लखनऊः गंभीर रूप से बीमार मरीजों की जान बचाने वाली चिकित्सा तकनीकों में तेजी से उभरती प्रणाली एक्स्ट्राकोर्पोरियल मेम्ब्रेन ऑक्सीजनेशन (ECMO) ने चिकित्सा जगत में क्रांति ला दी है। हाल ही में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में इस उन्नत तकनीक पर एक कार्यशाला और सतत चिकित्सा शिक्षा (CME) कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें देश के प्रमुख चिकित्सा विशेषज्ञों, चिकित्सकों और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों ने हिस्सा लिया।
ECMO के उपयोग के बारे में दी गई जानकारी
कार्यक्रम में इंटेंसिविस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट, एनेस्थेसियोलॉजिस्ट, परफ्यूजनिस्ट और स्नातकोत्तर चिकित्सा छात्रों सहित सौ से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्य पेशेवरों को ECMO के उपयोग से गंभीर परिस्थितियों में मरीजों का जीवन बचाने के लिए तैयार करना था। प्रमुख विशेषज्ञों में डॉ. अतिहर्ष अग्रवाल, डॉ. शिखा सचान, डॉ. अपूर्व गुप्ता और डॉ. राघवेन्द्र शामिल थे। एनेस्थेसियोलॉजी विभाग की प्रमुख प्रोफेसर मोनिका कोहली ने बताया कि जब दिल पूरी तरह से काम करना बंद कर देता है, तो ईसीएमओ दिल को पूरी तरह से सहारा प्रदान करता है। उन्होंने इस तकनीक को जीवन रक्षक परिस्थितियों में महत्वपूर्ण बताया। ईसीएमओ कार्यक्रम के प्रभारी प्रोफेसर डी. हिमांशु ने बताया कि यह अत्याधुनिक तकनीक देश के कुछ ही अस्पतालों में उपलब्ध है और इसकी लागत काफी अधिक है।
हालांकि, केजीएमयू में यह सुविधा आधी से एक-तिहाई कीमत पर उपलब्ध कराई जाती है। अब तक इस प्रणाली के जरिए गंभीर रूप से बीमार मरीजों का सफलतापूर्वक इलाज किया जा चुका है। इस कार्यक्रम को एनेस्थेसियोलॉजी और मेडिसिन विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया था। आयोजन टीम में प्रोफेसर दिनेश कौशल, डॉ. राजेश रमण, डॉ. अंबुज यादव, डॉ. रति प्रभा, डॉ. करण कौशिक और डॉ. शशांक कन्नौजिया का विशेष योगदान रहा। ईसीएमओ जैसे नवाचार चिकित्सा क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक ले जा रहे हैं और गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए जीवन की उम्मीद बनकर उभर रहे हैं। इस तकनीक को अपनाने और इसके उपयोग को बढ़ावा देने से अनेक जानें बचाई जा सकती हैं।
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क्या है ECMO और क्या हैं इसके फायदे
ईसीएमओ एक यांत्रिक सहायता प्रणाली है, जो दिल और फेफड़ों के कार्यों को कृत्रिम रूप से संभालती है। इसे हृदय गति रुकने, गंभीर फेफड़ों की विफलता, श्वसन मार्ग में रुकावट और विषाक्तता जैसी स्थितियों में उपयोग किया जाता है। कोविड महामारी के दौरान इस तकनीक की मांग तेजी से बढ़ी, क्योंकि यह फेफड़े और हृदय दोनों को कार्य करने में मदद करती है। जब पारंपरिक चिकित्सा विधियां असफल हो जाती हैं, तब यह मरीजों को अतिरिक्त समय और उपचार की सुविधा देती है। कार्डियक अरेस्ट जैसे गंभीर मामलों में, जहां दिल और फेफड़े का काम रुक जाता है, यह जीवन को सहारा देने में सक्षम होती है। विषाक्तता और गंभीर श्वसन विफलता के मरीजों में भी इसका प्रभावी उपयोग किया जा सकता है।
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