बेंगलुरू की तरह टैक्स वसूली करेगा नगर निगम, जानें क्यों लिया ये फैसला

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लखनऊः शहर की आबादी और क्षेत्र का विस्तार भले ही हो रहा है, लेकिन नगर निगम की आय में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। जिस आय की उम्मीद की जा रही थी, वह अपेक्षाकृत कम है। नवाबों के शहर में नगर निगम की आय बेंगलुरू से काफी कम है। यहां के बड़े अधिकारी भी इसको लेकर चिंतित है। शहर में गृह कर (house tax) को यूजर चार्ज के साथ जोड़ने पर जोर दिया जा रहा है।

हालांकि, इसकी मांग लखनऊ में काफी दिनों से की जा रही है। निगम के अधिकारियों द्वारा बेंगलुरू नगर निगम की आय और वहां के मैनेज सिस्टम को समझने पर जोर दिया जा रहा है। इसके पहले भी हैदराबाद, इंदौर और बेंगलुरू जैसे शहर के निगम की व्यवस्था देखी जा चुकी है। गृह कर वसूली, ड्रेनेज सिस्टम और यूजर चार्ज को ही मुख्य कार्य मानते हुए नगर आयुक्त इंद्रजीत सिंह ने बेंगलुरू नगर निगम की आय और काम करने के तरीको को बारीकी से परखा। इसके लिए उन्होंने खुद वहां के नगर आयुक्त तुषार गिरिनाथ को लखनऊ भी बुलाया था।

नगर निगम बेंगलुरू का अध्ययन भी अब तक किया जा चुका है। नए डाटा के मुताबिक वहां 4,500 करोड़ रूपये सालाना केवल संपत्ति कर के रूप में जमा किए जाते हैं। इस मामले में नगर निगम लखनऊ काफी पीछे है। यहां की यही आय करीब 300 करोड़ है। लखनऊ शहर में अभी तक कचरा प्रबंधन को सख्त नहीं बनाया जा सका है। आबादी के एवज में यहां का कचरा प्रबंधन सेस में खर्च को व्यर्थ माना जा रहा है। यदि इस सिस्टम को मजबूत कर लिया जाए तो यहां की आय बेंगलुरू से ज्यादा हो जाएगी। लखनऊ में अभी तक नए गांवों में सीवर सिस्टम, वाटर सप्लाई, सड़कें यहां तक कि जलनिकासी की व्यवस्था भी नहीं है।

कई बार तो इस पर भी फैसला नहीं हो पाया है कि नए क्षेत्रों से टैक्स लिया जाए या नहीं। पार्षदों ने भी मांग उठाई थी। उनका कहना था कि जब तक विकास कार्य नहीं किया जाता, तब तक टैक्स न लिया जाए। इसी तरह यूजर चार्ज के नियम भी सख्त नहीं हो पा रहे हैं। यूजर चार्ज में अलग से कर्मचारी लगाए गए हैं, जबकि बेंगलुरू का निगम एक साथ दोनों काम करता है। लखनऊ नगर निगम में हाउस टैक्स वसूली नियम सख्त नहीं है। पिछले साल कैसरबाग क्षेत्र में हाउस टैक्स वसूली के दौरान सीलिंग प्रक्रिया शुरू की गई थी। इस दौरान एक व्यक्ति की खुदकुशी की चर्चा के चलते केवल व्यवसायिक इमारत को ही सील किया जाता है। इससे यह व्यवस्था आज भी लचर है। हैदराबाद के साथ ही इंदौर का भी अध्ययन किया गया था।

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अब चेन्नई और बेंगलुरू निगम के आर्थिक स्रोतों पर गौर किया जा रहा है। नगर आयुक्त और महापौर नियमों में बदलाव के पक्षधर हैं, क्योंकि निगम में शामिल नए क्षेत्रों का विकास नहीं हो पा रहा है। इसको लेकर विपक्ष के साथ ही सत्ता पक्ष के पार्षद विरोध कर रहे हैं इसीलिए इन नियमों का सख्ती से पालन नहीं हो पा रहा है।

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