Monday, December 16, 2024
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स्वर्ग की इच्छा रखते हैं तो सदैव जननी और जन्मभूमि की करें सेवा

नई दिल्लीः जीवन में विचारों की काफी अहम भूमिका होती है। विचार किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व की असल पहचान कराते हैं। ऐसे में हर किसी को अपने विचारों की शुद्धता और पवित्रता बनाए रखने के लिए नित नए आयामों से सीख लेते रहना चाहिए। जीवन में जब कभी संकट आता है, तो व्यक्ति के विचार ही उसे सही और गलत की पहचान कराते हैं। पावन ग्रंथ रामायण की रचना करने वाले आदिकवि महर्षि वाल्मीकि पूरे जगत में विख्यात हैं। रामायण की रचना कर उन्होंने हमें प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं के महत्व को भली-भांति समझाया। उनके अनमोल विचार आज के इस कलिकाल में माया के फेर में फंसे मनुष्यों को दीपक की तरह रोशनी दिखा रहा है। उन्होंने कई ऐसे विचार दिए हैं, जिसे अपने जीवन में उतार कर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है।

महर्षि वाल्मीकि ने कहा था कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं। नौ माह तक अपने कोख में रखकर असहनीय पीड़ा सहने के बाद संतान को जन्म देने वाली माता का स्थान स्वर्ग से भी बढ़कर है। यदि आप मृत्यु के पश्चात स्वर्ग की कामना कर रहे हैं, तो मां के चरणों में यदि आप पहुंच जाएं तो वहीं आपको स्वर्ग के सुख की अनुभूति होगी। इसी तरह जिस स्थान पर आपका जन्म होता है, वह स्थान भी स्वर्ग से बढ़कर होता है। आप बड़े होने के बाद भले ही कर्मस्थान को अपनी सुविधा के अनुसार चुन सकते हैं, लेकिन कभी भी अपनी जन्मभूमि का त्याग नहीं करना चाहिए। जो सुख आपको अपनी जन्मभूमि की गोद में आकर मिलेगा, वह अन्यत्र कहीं नही मिलेगा।

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महर्षि ने कहा है कि किसी के प्रति दूषित भावना रखने से अपना मन खुद मैला हो जाता है। यदि आप किसी से ईर्ष्या करते हैं या फिर आपको उसका व्यवहार पसंद नहीं है, तो आप उससे दूर हो जाइए। उसके लिए आप कभी अपने मन में गलत विचार को मत पनपने दें, क्योंकि यदि आप ऐसा करते हैं तो आपका मन भी मैला हो जाएगा। इसका परिणाम यह होगा कि आप भी दूसरों के साथ गलत व्यवहार करने लग जाएंगे और अंततः आपके सगे-संबंधी व शुभचिंतक भी आपसे दूरी बना लेंगे। महर्षि वाल्मीकि ने यह भी कहा है कि जीवन में आपको सदैव सुख मिले, यह किसी भी तरह से संभव नही है। इस कलिकाल में सभी लोग सुख की चाह में ही भटकते रहते हैं और वह सोचते हैं कि हमारा पूरा जीवन सुखमय ही हो, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। सुख और दुख जीवनरूपी रथ के दो पहिए हैं। कभी आपके जीवन में सुख की मीठी सुगंध आएगी तो कभी दुख रूपी दुर्गंध। ऐसे में आपको शांतचित्त रहकर दोनों दशाओं के लिए खुद को अनुकूल बनाना होगा।

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