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UP में हुक्का बार खोलने का रास्ता साफ, हाईकोर्ट ने दिया निर्देश, जानें कब मिलेगा लाइसेंस

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प्रयागराजः यूपी में हुक्का बार का कारोबार करने वालों के लिए अच्छी खबर है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से हुक्का बार संचालित किए जाने की नीति तैयार कर आवेदन करने वालों को लाइसेंस जारी करने का निर्देश दिया है। इतना ही नहीं हुक्का बार के लाइसेंस जारी करने में आलाधिकारी मनमानी ना करे, इसके लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक माह का समय भी निर्धारित कर दिया है। यानी जो भी आवेदन किए जाएंगे, उनका निपटारा एक महीने में ही करना होगा। इसके साथ ही कोविड काल के दौरान हुक्का बार के संचालन पर लगाई गई पाबंदी भी अब हटा दी गई है।

बता दें कि कोरोना काल में प्रदेश भर संचालित होने वाले सभी हुक्का बारों को बंद कर दिया गया था। यूपी में हुक्का बार चलाने के लिए अभी तक कोई गाइडलाइन नहीं थी और जो भी हुक्का बार चल रहे थे, अवैध थे। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल की पीठ ने कहा, कोविड-19 महामारी प्रतिबंधों में ढील दी गई है और इसलिए कई दूसरे कारोबार को फिर से शुरु करने की आदेश दिया जा सकता है। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में समान व्यवसायों को चलाने की अनुमति दिए जाने के तथ्यों और परिस्थितियों पर भरोसा किया है।

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प्रदेश सरकार का नेतृत्व कर रहे वकील मनीष गोयल ने कहा कि हुक्का बार संचालकों ने अभी तक नए लाइसेंस के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत आवेदन नहीं किया है। यदि वे आवेदन करते हैं, तो कानून के अनुसार शीघ्रता से विचार किया जाएगा। इलाहाबाद कोर्ट ने कहा, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हुक्का बार चलाने का कारोबार पूर्वोक्त अधिनियम के तहत निर्विवाद रूप से विनियमित है, सम्बंधित हुक्का बार चलाने के लिए लाइसेंस देने, नवीनीकरण के लिए वैधानिक प्राधिकरण को आवेदन करने के लिए खुला छोड़ दिया गया है।

कोरोना महामारी के दौरान लगाया गया था प्रतिबंध

हुक्का बार मालिकों की ओर से पेश वकील ने आग्रह किया कि कोविड-19 महामारी के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों में काफी हद तक ढील दी गई है और इसलिए, उन्हें अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने की अनुमति दी जा सकती है। लखनऊ विश्वविद्यालय में एलएलबी के छात्र हरि गोविंद दुबे ने 2020 में राज्य में हुक्का बार के माध्यम से कोरोना वायरस के प्रसार के मुद्दे पर उच्च न्यायालय में एक पत्र याचिका दायर की थी। अदालत ने उसी का संज्ञान लिया और पत्र को जनहित याचिका माना।

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