्री हरि भगवान विष्णु को भोग लगाया इसके बाद सामूहिक रुप से प्रसाद का आनन्द उठाया गया। अक्षय नवमी तिथि पर अहरा दगाने के लिए लोग पूर्वाह्न में ही बाग, बगीचे व मंदिर परिसरों में आंवले के वृक्ष की तलाश कर परिवार के साथ पहुंच गए। इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर परिवार सहित प्रसाद के रूप में ग्रहण किया।
कार्तिक मास के के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है अक्षय नवमी
गौरतलब हो कि, दिव्य कार्तिक मास श्रीहरि की आराधना को समर्पित माना जाता है। इस माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी कहा जाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन कर खान-पान का विधान है। पर्व पर गंगा स्नान और अन्नदान के साथ आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन करने से अनंत फल प्राप्त होता है। माना जाता है कि, इस दिन दिया दान पूर्ण अक्षय हो जाता है। आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को प्रिय है। मान्यता है कि, इस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। आयुर्वेद के अनुसार भी आंवला सेहत के लिए वरदान है। इसके नियमित सेवन से आयु बढ़ती है साथ ही बीमारियों से भी रक्षा होती है।
आंवले के पेड़ का किया गया पूजन
बता दें, अक्षय नवमी पर असि स्थित गोयनका संस्कृत विद्यालय परिसर में जागृति फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं की अगुआई में आंवले के वृक्ष का पूजन किया गया। इसके बाद जानकारी देते हुए डॉक्टर जयप्रकाश मिश्रा ने बताया कि, आंवला को देव वृक्ष माना गया है और ये अमृत फल भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। कहा जाता है कि, आज के दिन इस वृक्ष की पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
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Akshaya Navami : महासचिव रामयश मिश्र ने दी जानकारी
बता दें, इस दौरान फाउंडेशन के महासचिव रामयश मिश्र ने बताया कि, साल 2001 में ये आंवले का पौधा लगाया गया था। इस पौधे ने आज 23 साल बाद पूरी तरह से पेड़ का स्वरूप धारण कर लिया है। दो-तीन साल से तो यह फल भी दे रहा है। ये देखकर बहुत ही खुशी मिलती है। कम से कम एक ऐसा पौधा लगाया गया जो आज पूरी तरह से पेड़ का स्वरूप धारण कर लिया है।