Tasar production in khunti: झारखंड की जमीन और जलवायु ऐसी है कि यहां लगभग हर चीज की खेती की जा सकती है। यहां घने जंगल हैं, जिससे राज्य के किसानों को भी फायदा होता है। खूंटी जिले की कई महिलाएं इस खेती से जुड़कर अच्छी कमाई कर रही हैं और आत्मनिर्भर बन रही हैं।
अपने घने जंगलों, हरे-भरे पेड़ों और वन उत्पादों के लिए प्रसिद्ध खूंटी जिले का आदिवासी समुदाय शुरू से ही वन आधारित उत्पादों से अपनी आजीविका कमाता रहा है। इस क्षेत्र में लंबे समय से लाह आदि की खेती होती रही है, लेकिन खूंटी जिले की महिलाएं वैज्ञानिक तरीके से तसर (रेशम) की खेती कर अपनी विकास यात्रा की नींव रख रही हैं। इससे गांवों में खुशहाली लौट आई है और ग्रामीण परिवार भी आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे हैं। वैज्ञानिक पद्धति की मदद से खेती और झारखंड राज्य आजीविका संवर्धन समाज (जेएसएलपीएस) के तहत खूंटी जिले में तसर की खेती फिर से अच्छी तरह से शुरू हो गई है।
ओलिप बादू ने किया समूह का गठन
मुरहू प्रखंड के रुमुटकेलकेल गांव की ओलिप बादू एक ऐसी महिला हैं जो गरीब परिवार में रहते हुए भी आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत धान, मडुवा, मक्का आदि की पारंपरिक खेती और पशुपालन था। महिला समूह में शामिल होने से पहले उनके घर के हालात अच्छे नहीं थे। समूह से जुड़ने के बाद उन्हें ऋण एवं अन्य विकास योजनाओं की जानकारी मिली। जेएसएलपीएस की दीदियों द्वारा प्रशिक्षण के माध्यम से महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना एवं रेशम परियोजना से संबंधित जानकारी उपलब्ध करायी गयी। बाद में उन्होंने समूह की 35 दीदियों के साथ गांव में तसर उत्पादक समूह का गठन किया।
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रेशम पालन का प्रशिक्षण
उन्होंने गांव में ही रेशम पालन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। प्रशिक्षण के बाद विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करते हुए समूह की दीदियों को तसर खेती के बारे में पूरी जानकारी मिली। जेएसएलपीएस महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना द्वारा उनका चयन किया गया और उन्हें ब्लीचिंग, जीवन सुधा, सोडियम हाइपोक्लोराइट और सिचर, स्प्रे मशीन मिली। इसके बाद पहली बार महिलाओं ने तसर की खेती की।
इस तरह बढ़ी आय
ओलिप बडू बताती हैं कि पहली बार उन्हें करीब 4530 रुपये का मुनाफा हुआ। इस खेती में हुए मुनाफे को देखकर उन्होंने 2020 में बीएसआर और सीएसआर दोनों की खेती की, जिससे उनकी आय बढ़ गई। इसमें उत्पादक समूह को उत्पाद के विपणन में भी सहयोग दिया जाता है। दीदी बताती हैं कि वह लगातार तसर की खेती कर रही हैं। ओलिप ने कहा कि जेएसएलपीए के माध्यम से रेशम परियोजना से जुड़ने से हमारी आय में वृद्धि हो रही है और परिवार की आर्थिक स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार हो रहा है।
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