Badrinath Dham, देहरादूनः रविवार को ब्रह्ममुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चार और श्री बद्री विशाल लाल के जयकारे के साथ बदरीनाथ धाम (Badrinath Dham) के कपाट खुलते ही अखंड ज्योति के प्रथम दर्शन हुए। यह छह माह से जल रही है। इसके बाद बद्रीनाथ के ऊपर चढ़ाया गया घी का कंबल हटा दिया गया। जिसे छह माह पूर्व कपाट बंद होने के समय भगवान को अर्पित किया जाता है। यह कंबल प्रसाद के रूप में बांटा जाएगा। बद्रीनाथ धाम में पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर की गई। इससे पहले जब केदारनाथ धाम के कपाट खुले थे तो पहली पूजा मोदी के नाम से की गई थी। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी का देवभूमि उत्तराखंड से खास लगाव है। इस तरह चारधाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो गई है।
सुबह हुए निर्वाण दर्शन
चारधाम तीर्थ पुरोहित पंचायत के महासचिव डॉ. ब्रजेश सती ने बताया कि सुबह छह बजे से आठ बजे तक भगवान के बिना श्रृंगार के दर्शन होते हैं, जिसे निर्वाण दर्शन कहा जाता है। इसके बाद आठ बजे पहला जलाभिषेक हुआ और पहली पूजा प्रधानमंत्री के नाम से की गई। नौ बजे बालभोग लगाया गया। दोपहर 12 बजे भरपेट भोजन कराया गया। यह प्रसाद ब्रह्मकपाल भेजा जाएगा। भोग पहुंचने के बाद ही वहां पहला पिंडदान होगा।
फूलों की खुशबू से महक उठा बद्रीनाथ धाम-
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) को फूलों से दिव्य सजाया गया है, जो अलौकिक छटा बिखेर रहा है। फूलों की खुशबू से लोग मंत्रमुग्ध हो रहे हैं। पहले दिन 20 हजार से ज्यादा लोग दर्शन के लिए पहुंचे। 11 मई की रात से हल्की बारिश होने लगी। इससे पहले मौसम विभाग ने 11 से 13 मई तक बारिश और बर्फबारी का अलर्ट जारी किया था। 11 मई की शाम तक कुल सात लाख 37 हजार 885 लोगों ने बद्रीनाथ धाम दर्शन के लिए पंजीकरण कराया है।
तीन चाबियों से खोला गया दरवाजे का ताला-
बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) में मंदिर के दरवाजे का ताला तीन चाबियों से खोला गया। इनमें से एक चाबी टेहरी राजदरबार के पास होती है, दूसरी चाबी बद्री-केदार मंदिर समिति के पास होती है और तीसरी चाबी बद्रीनाथ धाम के रावल और पुजारियों के पास होती है, जिन्हें हक-हकूकधारी कहा जाता है।
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Badrinath Dham: बद्रीनाथ मंदिर का धार्मिक महत्व एवं इतिहास-
यह उत्तराखंड के चमोली जिले में है। यह मंदिर समुद्र तल से 3,133 मीटर की ऊंचाई पर बना है। हर साल करीब 10 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचते हैं। मंदिर में बद्रीनारायण के रूप में भगवान विष्णु की एक मीटर की मूर्ति स्थापित है। इसे श्रीहरि की आठ स्वयंभू छवियों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ध्यान करने के लिए शांतिपूर्ण और प्रदूषण मुक्त स्थान की तलाश में यहां पहुंचे थे। इतिहास के अनुसार बद्रीनाथ धाम की स्थापना 9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की मूर्ति को अलकनंदा नदी से निकाला था। इस मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण और विष्णु पुराण में भी मिलता है। वैदिक काल (1750-500 ईसा पूर्व) में भी मंदिर के अस्तित्व का उल्लेख पुराणों में मिलता है। भगवान बद्रीनाथ का तिल के तेल से अभिषेक किया जाता है। इसके लिए तेल टेहरी राजघराने से आता है। बद्रीनाथ टेहरी राजपरिवार के आराध्य देव हैं। मंदिर की एक चाबी राजपरिवार के पास भी है। बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज हैं, इन्हें रावल कहा जाता है। केरल स्थित राघवपुरम गांव में नंबूदिरी संप्रदाय के लोग रहते हैं। इसी गांव से रावल की नियुक्ति की जाती है। इसके लिए इंटरव्यू यानी शास्त्रार्थ कराया जाती है। रावल आजीवन अविवाहित रहते हैं।
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