Makar Sankranti: मंडी जिले में लोहड़ी और मकर संक्रांति का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। जिले के पांगणा-करसोग में लोहड़ी से आठ दिन पहले से ही लड़के-लड़कियों की टोलियां घर-घर जाकर प्रतिदिन शाम को लोहड़ी की पारंपरिक कथा गाती थीं। लोग भी हर रोज लोहड़ी गीत गाने वाली इन टोलियों का बेसब्री से इंतजार करते थे। हर घर, हर परिवार का सदस्य बच्चों को लोहड़ी गीत गाने के बदले में रेवड़ी, मूंगफली, मोदी बांटता था और दान के तौर पर सिक्के दिए जाते थे।
Makar Sankranti : साल दर साल कम होती रहीं टोलियां
करीब तीन दशक पहले लोहड़ी गीत गाने वाले लड़के-लड़कियों के सिर्फ दो बड़े समूह हुआ करते थे। साल दर साल इन टोलियों की संख्या बंटती गई और कई हो गई। इसके बाद दिन-प्रतिदिन इतनी कमी आई कि अब गाने वाली टोलियां कहीं नजर नहीं आतीं। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच पांगणा-सुकेत के अध्यक्ष डॉ. हिमांशु बाली का कहना है कि आज भी लोग शाम को लोहड़ी गीत सुनने के लिए इन टोलियों का इंतजार करते हैं। लेकिन एक सप्ताह से कहीं कोई टोली नजर नहीं आई।
Makar Sankranti: दूर-दूर तक सुनाई देते थे गीत
दूर-दूर तक सुनाई देने वाला गीत था- आई भाभी लोहड़ी-लोहड़ी। क्या-क्या लाईं भाभी, क्या-क्या लाईं। लुंगी केहड़ा टोपा भाभी, लुंगी केहड़ा टोपा, साओरे दा घर खोटा भाभी, साओरे दा घर खोटा। इसके अलावा -बोलो मुंडेओ अमिया- अमिया। कंका जामिया- अमिया। कंका बतेरे- मेरे दो साधु। एक गया और थोड़ा मिल गया। आगे एक घोड़ा आया – घोड़े पर काठी। आगे एक हाथी आया- हाथी का दंदाड़ू- गोबरा का चंदड़ू- अमिया। इसी प्रकार – जट्टी- मैटी घेरनी- घेरनी। जट्टा का सिर घूम गया। जट्ट सदा राणा-बाघ तमाशे जाणा।- धनतरिया धनतारा-धंतर। वधू का मुख धन्तर के समान काला है। दुल्हन को चारा मिलता है, धन्तर जैसा। वह इसे धन्तर की तरह सावन के महीने में रखता है।
भाई की गोद धनतर जैसी। भतीजे के पांव धनतर से बंधे। घड़ी कौन है, धनतर जैसी। घड़ीसाज धनतर जैसी। हीरे के ऊपर हीरा है, धनतर जैसी। राजा गोपी धनतर पहनते हैं। इसके अलावा- बोलो मेयो घेरनी-घेरनी, लोहड़ी मल्होड़ी-घिंगा घोरी, घाटियों का कण-कण बच्चों की मधुर आवाज से गूंजता था। लेकिन अब ये संगीतमय लहरियां लुप्त हो गई हैं।
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पुरातत्व जागरूकता संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणि कश्यप राज्य पुरातत्व जागरूकता पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जगदीश शर्मा का कहना है कि बच्चों के उल्लास के पर्व लोहड़ी गायन की इस प्राचीन विरासत को बचाए रखने के लिए हमें पाश्चात्य संस्कृति का दमन कर भारतीय संस्कृति का अनुसरण करना होगा। तभी लोहड़ी जैसा पवित्र पर्व और भारतीय संस्कृति जीवित रह सकती है। यह तभी संभव है, जब भ्रमित समाज आध्यात्म की ओर अग्रसर होगा।
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