Sunday, January 26, 2025
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चंबल नदी के किनारे दिखा अदभुत नजारा, अठखेलियां करते नजर आए घड़ियाल-मगरमच्छ के बच्चे

इटावाः जनपद के चंबल नदी के किनारे इन दिनों अदभुत नजारा देखने को मिल रहा है। मगरमच्छ और घड़ियाल के बच्चे अठखेलियां करते नजर आ रहे हैं। दरअसल नदी में अभी नेस्टिंग का मौसम चल रहा है इस दौरान अंडो से मगरमच्छ के बच्चे बाहर आ रहे हैं। यहां पर रेत पर घड़ियाल और मगरमच्छ के सैकड़ों बच्चे अंडों से निकलकर अठखेलियां कर रहे हैं। नदी किनारे सुरक्षित रखे गए ये बच्चे जून के पहले हफ्ते में नेस्टिंग के समय निकलते हैं।
डीएफओ बताते है कि नेस्टिंग के समय नदी के किनारे जाना मनुष्यों के लिए खतरनाक हो जाता है क्योंकि अंडों की देखरेख के लिए नर मगरमच्छ और घड़ियाल हर समय पहरा देते रहते हैं। उन्होंने बताया कि अभी तक एक हजार घड़ियाल और दो सौ मगरमच्छ के बच्चे अंडों से निकल चुके हैं। चंबल सेंचुरी इलाके में इटावा की चंबल नदी के किनारे इन दिनों घड़ियाल और मगरमच्छों के अंडों से बच्चों का निकलना शुरू हो गया है। बच्चों की देखरेख में लगे नर मगरमच्छ और घड़ियाल अंडों से निकले हुए बच्चों को अपनी पीठ पर बिठाकर नदी किनारे सैर करवा रहे हैं और जीवन जीने के गुर सिखा रहे हैं। इस समय सुबह और शाम के वक्त नदी किनारे कई किलोमीटर तक अंडों से निकले बच्चे रेत में अठखेलियां करते हुए देखे जा सकते हैं।

एक हजार से अधिक मगरमच्छ और घड़ियाल निकलने की संभावना
नेस्टिंग को लेकर सेंचुरी के रेंजर हरिकिशोर शुक्ला ने बताया कि अभी तक लगभग दस नेस्ट से घड़ियाल और मगर के बच्चे निकल आए हैं। जनपद में खेड़ा अजबसिंह में 37 नेस्ट और कसौआ गांव में पांच नेस्ट पाए गए हैं जिनमें से लगभग बारह सौ घड़ियाल और मगरमच्छ के बच्चे निकलने की उम्मीद है। रेंजर हरकिशोर शुक्ला ने बताया कि अप्रैल माह से जून तक नेस्टिंग का समय होता है। इन तीन महीनो के दौरान चंबल नदी के किनारे जाना बहुत खतरनाक होता है क्योंकि अंडों की देखरेख के लिए नर मगरमच्छ और घड़ियाल नदी किनारे रेत में छिपाकर रखे गए अंडों की देखरेख के लिए चौबीस घंटे रखवाली करते हैं। इस साल पिछले साल की अपेक्षा इटावा में कम बच्चे होने की उम्मीद है क्योंकि अंडे सुरक्षित रखने के लिए चंबल नदी में रेत का कटाव इटावा की तरफ हुआ है।

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संरक्षण से हुआ संख्या में इजाफा
वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञ राजीव चौहान ने बताया कि वर्ष 1975 में चंबल नदी को सेंचुरी घोषित किया गया था। राजस्थान के पाली से इटावा के पचनद तक चंबल नदी में विलुप्त होते घड़ियालों को सुरक्षित रखने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए चंबल नदी को सेंचुरी घोषित किया गया था लेकिन वर्ष 2007 और 2008 में जिस तरह घड़ियाल की संख्या बहुत तेजी से घटने लगी तब राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने इनके संरक्षण के लिए प्रयास किए है। अब एक बार फिर से चंबल नदी में तेजी से घड़ियाल और मगरमच्छों की संख्या तेजी से बढ़ने लगी है। उन्होंने बताया कि अप्रैल में मादा घड़ियाल और मगरमच्छ अंडे देती है जिनके से साठ दिन के बाद बच्चे अंडे में से बाहर निकलते हैं।

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