Saturday, January 11, 2025
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History of Ayodhya : आंदोलन में छह दिसंबर का है खास महत्व

History of Ayodhya importance 6th December

 

Ayodhya: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर तेजी से आकार ले रहा है। 22 जनवरी को रामलला नए मंदिर के गर्भगृह में विराजमान होंगे। श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का यह क्षण ऐसे ही नहीं आया। इसके लिए हिन्दू समाज को लगभग पांच सौ वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा है। 06 दिसम्बर 1992 का दिन इस संघर्ष में विशेष महत्व रखता है। इस दिन कारसेवकों ने जन्मभूमि पर विवादित ढांचा हटाकर राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था। क्योंकि जन्मभूमि से विवादित ढांचा हटाए बिना मंदिर निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

Ayodhya में लगे रामलला हम आएंगे के नारे

विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री अंबरीश सिंह ने खास बातचीत में बताया कि 06 दिसंबर 1992 की घटना हिंदू समाज के शौर्य का प्रतीक थी। 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद हिंदुओं ने संदेश दिया कि अब हम अपने मूल्यों का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकते। पांचवें धर्म संसद की घोषणा के अनुसार संतों के आह्वान पर 6 दिसंबर 1992 को लाखों राम भक्त अयोध्या पहुंचे।

श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष हिंदू हृदय सम्राट अशोक सिंहल और दिगंबर अखाड़े के महंत रामचंद्रदास परमहंस के नेतृत्व में दिग-दिगंत में ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ जैसे नारे गूंज रहे थे। विवादित ढांचे से करीब 200 मीटर की दूरी पर बने विशाल मंच पर कई नेता, साधु-संत बैठे हुए थे।

फायरिंग की घटना याद कर बढ़ी गुस्सा

सुबह 9 बजे फैजाबाद के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में पूजा चल रही थी। लोग भजन-कीर्तन कर रहे थे। दोनों ने दोपहर करीब 12 बजे विवादित ढांचा परिसर का दौरा भी किया। हालांकि, दोनों को इस बात का अंदाजा नहीं था कि कुछ ही देर बाद ऐसा कुछ होने वाला है, जिसे कई दशकों तक याद रखा जाएगा।

उनके दौरे के कुछ देर बाद ही वहां का माहौल एकदम बदल गया। वीएचपी ने राम जन्मभूमि परिसर से एक मुट्ठी रेत लेकर सरयू में डालने और प्रतीकात्मक कारसेवा करने की योजना बनाई, लेकिन कारसेवक इस पर सहमत नहीं हुए। रामभक्तों ने संकल्प लिया कि मुख्य विवाद की जड़ यह विवादित ढांचा है, इसलिए हम इस ढांचे को हटाकर ही मानेंगे।

30 अक्टूबर और 2 नवंबर 1990 को Ayodhya में कारसेवकों पर हुई फायरिंग की घटना को याद कर कारसेवकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, फिर क्या हुआ कि देखते ही देखते कारसेवक बैरिकेडिंग तोड़ विवादित ढांचे के पास पहुंच गए। कारसेवकों को मंच पर रोकने की कोशिश की गई, लेकिन वे नहीं माने। कारसेवकों ने विवादित ढांचे को घेर लिया।

कुछ ऊपर चढ़ने लगे, कुछ अन्दर चले गये। इस बीच सीआरपीएफ जवानों ने हवाई फायरिंग भी की। तुरंत ही बजरंग दल के तत्कालीन राष्ट्रीय संयोजक विनय कटियार ने कहा कि सभी सुरक्षाकर्मियों को अपनी जगह से 10 कदम पीछे हट जाना चाहिए। तभी कार सेवकों ने जय श्री राम और हर हर महादेव के नारे लगाते हुए ढांचा तोड़ना शुरू कर दिया। मंच से साध्वी ऋतंबरा ने कहा कि बाबरी ढांचे को गिराने के लिए ‘एक और धक्का’। फिर, जिसका वर्षों से इंतजार था, वह विवादास्पद ढांचा जो 1528 से हिंदू पुरुषत्व को चुनौती देने वाले कलंक का प्रतीक था, ढह गया।

Ayodhya में पूजा की मिली इजाजत

06 दिसंबर 1992 को ढांचा ढहने के बाद अशोक सिंघल के आदेश पर तुरंत केंद्रीय गुंबद के स्थान पर भगवान का सिंहासन स्थापित किया गया और ढांचे के नीचे सिंहासन पर पारंपरिक मूर्ति स्थापित की गयी और पूजा शुरू हो गयी। हजारों भक्तों ने दिन-रात करीब 36 घंटे मेहनत की और बिना किसी औजार के सिर्फ अपने हाथों से उस स्थान के चारों कोनों पर चार खंभों पर कपड़े चढ़ाए। पांच फीट ऊंची, 25 फीट लंबी और 25 फीट चौड़ी ईंटों की दीवार बनाकर मंदिर का निर्माण कराया गया। अस्थायी मंदिर का निर्माण बाबा सत्य नारायण मौर्य ने कराया था।

08 दिसंबर 1992 को सुबह-सुबह पूरी अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया गया। परिसर केंद्रीय सुरक्षा बलों के हाथों में चला गया, लेकिन केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने भगवान की पूजा करना जारी रखा। वकील हरिशंकर जैन ने हाईकोर्ट में दलील दी कि भगवान भूखे हैं। राग, भोग और पूजा की इजाजत होनी चाहिए। 1 जनवरी 1993 को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति हरिनाथ तिलहरी ने दर्शन-पूजन की अनुमति दे दी।

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विहिप के क्षेत्र संगठन मंत्री गजेंद्र सिंह ने बताया कि 06 दिसंबर 1992 को ढांचा ढहने के बाद इसकी दीवारों पर शिलालेख मिले थे, जिन्हें पढ़ने के बाद विशेषज्ञों ने बताया कि यह शिलालेख 1154 ई. का है। इसमें संस्कृत में 20 पंक्तियाँ लिखी हैं। यह शिलालेख ओम नमः शिवाय से शुरू होता है। इसमें स्वर्ण कलश वाले विष्णुहरि के मंदिर का वर्णन है। इसमें अयोध्या की खूबसूरती का वर्णन किया गया है।

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