Thursday, January 16, 2025
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ISRO ने फिर रचा इतिहास, SpaDex मिशन पूरी तरह सफल, ऐसा करने वाला चौथा देश बना भारत

SpaDex Mission: अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत ने एक और बड़ी उपलब्धि हासिल की। ​​भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने गुरुवार सुबह दो उपग्रहों को अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर इतिहास रच दिया। इसके साथ ही अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया।

ISRO ने स्पैडेक्स डॉकिंग (SpaDex Mission) की सफलता पर टीम और देशवासियों को बधाई दी है। गुरुवार को इसरो ने ट्वीट कर बताया कि अंतरिक्ष यान की डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हो गई। यह एक ऐतिहासिक क्षण है। स्पैडेक्स डॉकिंग प्रक्रिया पर इसरो ने कहा कि डॉकिंग (Docking) की शुरुआत सटीकता के साथ हुई और 15 मीटर से तीन मीटर होल्ड पॉइंट तक पैंतरेबाज़ी पूरी की गई। पूरी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कैप्चर किया गया। अंतरिक्ष डॉकिंग में सफलता हासिल करने वाला भारत चौथा देश बन गया।

SpaDex Mission: क्या है डॉकिंग (Docking)

दरअसल डॉकिंग (Docking) एक प्रक्रिया है जिसकी मदद से दो अंतरिक्ष पिंड एक साथ आते हैं और जुड़ते हैं। यह विभिन्न तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ तकनीक की आवश्यकता तब होती है जब साझा मिशन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कई रॉकेट लॉन्च करने की आवश्यकता होती है। वांछित कक्षा में लॉन्च होने के बाद, दोनों अंतरिक्ष यान 24 घंटे में लगभग 20 किलोमीटर दूर चले जाएंगे। इसके बाद, वैज्ञानिक डॉकिंग प्रक्रिया शुरू करेंगे।

ऑनबोर्ड प्रोपल्शन का उपयोग करते हुए, लक्ष्य धीरे-धीरे 10-20 किमी का अंतर-उपग्रह पृथक्करण बनाएगा। यह दूरी धीरे-धीरे घटकर 5 किमी, 1.5 किमी, 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और अंत में 3 मीटर हो जाएगी, जहाँ डॉकिंग होगी। डॉक होने के बाद, मिशन पेलोड संचालन के लिए उन्हें अनडॉक करने से पहले अंतरिक्ष यान के बीच शक्ति हस्तांतरण का प्रदर्शन करेगा।

ये भी पढ़ेंः- ISRO रचेगा इतिहासः 3 मीटर की दूरी पर लाए गए ‘SpaDeX’ के दोनों सैटेलाइट

SpaDex Mission: भारत के लिए बड़ी उपलब्धि

भारत में किए जाने वाले कई मिशनों के लिए सफल डॉकिंग प्रयोग आवश्यक है। भारत की योजना 2035 में अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। इसके लिए मिशन की सफलता महत्वपूर्ण है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में पाँच मॉड्यूल होंगे जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ लाया जाएगा। इनमें से पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाना है। यह मिशन चंद्रयान-4 जैसी मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह प्रयोग उपग्रह की मरम्मत, ईंधन भरने, मलबा हटाने और अन्य के लिए आधार तैयार करेगा।

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