अलवर में जांगिड़ परिवार की चौथी पीढ़ी कर रही है भगवान जगन्नाथ के रथ की मरम्मत व रंगाई का कार्य

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अलवरः शहर के सुभाष चौक स्थित भगवान जगन्नाथ जी मंदिर से रथयात्रा 8 जुलाई को निकाली जाएगी। इसके लिए मेला कमेटी की ओर से सभी तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। भगवान जगन्नाथ जिस रथ में सवार होकर रूपबास पहुंचेंगे, उस रथ को निकाल लिया गया है। रथ को लेकर खास बात यह है कि राठनगर में रहे वाले जांगिड़ परिवार की चौथी पीढ़ी रथ को संवारने में लगी है। कारीगर प्रदीप जांगिड़ ने बताया कि उनके बाबा जसराम महाराजा प्रताप सिंह के समय मे रथ की साफ सफाई से लेकर मरम्मत का कार्य किया करते थे। उनके बाद इस कार्य को उनके ताऊ भगवान द्वारा किया गया। फिर उनके बड़े भाई दिनेश जांगिड़ और अब उनके पुत्र जितेंद्र द्वारा रथ की मरम्मत की जा रही है। इस कार्य को करने के लिए अपने साथ लेबर का सहयोग भी लेते हैं।

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रथ निकालने से संचालन तक की होती है पूरी जिम्मेदारी

प्रदीप बताते हैं “”भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा से पहले वह महल चौक से दो छोटे व जगन्नाथ जी का रथ और मां जानकी जी का रथ चूड़ी मार्किट से रथखाना से निकालकर लाते हैं। इसके बाद रथ की मरम्मत करते हैं। रथयात्रा के दौरान संचालन भी उनके द्वारा ही किया जाता है। वह लोग अपनी टीम के साथ रथ के साथ चलते हैं ताकि किसी भी तरह की असुविधा होने पर तुरन्त उसे दुरुस्त किया जा सके। भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा में शामिल होने वाले रथों की हर साल मरम्मत होती है। कारीगरों ने बताया कि रथ लकड़ी का बना हुआ है। रथ के पहियों की ग्रीसिंग, रंग रोगन के साथ ही टूटफूट सही की जाती है। फिर इसके बाद नया कपड़ा चढ़ाकर विशेष सजावट की जाती है।

ये है जगन्नाथ मेले का पूरा कार्यक्रम

7 जुलाई को सीता राम जी की सवारी शाम 6 बजे पुराना कटला स्थित जगन्नाथ मंदिर से रूपवास के लिए रवाना होगी। 8 जुलाई को शाम 6 बजे जगन्नाथ जी की सवारी रूपबास के लिए रवाना होगी। 9 जुलाई को रूपबास में मेला भरेगा। 10 जुलाई को जानकी माता की सवारी रूपबास पहुंचेगी और रात को वरमाला महोत्सव होगा। 11 जुलाई को भी मेला भरेगा। 12 जुलाई को जगन्नाथ व जानकी मैया की सवारी वापस रूपबास से पुराना कटला जगन्नाथ मंदिर के लिए रवाना होगी । 13 जुलाई को ब्रह्मभोज का आयोजन होगा।

राजघराने ने मंदिर को भेंट किया था इंद्रविमान

मंदिर के महंत ने बताया कि रथयात्रा में जो इंद्रविमान काम मे लिया जाता है। वह अलवर के तत्कालीन राजघराने द्वारा बनवाकर मंदिर को भेंट किया गया था। यह 15 फीट चौड़ा, 25 फ़ीट लंबा, दो मंजिल का बना हुआ है। यहां एक खास बात यह भी है कि रथयात्रा के दौरान रास्ते में जितने भी मंदिर पड़ते हैं सभी पर रथ को रोककर आरती की जाती है। पहले रथ को 2 हाथियों द्वारा खींचा जाता था लेकिन अब ट्रैक्टर के द्वारा खींचा जाता है।

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