लखनऊ: ऐशबाग की रामलीला न सिर्फ लखनऊ बल्कि पूरे राज्य में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास ने सर्वप्रथम यहां रामलीला की शुरुआत की थी। वहीं, नवाब आसफुद्दौला भी रामलीला (Aishbagh Ramleela) का मंचन देख मुग्ध हो गए थे।
ऐशबाग के श्री राम लीला समिति के महासचिव आदित्य द्विवेदी ने कहा, ”16वीं शताब्दी में जब गोस्वामी तुलसीदास चौमासा के लिए यहां आये तो वे इसी स्थान पर रुके थे जो सन्यासियों का अखाड़ा था। वह उन सन्यासियों को राम कथा सुनाते थे जिन्होंने रामलीला का मंचन करना शुरू किया था ताकि इसका मूल संदेश जनता तक आसान तरीके से पहुंचे। तुलसीदास के निर्देशन में ही रामलीला (Aishbagh Ramleela) का मंचन प्रारम्भ हुआ।”
नवाब आसफुद्दौला ने दी थी जमीन
1773 में नवाब आसफुद्दौला अपने मंत्रियों के साथ यहां रामलीला देखने आए थे। यह देखकर वे इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने न केवल अखाड़े को 6.5 एकड़ जमीन दान में दे दी, बल्कि रामलीला के लिए वार्षिक सहायता भी देनी शुरू कर दी। आज यह सहायता लखनऊ नगर निगम द्वारा दी जाती है। तब से अब तक 10 से अधिक परिवार अपनी कई पीढ़ियों से समिति की सेवा कर रहे हैं।
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आधुनिक हो गई है रामलीला
बदलते समय के साथ रामलीला (Aishbagh Ramleela) भी आधुनिक हो गई है। मंचन के लिए अब समिति कई नई तकनीकों का इस्तेमाल करती है। आधुनिक संगीत व ध्वनि प्रणाली से दृश्य अधिक प्रभावशाली बन जाते हैं। विशेषकर युद्ध के दृश्यों और आकाश में हनुमान के उड़ने के दृश्य देखकर दर्शक आश्चर्यचकित हो जाते हैं। यहां आने वाली भीड़ में 80 प्रतिशत युवा होते हैं और जिन दिनों रामलीला का मंचन होता है, उस दौरान मैदान खचाखच भरा रहता है।
शुल्क नहीं लेते कलाकार
आदित्य द्विवेदी ने कहा, आज रामलीला बहुत महंगी होती जा रही है लेकिन हम भाग्यशाली हैं कि कलाकार निःस्वार्थ व भक्तिभाव से रामलीला में अभिनय करते हैं। रामलीला में किरदार निभाने वाले कलाकार निजी जीवन में अलग-अलग पेशों से जुड़े हुए हैं। खास बात है कि ये कलाकार अपने कार्यालयों से छुट्टी लेकर रामलीला की तैयारियां करते हैं, साथ ही वे अभिनय के लिए कोई शुल्क भी नहीं लेते हैं।
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